मैं वाल्मीकिनगर हूं, मुझे भी आपकी कृपा चाहिए ..
मैं वाल्मीकनगर हूं। मेरा बहुत नाम है। पहला संसदीय क्षेत्र होने का गौरव प्राप्त है।
बगहा। मैं वाल्मीकनगर हूं। मेरा बहुत नाम है। पहला संसदीय क्षेत्र होने का गौरव प्राप्त है। देश ही नहीं विदेशों में पहचान बनाने वाले वीटीआर का शायद मुख्यालय भी मैं ही हूं। लेकिन यहां कोई अधिकारी रहते नहीं है। सब यहां से कोसों दूर बेतिया में निवास करते हैं। वहीं पर इनका दफ्तर भी चलता है। जंगल मेरे गोद में बसा है और जंगल की सुरक्षा एवं संरक्षण का जिम्मेदारी निभाने वाले अधिकारी हम से कोसों दूर रहते हैं। मेरे आजू - बाजू में प्राकृतिक सौंदर्य से भरा है। जब भी किसी का मन मिजाज भारी होता है तो उसे यहां की फिजां अनुकूल लगती है। पर्यटक भी अपना मूड चेंज करने के लिए ही यहां आते है। वास्तव में यहां की मनोहारी ²श्य मन मिजाज को प्रफुल्लित कर भी देता है। और , करे भी क्यों नहीं देव भूमि जो है। यहां वाल्मीकि व बुद्ध की स्मृतियां मौजूद है । प्रकृति की गोद में बसे वाल्मीकिनगर की फिजा खूबसूरत वादियों पर्यटकों के लिए किसी जन्नत से कम नहीं है। लगभग 900 किमी के क्षेत्र में फैले वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना का हरा भरा जंगल विभिन्न प्रजाति के पेड़ पौधों एवं वन्य जीवों से भरा पड़ा है। नेपाल एवं यूपी की सीमा पर अवस्थित यह टाईगर रिजर्व प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। दिन के उजाले में गंडक नदी के शांत पानी में पहाड़ का प्रति¨वब बहुत मनोहारी एवं आकर्षक लगता है। होटल वाल्मीकि बिहार के पूरब पर्वत श्रृंखला में घनघोर जंगल एवं शांत नदी का किनारा पिकनिक स्पॉट एवं शू¨टग स्थल के लिए सर्वोत्तम है। सर्दियों के मौसम में यहां से हिमालय पर्वत श्रृंखला का दीदार कश्मीर की हसीन वादियों की याद ताजा कर जाती है। गंडक नदी में विदेशी मेहमान प¨रदों की क्रीड़ा देखते ही बनती है। नेपाल की पहाड़ की उंची चोटियां पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर ¨खचने के लिए पर्याप्त है। पर, मेरी हैसियत एक पंचायत की है।
बेरोजगारों को मिले रोजगार
जब भी यहां कोई बड़े राजनेता आते हैं तो यहां के लोगों की उत्सुकता बढ़ती है। इस बार वाल्मीकिनगर का जरूर कुछ होगा। अभाव व तंगी में जीवन यापन करने वाले लोग हाथ जोड़कर सड़क के किनारे खड़े रहते हैं और खुशी खुशी स्वागत करते हैं। लेकिन वास्तव में इनकी मजबूरियों को कोई नहीं देखता। जंगल के समीप होने के कारण जानवरों के आतंक को सहते हैं। विकास के लिए तरसते हैं। इतना बड़ा नाम होने के बाद भी अगर यहां के किसी के घर में वृद्ध की मौत होती है तो 45 किमी दूर बगहा दो में जाकर कबीर अंत्योष्ठी योजना के लिए अर्जी देना पड़ता है। यहां के लोगों की चाहत है कि वाल्मीकिनगर को प्रखंड का दर्जा मिल जाता तो शायद कुछ तस्वीर बदल जाती ।