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सड़कों पर सरपट दौड़ रहे डग्गामार वाहन, राहगीरों की जान पर रहता खतरा

सूबे के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कुछ दिन पहले प्रदेश में 15 वर्ष पुराने वाहनों के परिचालन पर रोक लगाने की बात कही कही थी। लेकिन जिले में ऐसे वाहनों के परिचालन पर रोक आसान नहीं दिख रही है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 11 Jun 2019 01:43 AM (IST)Updated: Tue, 11 Jun 2019 01:43 AM (IST)
सड़कों पर सरपट दौड़ रहे डग्गामार वाहन, राहगीरों की जान पर रहता खतरा
सड़कों पर सरपट दौड़ रहे डग्गामार वाहन, राहगीरों की जान पर रहता खतरा

बेतिया । सूबे के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कुछ दिन पहले प्रदेश में 15 वर्ष पुराने वाहनों के परिचालन पर रोक लगाने की बात कही कही थी। लेकिन जिले में ऐसे वाहनों के परिचालन पर रोक आसान नहीं दिख रही है। यहां आज भी कई दशक पुराने वाहन वाहन धड़ल्ले से चलाए जा रहे हैं। विभागीय उदासीनता कहें या वाहन मालिकों से मिलीभगत, धुआं उगलते वाहनों के परिचालन पर रोक के लिए यहां कभी कोई सुगबुगाहट नहीं दिखती है। आप जिले के किसी भी सड़क पर निकल जाएं तो पुराने और खटारा वाहनों को सरपट दौड़ते आसानी से देख सकते हैं। खटारा वाहनों का उपयोग निजी कामों में तो होता ही है ऐसे वाहनों का सार्वजनिक और भाड़े के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। सुदूरवर्ती इलाकों की बात तो दूर, जिला मुख्यालय स्थित बस स्टैंड और विभिन्न वाहन पड़ाव से प्रतिदिन सैकड़ों खटारा वाहन यात्रियों को ढोते नजर आते हैं। विभागीय अधिकारियों के कार्यालय से चंद कदमों की दूरी पर ही बस स्टैंड अवस्थित है जहां से प्रतिदिन जिले के अलावा सूबे या देश के अन्य क्षेत्र के लिए बसें और अन्य गाड़ियां खुलती हैं। इसमें से कई वाहन विभागीय नियमों का उल्लंघन कर चलते हैं। ऐसे वाहनों के परिचालन को रोकने वाला कोई नहीं है। हां, कभी-कभार जांच के नाम पर जरूर खानापूरी की जाती है।

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सेटिग-गेटिग से चलते वाहन

आमलोगों का कहना है कि पुराने और खटारा हो चुके वाहनों का परिचालन विभाग के पदाधिकारियों और कर्मियों की सेटिग-गेटिग से होता है। चंद सिक्कों की खनक की बदौलत ऐसी गाड़ियों का परिचालन होता है। यात्री खटारा वाहनों पर जान जोखिम में डाल सवारी करने को मजबूर हैं। जब जिला मुख्यालय का यह हाल है तो जिले के अन्य इलाकों का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।

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शहर में भी झाझा मेल का होता परिचालन

आश्चर्य तो यह है कि शहर की सड़कों पर भी झाझा मेल का परिचालन होता है। लोग इसे जुगाड़ गाड़ी भी कहते हैं। पंपिग सेट के इंजन को लोहे के कुछ एंगल में कसकर वाहन का लुक दे दिया जाता है। इसे आम लोग झाझा मेल या जुगाड़ गाड़ी के नाम से जानते हैं। शहर की सड़कों पर धुआं उगलते झाझा मेल को दौड़ते कभी भी देखा जा सकता है। आखिर अधिकारियों की नजर इस पर क्यों नहीं पड़ती है, यह सहज रूप से समझा जा सकता है।

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रोक के लिए विभाग के पास नहीं कोई योजना

धुआं उगलते, पुराने और खटारा, बिना मानक के चलने वाली गाड़ियों के परिचालन पर रोक के लिए विभाग के पास कोई माकूल योजना नहीं है। ऐसे वाहनों के परिचालन पर रोक में सिर्फ बयानबाजी से काम चलाया जा रहा है। सड़कों पर चलने वाले पुराने वाहनों की तादाद सैकड़ों नहीं हजारों में है। एक अनुमान के मुताबिक यदि 15 वर्ष पुराने वाहनों के परिचालन पर रोक लगा दी जाए तो जिले से तकरीबन आधे वाहन सड़कों से गायब हो जाएंगे। खटारा वाहनों के परिचालन से जिले में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है।

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इस मामले में विभाग सख्त है। लगातार जांच व छापेमारी कर ऐसे वाहन मालिकों से जुर्माना वसूल किए जाते हैं। जिले में प्रदूषण जांच केंद्रों की भी संख्या बढ़ाने की पहल शुरू कर दी गई है।

सुनील कुमार सिंह

एमवीआइ, बेतिया।

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