सरकारी योजनाओं में बिचौलिए हावी, खुली पोल तो दंग रह गए लोग
गुरुवार दोपहर के करीब दो बजे हैं। बगहा दो स्टेट बैंक में एक साथ दो महिलाएं दाखिल होती हैं। एक महिला सकुचाई सी है।
बगहा । गुरुवार दोपहर के करीब दो बजे हैं। बगहा दो स्टेट बैंक में एक साथ दो महिलाएं दाखिल होती हैं। एक महिला सकुचाई सी है। साधारण कपड़े वाली यह महिला शहरी चकाचौंध से थोड़ी असहज है। उसके हाथ में पासबुक है। साथ चल रही दूसरी महिला उसे गाइड कर रही। काउंटर पर पहुंचने के बाद महिला ने पासबुक बढ़ाया और आवास मद की दूसरी किस्त के विषय में जानकारी मांगी। ज्ञात हुआ कि 45 हजार रुपये उसके खाते में क्रेडिट हुए हैं। वह साथ आई दूसरी महिला की ओर देखती है, फिर पूछती है 11 हजार ही निकालें या फिर 8 हजार में काम चल जाएगा। दूसरी महिला आंख तरेरते हुए कहती है चुपचाप खाते से 11 हजार निकाल कर मुझे दो। सबको हिस्सा देना पड़ता है। तुम्हें पता भी था कि तुम्हारे खाते में रुपये आ गए हैं। वो तो मैं हूं जिसने तुम्हें बता दिया..। मुखिया जी, वार्ड सदस्य, आवास सहायक, पंचायत सचिव,पर्यवेक्षक और मैं.. सबका हिस्सा है इसमें। महिला गिड़गिड़ाती है। पर, इसका कोई असर नहीं होता। हार कर वह वाउचर भरती है, अंगूठे का ठप्पा लगाती है तथा रुपये निकाल कर साथ खड़ी महिला को रुपये दे देती है। एक के चेहरे में मुस्कान तैर जाती है तो दूसरे के चेहरे पर गहरी निराशा का भाव है। यह निराशा सिस्टम की देन है। महिलाएं इस संवाददाता को नहीं पहचानती। रुपये देने वाली महिला बगहा दो की एक पंचायत की रहने वाली है। हमने पूछा-आपने रुपये निकालकर क्यों दिया? जवाब मिला-आवास योजना का लाभ लेने के लिए कमीशन देना पड़ता है। पहले से तय था कि पहली किश्त में 11 हजार और दूसरी में 11 हजार रुपये दे देना है। हमने दूसरा सवाल किया-साथ आई महिला कौन है? महिला ने डरते हुए जवाब दिया-वार्ड सदस्य। तबतक दूसरी महिला ने हस्तक्षेप कर दिया-क्या करें! हम अकेले थोड़े ले रहे हैं, इसमें सबको हिस्सा देना पड़ेगा। ये तो खेत में गन्ना छील रही थी, मैंने जाकर बताया कि रुपये आ गए हैं। फिर हम दोनों बैंक आए हैं..। इसके बाद दोनों गंतव्य की ओर रवाना हो गए..। इस वाक्ये ने कई सवालों को जन्म दे दिया। जिसका जवाब तो इस योजना की मॉनीटरिग करने वाले कर्मी, अधिकारी व जनता के द्वारा चुने गए वे प्रतिनिधि ही दे सकेंगे , जिन्होंने चुनाव के दौरान सेवा को ही अपना धर्म बताया था। अब वे सेवा की आड़ में मेवा खा रहे वो भी अधिकारियों की नाक के नीचे....।
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आवास योजना मद में मिलते 1.30 लाख :
प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत प्रत्येक लाभुक को 1.30 लाख रुपये दिये जाते हैं। प्रथम किश्त के तौर पर 45 हजार का भुगतान होता है। आवास सहायकों के द्वारा सत्यापन के बाद यह रिपोर्ट देने के बाद कि नींव निकल चुका है, दूसरी किश्त के तौर पर 45 हजार रुपये दिए जाते। फिर लिटर तक जोड़ाई होने के बाद आखिरी किश्त के रूप में 40 हजार रुपये दिए जाने का प्रावधान है। महंगाई के इस दौर में 1.30 लाख में से 25 से 30 हजार रुपये तो घूसखोर उड़ा ले जाते। बाकि बचे रुपये में पक्के आवास का सपना कैसे पूरा होता है, ये तो लाभुक ही बता सकते। जो घूसखोरी के इस घिनौनी करतूत के लिए उतने ही दोषी हैं जितने कि लेने वाले..।
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साहब के नजरों से दूर खेल होता जरूर :-
प्रखंड व अनुमंडल स्तरीय अधिकारी समय समय पर आवास योजना से जुड़े कर्मियों के साथ बैठकें करते और योजनाओं की अद्यतन स्थिति की समीक्षा होती। लेकिन कभी भी सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए कठोर कदम नहीं उठाए गए। यहीं कारण है कि आज भी लाभुकों से नजराना वसूलने वाले लोग बेखौफ हैं। साहब दफ्तर में बैठ के भले ही मॉनीटरिग का दावा कर रहे, लेकिन उनकी नजरों से दूर खेल चल रहा है। घूसखोरी का..। जरूरत है जांच अभियान चलाकर दोषियों पर कठोर कार्रवाई की। तभी शायद सिस्टम में बदलाव हो सकेगा..। दलालों के द्वारा लाभुकों को गलत जानकारी देकर वसूली की शिकायत मिली है। जांच की जा रही है। उपरोक्त मामले में यदि लिखित शिकायत मिली तो दोषियों पर कठोर कार्रवाई होगी।
प्रणव कुमार गिरी, बीडीओ बगहा दो