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हमें अन्नदाता कह मूर्ख बनाते हैं अधिकारी और जनप्रतिनिधि

ठकराहा, दैनिक जागरण ने देश की समृद्धि में सहभागी बने क्षेत्र के किसानों की समस्याओं का अध्ययन व उनके समुचित निराकरण के लिए देश के सबसे बड़े संपादकीय महाभियान की शुरुआत की है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 09 Dec 2018 10:01 PM (IST)Updated: Sun, 09 Dec 2018 10:01 PM (IST)
हमें अन्नदाता कह मूर्ख बनाते हैं अधिकारी और जनप्रतिनिधि
हमें अन्नदाता कह मूर्ख बनाते हैं अधिकारी और जनप्रतिनिधि

बगहा। ठकराहा,

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दैनिक जागरण ने देश की समृद्धि में सहभागी बने क्षेत्र के किसानों की समस्याओं का अध्ययन व उनके समुचित निराकरण के लिए देश के सबसे बड़े संपादकीय महाभियान की शुरुआत की है। रविवार को इस अभियान के तहत ठकराहा प्रखंड के राजीव गाँधी सेवा केंद्र भवन में भव्य आयोजन की गई। आयोजित कार्यक्रम की शुरुआत ठकराहा के समाजसेवी कृष्ण मुरारी तिवारी, विरेंद्र तिवारी, जिला पार्षद जुनैद खान ,सांसद प्रतिनिधि विजय चौधरी ,प्रभु नाथ तिवारी, डॉ सुरेश तिवारी सहित अन्य गण्यमान्यों ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता बीरेंद्र तिवारी एवं संचालन डॉ सुरेश तिवारी ने किया। कार्यक्रम में किसानों का दर्द छलकता नजर आया। इसमें शामिल अधिकांश गांव के किसानों ने सरकार के स्तर से संचालित योजनाओं की समय से जानकारी नहीं मिलने की बात कही। कई किसान ऐसे मिले जिन्हें पता भी नहीं कि उनके क्षेत्र में कृषि संबंधित कौन सी योजना चल रही है। कुछ किसानों ने योजनाओं की जानकारी नहीं मिल पाने के लिए सीधे तौर पर प्रशासन से जुड़े प्रखंड व पंचायत स्तर के पदाधिकारियों के साथ साथ क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों को जिम्मेदार ठहराया। किसानों ने खुलकर खेती के कार्य में होने वाली परेशानी को न सिर्फ बताया बल्कि बैंकों के असहयोग व खाद तथा बीज आदि के समय से न मिलने की शिकायत की। कार्यशाला के बीच में किसानों ने अपने द्वारा उगाए फसलों का सरकार द्वारा क्रय केंद्र नहीं खोले जाने की समस्या को भी साझा किया। जिसकी वजह से उन्हें औने पौने दामों पर बाजार में साहूकारों से बेचना पड़ता है। सरकार द्वारा संचालित पैक्स पर भी किसानों के उगाए धान या गेंहू आदि की खरीदारी नहीं हो रही है। जिससे समस्या उत्पन्न होती है। हालांकि कई किसानों ने कहा कि आज के दौर में किसानी अपने आप में एक चुनौती से कम नहीं है। हमें न तो सही जानकारी मिल पाती है और न ही बैंकों व सरकार का सहयोग। बावजूद इसके हम किसानी करते हुए खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं। क्योंकि हमारे द्वारा उगाए गए ही खाद्यान्नों को सभी खाते हैं। कार्यक्रम के दौरान किसानों ने प्रशासनिक जटिलताओं के कारण सरकारी योजनाओं का अपेक्षित लाभ नहीं मिलने की बात भी कही। ¨सचाई की समस्या बड़ी चुनौती कार्यक्रम के दौरान किसानों ने ¨सचाई, सरकारी योजना का समय पर लाभ नहीं मिलने, कृषि उत्पाद का सही मूल्य प्राप्त नहीं होने, फसलों की खरीद की सुचारू व्यवस्था नहीं होने, कोल्ड स्टोरेज के अभाव में आलू की फसल बर्बाद होने, गन्ना की पर्ची समय पर नहीं मिलने, भुगतान समय पर नहीं होने, मिट्टी जांच नहीं होने, सरकार द्वारा क्रय केंद्र नहीं खोलने, जीरो टिलेज योजना का लाभ नहीं मिलने, डीजल अनुदान समय पर नहीं मिलने, यांत्रिकीकरण योजना समेत अन्य कई योजनाओं की जानकारी समय पर नहीं मिलने की बात कही। किसानों ने सर्वे फार्म भी भरा। जिसके द्वारा अपनी बातों को रखा। कार्यक्रम में किसान विद्या गिरी ,विनोद तिवारी, सरिता देवी, उमा देवी ,सतेंद्र तिवारी सहित अन्य लोग शामिल रहे। बोले किसान : किसानों को आत्महत्या के लिए मजबूर किया जा रहा है। उनकी फसलों को उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा। खेती किसानी के लिए मिलने वाला कृषि ऋण सुलभ नहीं है। कमीशनखोरी चरम पर है। दैनिक जागरण ने समय समय पर सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई है। आज गर्व हो रहा है कि पहली बार किसी समाचार पत्र ने किसानों की आर्थिक विपन्नता को मुद्दा बनाया है।

