Move to Jagran APP

राजघराने ने संजोया पर बचा न सके हम

धन्य था बेतिया का राजघराना जिसने हजारी पशु मेले को संजोये रखा। महाराजा हरेन्द्र किशोर हों या फिर महारानी जानकी कुंवर, सबों के समय में इस मेले की रौनक पूर्णिमा की चांद से कम नहीं थी।

By Edited By: Published: Mon, 10 Oct 2016 12:46 AM (IST)Updated: Mon, 10 Oct 2016 12:46 AM (IST)
राजघराने ने संजोया पर बचा न सके हम

बेतिया। धन्य था बेतिया का राजघराना जिसने हजारी पशु मेले को संजोये रखा। महाराजा हरेन्द्र किशोर हों या फिर महारानी जानकी कुंवर, सबों के समय में इस मेले की रौनक पूर्णिमा की चांद से कम नहीं थी। बुजुर्गों की मानें तो राज घराना के पूर्व से ही हजारी में पशुओं का मेला लगना आरंभ हुआ था जो दशक भर पूर्व तक वजूद में रहा। पर एकाएक यह समाप्ति के आगोश में चला गया। विडंबना यह है कि हम इसे बचा नहीं सके।

loksabha election banner

दशहरा का पावन माह आरंभ होते ही देव बेला आरंभ होने से पूर्व ही जिला मुख्यालय में आने वाली सभी सड़कों पर पशुओं की कतार लग जाती थी। सूर्य की लालिमा अभी जमीन पर दिखाई नहीं देती कि सैकड़ों पशु रास्ते से बेतिया स्थित हजारी पशु मेला में पहुंच जाया करते थे। पशुओं के पैरों की आवाज से सड़क के किनारे रहने वालों के घरों के लोग जग जाते थे। पशुपालकों का आपस में बातचीत करते सड़कों पर चलना तथा किसी किसी पशुपालक के पराती, बिहूला गीत गाते सड़कों से गुजरने को भला पुराने लोग कैसे भूल सकते हैं।

मेला में पशुपालक अपनी बैल, गाय, भैस आदि को लेकर पहुंचा करते थे। ज्यों ही किसी भी पशुपालक का मवेशी मोलजोल के बाद बिक जाया करते थे। वहां पर आवाज आती थी कि लिखनी पांडेय हाजिर हो। यह नाम मवेशी के खरीद बिक्री का कागजात बनाने वालों का रखा गया था। लिखने वाले को लिखनी तथा योग्य व्यक्ति को पांडेय के उप नाम से पशुपालक बुलाया करते थे। प्रत्येक दिन सैकड़ों पशुओं की खरीद बिक्री हुआ करती थी। पशुओं की संख्या व इसकी खरीद बिक्री को देखते हुए हजारी पशु मेला की तुलना सोनपुर के ऐतिहासिक मेला से की जाती थी। दिन रात मेला में रौनक का केंद्र हुआ करता था।

पर न जाने पशु मेला पर किसकी काली छाया पड़ गई। मेला तो समाप्त हो ही गया साथ ही अब स्थिति यह है कि हजारी के वजूद पर ही संकट है। मवेशियों के खाने के लिए बनाये गये सभी मेढ़ समाप्त हो गये। अब परिसर में कचरा भरा पड़ा है। फिलहाल तो जलजमाव के कारण यह तालाब सा दिख रहा है। हजारी को चारों तरफ से अतिक्रमित किया जा रहा है। नित्य नये भवन का निर्माण यहां गलत तरीके से किया जा रहा है। दशहरा का पावन माह फिर एक बार चल रहा है पर एक भी पशु यहां देखने को नहीं मिल पा रहा है। लोग अतीत को याद कर रहे हैं। एक तरफ जहां किसानी को सरकार बल दे रही है। पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए पशुपालकों को प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, गो पालन योजना समेत अन्य योजनाओं से ऋण मुहैया कराये जा रहे है। खेतों में मवेशी का खाद देने, जैविक विधि से खेती करने पर बल दिया जा रहा है। ऐसे में पशुपालकों के इस ऐतिहासिक मेला के खत्म होने का मलाल किसान व पशुपालकों को कुछ ज्यादा ही है। साथ ही मेला में खाने पीने के सामानों की बिक्री करने वाले, मवेशियों के लिए रस्सी बेचने वालों व इसे सजाने का साधन बेचने वालों का धंधा भी बंद हो गया। काश कोई भी इस मेले को बचाने के लिए आगे आता।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.