आजादी के 72 वर्षों बाद भी शुद्ध पेयजल को तरस रहे भिखनाठोरी के ग्रामीण
बेतिया। गौनाहा भारत नेपाल अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर स्थित भिखनाठोरी में पानी की किल्लत आजादी के 72 वर्षों बाद भी बनी हुई है।
बेतिया। गौनाहा, भारत नेपाल अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर स्थित भिखनाठोरी में पानी की किल्लत आजादी के 72 वर्षों बाद भी बनी हुई है। इस विकट समस्या के प्रति किसी ने आज तक सुध ही नहीं ली। भिखनाठोरी में पानी की कितनी अहमियत है, यहां के लोग ही समझते हैं। तभी तो यहां के लोग पानी के लिए प्रतिदिन करीब एक घंटा तक इंतजार करते हैं। तब जाकर उन्हें पीने के लिए करीब 10 से 12 लीटर पानी नसीब होता है। करीब 250 घरों की आबादी वाले इस सीमाई इलाके में अभी भी बच्चे, बूढ़े व महिलाएं पानी भरते समय अधिक समय इंतजार करते हैं। यहां के बुजुर्ग मोतीलाल पासवान, दयानन्द सहनी, दयानन्द गुप्ता आदि का कहना है कि ऐतिहासिक रूप से भी इस गांव का महत्व रहा है। 1200 की आबादी पानी की समस्या से आज भी जूझ रही है। यहां पानी को पहले एक गैलन के ढ़क्कन में जमा किया जाता है। फिर उसे एक छोटी पतीला में जमा करते हैं। उसके भरने में अमूमन 10 मिनट का वक्त लगता है। फिर पतीले का पानी प्लास्टिक के गैलन में डाला जाता है। 10 से 12 लीटर के इस गैलन में करीब 10 बार पतीले का पानी डालने पर भरता है। ऐसे में एक गैलन पानी भरने के लिए करीब एक घंटे का वक्त लगता। यहां नल पर दिनभर कोई न कोई पानी के लिए खड़ा रहकर उसके भरने का इंतजार करता रहता है। ग्रामीण यह भी बताते हैं कि यहां जल वितरण की व्यवस्था सोलर पंप पर टीकी है। इस सीमाई इलाके में पानी की उस व़क्त और विकट स्थिति उत्पन्न हो जाती है। भिखनाठोरी की पहचान हाल तक नक्सलियों, पत्थर खनन माफियाओं, तस्करों के गढ़ के तौर पर रही है। लेकिन पिछले चार पांच सालों से यह इलाका इनसे मुक्त है। जबकि अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर बसा यह गांव जल संकट की लगातार चपेट में है। सरकार ने कई तरीकों से इस इलाके को जल संकट से उबारने की कोशिश की। लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। इसकी सबसे बड़ी वजह है यह पूरा इलाका पथरीला है। ऐसे में वन विभाग के सख्त नियम यहां डीजल पंप के संचालन की इजाजत नहीं देते। गांव में बिजली की आपूर्ति भी सोलर पैनल से की जाती है। जिससे पानी की आपूर्ति भी इसी सोलर पंप से होती है। ग्रामीण आशीष कुमार, पुन्ना सिंह आदि बताते है कि सोलर पैनल भी घटिया कंपनी का लगाया गया है। जिससे बिजली की आपूर्ति पूर्ण रूप से नहीं हो पाती। पहले टैंकरों से यहां पानी की आपूर्ति की जाती रही है। मगर वह सुविधा भी छीन ली गई। पूरे इलाके में भूमिगत जल का दोहन सिर्फ सबमर्सिबल पंप से हो सकता है। जबकि वन विभाग का नियम इसकी छूट नहीं देता। यहां पानी की समस्या को तालाब, कुंआ आदि की खुदाई कर दूर की जा सकती है। लेकिन इस पर अभी तक किसी राजनेता और सरकारी अधिकारियों का ध्यान नहीं गया। पानी के अभाव में सरकार द्वारा बनवाये गए शौचालयों का भी इस्तेमाल भी बमुश्किल होता है। बता दें कि वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में सीएम नीतीश कुमार ने सात निश्चय का उल्लेख किया था। जिसमें हर घर तक पानी पहुंचाने का वादा किया गया था। वर्ष 2016 में इस योजना को लागू भी किया गया। जिसमें प्रत्येक को कम से कम 70 लीटर पानी प्रतिदिन देय था। इसके बदले एक रुपये प्रतिदिन का शुल्क भी निर्धारित था। बहरहाल भिखनाठोरी को आज भी पीने के लिए पानी की संकट से जुझना पड़ रहा है। नेपाल से लाना पड़ता पीने का पानी
भिखनाठोरी में पानी की किल्लत और खड़े होकर भरने की परेशानियों से तंग आकर कुछ ग्रामीण नेपाल से पानी लाने को विवश हैं। लोग करीब ढ़ाई से तीन किलोमीटर दूर स्थित नेपाल देश के अमृतधारा का पानी लाते हैं। ग्रामीण कहते हैं कि नेपाल से पानी लाना कोई आसान काम नहीं है और न ही वहां का पानी भी इतना साफ है। प्रतिदिन ऐसी परिस्थितियां सामने आती है कि तीन किलोमीटर दूर नदी किनारे से पानी भरकर सिर पर लादकर लाना पड़ता है। जिससे शरीरिक और मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ता है। बावजूद इसके पानी की समस्या से कोई निजात नहीं मिल सका।