-- सुरेश तिवारी, किसान जिस देश की 70 फीसद आबादी के जीवन का आधार कृषि है, वहां किसानों की स्थिति सबसे बदतर है। वे किसान जो खून पसीना जलाकर अन्न पैदा करते हैं और हमारा पेट भरते हैं, शायद सिर्फ करने और मरने के लिए ही पैदा हुए हैं। केंद्र व राज्य सरकारों ने किसानों के हितार्थ कई योजनाएं चला रखी है। लेकिन अधिकारियों की उदासीनता और लापरवाही के कारण किसान इसके लाभ से वंचित रह जाते हैं।

-- कृष्ण मुरारी तिवारी, किसान

आज जब नेता का पुत्र नेता, पूंजीपति का पुत्र पूंजीपति, अफसर का पुत्र अफसर बनना चाहता है, लेकिन किसान पुत्र किसान नहीं बनना चाहता। जबकि नेता, पूंजीपति और अफसर के घर यदि चूल्हा जल रहा तो किसानों की मेहनत की बदौलत। यूपी में हर प्रखंड में कृषि विद्यालय हैं। इसलिए वहां की कृषि तकनीकी हमारे प्रदेश से उन्नत है। लेकिन हमारे यहां ऐसी कोई व्यवस्था नहीं।

-- वीरेंद्र तिवारी, किसान

एक वक्त था जब किसान खुद का बीज खेतों में लगाते थे। अब विदेशी कंपनियों के द्वारा दिए जाने वाले बीज को ही खेतों में लगाया जाता है। किसानों एक सुई बनाने वाली कंपनी सुई का मूल्य खुद तय करती है। लेकिन विडंबना देखिए, देश का पेट भरने वाले किसान अपने अनाज की कीमत निर्धारित नहीं कर सकते। सरकारें उनका रेट तय करती हैं।

--जुनैद खान, जिप सदस्य आजादी के बाद से लेकर अबतक किसान अपने हक के लिए आंदोलनरत हैं। सरकार का दावा है कि धान की खरीद हो रही, लेकिन हकीकत में कहीं ऐसा नहीं हो रहा। दावा है कि किसानों को गन्ना, गेहूं और मसूर का बीज मिल रहा, लेकिन कहीं इसका लाभ दिखाई नहीं दे रहा। कृषि ऋण की व्यवस्था तो है, लेकिन इसका लाभ आम किसानों को नहीं मिलता।

--राजेश मिश्र , किसान

सरकार की ओर से किसान चौपालों का आयोजन सिर्फ दिखावे के लिए किया जा रहा। हर आयोजन पर 10 हजार रुपये आवंटित होते हैं जिसका बंदरबांट किया जा रहा। अनुमंडल के 54 फीसदी किसानों ने सामान्य प्रभेद का गन्ना लगाया है। जिसे मिल ने तत्काल खरीदने से इंकार कर दिया है। अब किसान अपनी व्यथा किससे कहे।

--रविकांत तिवारी , किसान किसानों को मिलने वाली योजनाओं का लाभ देने से पहले ही कमीशन तय किया जाता है। बैंक ऋण उन्हीं किसानों को देता है जो प्रबंधकों की जेब गरम करते हैं। सरकारी क्रय केंद्रों पर धान बेचने के लिए भी पहले कमीशन देना पड़ता है। ओलावृष्टि, अतिवृष्टि और सूखे की मार किसान झेलता है। किसानों का कोई संगठन नहीं है, सबलोग व्यक्तिगत लाभ के चक्कर में पड़े हैं।

शंभू तिवारी, किसान गन्ना प्रधान क्षेत्र होने के बावजूद अबतक सरकार के द्वारा गन्ने का मूल्य निर्धारित नहीं किया गया। बीते वित्तीय वर्ष का करोड़ों रुपया चीनी मिल पर बकाया है। जिसके भुगतान की बात नहीं चल रही। प्रशासन भी मिल के इशारे पर निर्णय ले रहा। किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए अविलंब गन्ने का मूल्य निर्धारित किया जाना चाहिए।

-- सरिता देवी , किसान जिन किसानों में देश की आत्मा बसती है। उन किसानों को अपनी आत्मा में बसाने का अभियान चलाने वाले दैनिक जागरण को आइए सैल्यूट करें। क्योंकि किसानों की समस्या को लेकर कोई भी उतना संजीदा नहीं है। अब जब किसानों की पीड़ा को जन जन से समायोजित करने का दैनिक जागरण ने अभियान चलाया है तो निश्चित रुप से किसानों के हालात बदलेंगे।

-- प्रभुनाथ तिवारी , किसान


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