फुटबॉल में बुलंद हौसले से उड़ान भर रहीं बेटियां
बेतिया। गांव हो या शहर कभी फुटबॉल सिर्फ लड़कों का खेल होता था। लेकिन अभी गांव की बेटि
बेतिया। गांव हो या शहर, कभी फुटबॉल सिर्फ लड़कों का खेल होता था। लेकिन अभी गांव की बेटियां भी इसमें उड़ान भर रही हैं। पश्चिम चंपारण जिले के नरकटियागंज प्रखंड के महुअवा गांव के खेल मैदान में सुबह-शाम बेटियां टीशर्ट और लोअर पहनकर फुटबॉल पर किक लगाती दिख जाती हैं। इस गांव की एक बेटी वाजदा तबस्सुम ने राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है।
अभाव से जूझते हुए महुअवा की एक दर्जन बेटियां फुटबॉल में भविष्य संवार रही हैं। पढ़ाई और घर के काम के बीच समय निकाल प्रतिदिन तीन किलोमीटर दूर अभ्यास करने पहुंचती हैं। फुटबॉल खिलाड़ी लक्की कुमारी, निशा कुमारी, सुप्रिया, सुमन, सगुन कुमारी, शिकु कुमारी ने बताया कि बचपन से ही फुटबॉल खेलने की आदत रही है। खेत-खलिहान में खेलते थे। अपनी मेहनत के चलते यहां की लड़कियां अंडर-14 में राज्य टीम से ओडिशा और हरियाणा में खेल चुकी हैं। 2014 में ओडिशा के कटक में आयोजित फुटबॉल प्रतियोगिता में जीत हासिल की। 2018 में तरंग प्रतियोगिता के दौरान अच्छा प्रदर्शन किया।
टीपी वर्मा कॉलेज के खेलकूद प्रशिक्षक सुनील कुमार वर्मा के सहयोग से सभी बच्चियां प्रशिक्षण ले रही हैं। हालांकि इनके पास महंगे जूते और किट नहीं हैं, पर जज्बा कम नहीं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने की चाहत है।
ऐसे शुरू हुआ गांव में फुटबॉल : बात वर्ष 1986 की है। यहां की वाजदा तबस्सुम फुटबॉल खेलती थीं। वह देश स्तर की खिलाड़ी बनीं। फिलहाल कश्मीर में खेल पदाधिकारी हैं। उसकी सफलता देख गांव की अन्य लड़कियां प्रेरित हुईं। गांव के उत्क्रमित मध्य विद्यालय में वाजदा तबस्सुम के भाई मो. असलम प्रधान शिक्षक बने तो उन्होंने बेटियों में फुटबॉल के प्रति उत्साह जगाया। हर तरह की मदद की।
प्रशिक्षक सुनील कुमार वर्मा कहते हैं कि यहां की बेटियों में प्रतिभा और जुनून है। आर्थिक तंगी के बावजूद आत्मविश्वास से भरी हैं।
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