तटबंध पर शरण लिए बाढ़पीड़ितों का हाल बेहाल
ठकराहा में गंडक की बाढ़ से विस्थापितों सा जीवन गुजार रहे बाढ़ पीड़ितों को अपने घर लौटने का इंतजार है। सैकड़ों बाढ़ पीड़ित पीपी तटबंध पर शरण लिए हुए हैं।
बगहा। ठकराहा में गंडक की बाढ़ से विस्थापितों सा जीवन गुजार रहे बाढ़ पीड़ितों को अपने घर लौटने का इंतजार है। सैकड़ों बाढ़ पीड़ित पीपी तटबंध पर शरण लिए हुए हैं। ठकराहा प्रखंड के मोतीपुर पंचायत के शेरा टोला, उमा टोला, हरख टोला, नौतन, गुरवलिया, मिश्र टोला समेत दर्जनभर गांव बाढ़ से प्रभावित हैं। यहां के ग्रामीण मजदूरी कर चैन से दो वक्त की रोटी खा रहे थे लेकिन उन्हें क्या पता था कि आने वाला समय उनकी जिंदगी में इतनी तबाही लाएगा। जब बाढ़ का पानी इनके घरों में घुसा मानो उनकी जिंदगी से खुशियां ही दूर हो गई। बाढ़ को देख इनकी रातों की नींद व दिन का चैन गायब हो गया है। बाढ़ आने के बाद ग्रामीण अफरातफरी में अपने परिजनों के साथ सामन को लेकर सुरक्षित स्थान पर चले गए। बाढ़ ने उनके बसे-बसाए घर को उजाड़ कर रख दिया। यहां बता दें कि उक्त गांव के बाढ़ पीड़ित लगभग 15 दिनों से पिपरा-पिपरासी तटबंध पर शरण लेकर रह रहे हैं। कुछ अपने सगे संबंधियों के यहां रहकर बाढ़ का पानी समाप्त होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। लेकिन जो लोग यहां रुक गए उनकी जिंदगी नर्क से भी बदतर है। उन्हें दो वक्त की रोटी तक नसीब नहीं हो रही है। इतना ही नहीं उनके बच्चे दाने-दाने के मोहताज हैं। बावजूद प्रशासन ने इन बाढ़पीड़ितों की सुधि नहीं ली। इनके दर्द पर कोई मरहम लगाने वाला नहीं हैं।
क्या कहते हैं बाढ़पीड़ित
धर्मराज यादव, राजू चौधरी, प्रभु चौधरी, फेंकू यादव, प्रहलाद यादव, सुरेंद्र यादव, रंगलाल चौधरी आदि बाढ़ पीड़ितों का कहना है कि पिछले साल भी हमारा सब कुछ बाढ़ में बह गया था। फिर हमने दिन रात एक कर सब कुछ बनाया। और फिर एक बार हमारा सब कुछ बाढ़ की भेंट चढ़ गया। इस बाढ़ से हमारे चूल्हे भी ठंडे पड़ गए हैं। बीते 15 दिनों में कैसे कैसे करके परिवार का एक सदस्य बाजार जाता है और वहां से चिउड़ा, गुड़ आदि लाता है तब जाकर मिल बाटकर खाते हैं। हम ग्रामीण पीपी तटबंध पर शरण लेकर रह रहे हैं और अपने घर लौटने का इंतजार कर रहे हैं। बाढ़ पीड़ितों ने कहा कि सबसे बड़ी समस्या भोजन और शौच की हो रही है। चारों ओर पानी ही पानी है आखिर हम जाएं तो कहां जाएं। हमारे बच्चे भी स्कूल में बाढ़ का पानी घुस जाने के कारण घर बैठे हुए हैं। बड़े साहब हमारा हाल जानने भी नहीं आते हैं। हम गरीब क्या करें कहां जाएं?