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डाकुओं के भय से वीरान गांव में 24 साल बाद रौनक, वापस लौटे ग्रामीण

डाकुओं के भय से वीरान हो चुकी गांव में 24 साल बाद रौनक लौटी है। पुलिस प्रशासन के प्रयास से लगभग ढाई दशक बाद घर छोड़ गए कुछ परिवार लौटे हैं।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Thu, 17 May 2018 08:56 AM (IST)Updated: Thu, 17 May 2018 09:35 PM (IST)
डाकुओं के भय से वीरान गांव में 24 साल बाद रौनक, वापस लौटे ग्रामीण
डाकुओं के भय से वीरान गांव में 24 साल बाद रौनक, वापस लौटे ग्रामीण

पश्चिमी चंपारण [जेएनएन]। बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के बगहा एक प्रखंड का गायघटवा गांव दस्यु गिरोहों के चलते कभी मिनी चंबल के नाम से जाना जाता था। डाकुओं का खौफ दिल में इस कदर समाया कि हजारों लोगों से आबाद पूरा गांव ही उजड़ गया था। मरघट सी वीरानी छा गई थी। पुलिस प्रशासन के प्रयास से लगभग ढाई दशक बाद घर छोड़ गए कुछ परिवार लौटे हैं। अब यहां फिर रौनक दिखने लगी है।

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चार अगस्त की वह काली रात

गायघटवा गांव करीब 24 साल पहले गुलजार था। 500 परिवार रहते थे। चार अगस्त 1994 की वह काली रात थी। उस रात रामभजू गिरोह के डकैतों ने हमला बोल दिया। टेनी यादव, रामजी यादव और तपन साह की हत्या कर दी। सरकार ने रामभजू डकैत पर एक लाख का इनाम घोषित किया, लेकिन उसका अंत नहीं कर सकी। इसके अलावा डकैतों के अन्य गिरोह समय-समय पर यहां आतंक मचाए रहे।

इनके भय से लोगों ने गांव छोडऩा शुरू कर दिया। एक के बाद एक सभी परिवार कुछ ही दिनों में घर-बार और खेती छोड़ चले गए। कुछ परिवार चौतरवा, बथवरिया, बहुअरवा और लगुनाहा समेत अन्य गांवों में बस गए, तो कुछ बाहर कमाने चले गए। इन परिवारों की सैकड़ों एकड़ जमीन दस्यु गिरोहों ने कब्जा कर ली। लोग इसे मिनी चंबल के नाम से जानने लगे।

पुलिस जिला घोषित कर शुरू हुआ अभियान

सरकार ने डकैतों के खात्मे और अपराध रोकने के लिए 1996 में बगहा को पुलिस जिला घोषित किया। पुलिस ने रामभजू डकैत को मुठभेड़ में मार गिराया। आतंक के पर्याय रहे लालजी उरांव ने 2008 में और 100 से अधिक आपराधिक मामलों में वांछित वासुदेव यादव उर्फ तिवारी ने 24 मई 2009 को आत्मसमर्पण कर दिया। दस्यु सरगना राधा और चुम्मन यादव ने 2015 में हथियार डाल दिया। कुख्यात रूदल यादव को यूपी पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया था। किसानों की जमीन मुक्त कराई गई।

अब यहां सुख-शांति और हरियाली

धीरे-धीरे लोगों का भय कम हुआ। छह माह पहले रूदल यादव, लंगड़ राम, सुरेश साह और रामाकांत साह सहित करीब 100 परिवार गांव लौट आए। उमाकांत पांडेय, राकेश पांडेय और उमाकांत प्रसाद कहते हैं कि 90 के दशक में दस्युओं का आतंक इस कदर था कि शाम पांच बजे के बाद सड़कें सूनी हो जाती थीं। पुलिस के प्रयास से आतंक खत्म हुआ। अब पहले जैसी बात नहीं। यहां सुख-शांति और हरियाली नजर आती है। जिन मकानों में कभी वीरानी थी, रौनक हो गई है।

गायघटवा में ग्रामीण अब लौट रहे हैं, यह बड़ी बात है। लोगों की सुरक्षा के लिए पुलिस सदैव तत्पर है। समय-समय पर सामुदायिक पुलिसिंग के तहत जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाते हैं।

-अरविंद कुमार गुप्ता, एसपी बगहा।


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