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सुकून के पल तो कहीं जिदगी की जद्दोजहद

कोरोना महामारी ने देश ही नहीं पूरी दुनिया को लॉकडाउन करने के लिए मजबूर कर दिया है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 23 May 2020 09:12 PM (IST)Updated: Sun, 24 May 2020 06:06 AM (IST)
सुकून के पल तो कहीं जिदगी की जद्दोजहद
सुकून के पल तो कहीं जिदगी की जद्दोजहद

बेतिया। कोरोना महामारी ने देश ही नहीं पूरी दुनिया को लॉकडाउन करने के लिए मजबूर कर दिया है। लोग घरों में रहने के लिए मजबूर हैं। हालांकि अब तो कुछ छूट मिली हैं। लेकिन प्रवासियों की जिदगी की जद्दोजहद अभी कम नहीं हुई है। उनकी मजबूरी ही है। लॉकडाउन में रोजगार गया तो कामगारों को जीवन यापन करना मुश्किल हो गया। अपना और अपनों का जीवन बचाने के लिए पैदल ही घर की ओर रुख कर दिया। सिर पर सामान की गठरी है। गोद में छोटे बच्चे। सैकड़ों की संख्या में कामगार पैदल ही सफर तय कर रहे हैं। कोई दस दिन से पैदल चल रहा है, तो कोई 15 दिन से। सबकी मंजिल एक ही है बस किसी तरह घर पहुंच जाएं। सफर में दुश्वारियां भी कम नहीं हो रही हैं। मजबूरी का सफर तय कर जब ये अपने प्रखंड मुख्यालय में पहुंचते हैं तो निढाल हो जाते हैं। शनिवार को कुछ ऐसा ही नजारा मैनाटांड़ प्रखंड मुख्यालय में दिखा। जिसे जहां जगह मिली वहीं डेरा डाल दिया। यूपी के गोंडा से आए सुदर्शन राम ने बताया कि तीन दिन से भरपेट खाना तक नहीं मिला। रास्ते में गांव के लोगों ने खाना खिलाया था। रात से लेकर अब तक कुछ खाने को नहीं मिला। मध्य प्रदेश से आए जुल्फकार ने बताया कि कुछ दूर पैदल चले , फिर ट्रक मिली। किसी तरह से अब पहुंच गए हैं। मेडिकल जांच करा कर आराम से क्वारंटाइन सेंटर में रहना चाहते हैं। अवधेश साह ने बताया फैक्ट्री में नौकरी करते थे। लॉकडाउन में फैक्ट्री बंद हो गई। अब पैसे और खाने का संकट आ गया। अब रोजगार व खाना ही नहीं रहा, तो फिर वहां रहकर क्या करेंगे। इसलिए घर चले आए। प्रवासियों में कोरोना का खौफ नहीं

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विभिन्न प्रदेशों से आए प्रवासियों में कोरोना का खौफ नहीं है। इनकी आंखों में बेचारगी और बेबसी का अक्स है। लुधियाना से आए महेंद्र राम ने बताया कि सरिया फैक्ट्री में काम करते थे। न मालिक ने वेतन दिया न कोई दूसरी मदद की। कामगार फोन करते रहे तो उन्होंने स्विच ऑफ कर दिया। कोई आस नहीं बची और खाने-पीने की दिक्कत होने लगी तो घर के लिए निकल पड़े। अवधेश ने कहा कि मकान मालिक भी किराया नहीं छोड़ा। किसी तरह से मजबूरी का सफर तय कर गांव पहुंच गए हैं।


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