Bihar Vidhan sabha Chunav Result : प्रवासियों और महिलाओं की कतार ने बदला चुनावी परिणाम
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में प्रवासी मजदूरों और महिलाओं की भागीदारी महत्वपूर्ण रही। छठ वापस आए प्रवासियों और महिलाओं ने मतदान में सक्रिय रूप से भाग लिया, जिससे कई सीटों पर चुनावी परिणाम बदल गए। महिलाओं ने शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया, जबकि युवाओं ने रोजगार और विकास को प्राथमिकता दी। इन सभी कारकों ने मिलकर चुनाव के नतीजों को प्रभावित किया।

पश्चिम चंपारण के मैनाटाड़ के बूथ कताार में महिलाएं। जागरण
जागरण संवाददात, बेतिया (पश्चिम चंपारण)। जिले की भूमि राजनीतिक रूप से काफी उर्वर रही है। इस धरती ने समय-समय पर सूबे के सियासत को प्रभावित किया है। इस बार के विधानसभा चुनाव में भी जिले की सियासत काफी गर्म रही।
विगत छह अक्टूबर को अधिसूचना जारी होने के साथ ही जिले की चुनावी तपिश एकाएक उफान पर आ गई। नौ विधान सभा सीटों पर इस बार की जंग शुरू से ही काफी रोचक रही। अधिकतर सीटों पर एनडीए और महागठबंधन में जबरदस्त मुकाबला रहा।
पूर्व उपमुख्यमंत्री की हॉट सीट बेतिया में निर्दलीय प्रत्याशी रोहित सिकारिया व चनपटिया में जनसुराज प्रत्याशी मनीष कश्यप ने लड़ाई को त्रिकोणीय बनाया। बावजूद असली लड़ाई संगठन, रणनीति और उम्मीदवार की जमीनी पकड़ पर टिकी रही।
नामांकन में भीड़ जुटाकर उम्मीदवारों ने अपनी ताकत का एहसास कराया। नामांकन और नाम वापसी के बीच की अवधि थोड़ा शांत रहा, लेकिन नाम वापस होते-होते तस्वीर साफ हो गई। तकरीबन सभी सीटों पर सीधा आमना-सामना हुआ।
बेतिया में निर्दलीय की मौजूदगी ने समीकरण उलझाया, तो चनपटिया में मनीष कश्यप ने भी मैदान में अपनी उपस्थिति दर्ज कराया, लेकिन वे इसे वोट में नहीं बदल सके।
नरकटियागंज में महागठबंधन के घटक दलों राजद और कांग्रेस की आपसी लड़ाई ने भाजपा का रास्ता साफ कर दिया। इस बार जिले का चुनावी परिदृश्य सीधा नहीं वरन मिला जुला रहा। दिग्गजों की रैली, कार्यकर्ताओं की रणनीति और चुनाव प्रबंधन, प्रत्याशियों की व्यक्तिगत छवि, बड़ी संख्या में युवकों और महिलाओं की भागीदारी, प्रवासी मजदूरों की उपस्थिति ने चुनाव को काफी हद तक प्रभावित किया।
चुनाव नजदीक आते ही गांवों में बढ़ा हलचल
गांवों में शुरुआती दिनों में चुनाव का ताप कम रहा। लोग दीपावली व छठ पर्व की तैयारी में व्यस्त थे। लेकिन त्योहार में शामिल होने के लिए बाहर से घर लौटे प्रवासियों ने राजनीतिक चर्चा को एकाएक तेज कर दिया।
चाय-पान की दुकानों, चौपालों और बाजारों में मतदान प्रतिशत से लेकर उम्मीदवारों की छवि तक पर खुली बहसें होने लगीं। चौक चौराहे और गलियारों की बहस ने ग्रामीण क्षेत्रों में भी चुनावी ताप बढ़ा दिया।
पुरुषों के साथ-साथ गांव की महिलाएं भी मुखर हो गई। खेत खलिहान में भी चुनाव की चर्चा होने लगी। मुकाबले की दिशा बदलने में बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं की भूमिका निर्णायक दिखी।
एनडीए के संगठित मॉडल के सामने महागठबंधन ने जातीय समीकरणों और स्थानीय असंतोष को मुद्दा बनाया। कई जगह प्रचार के अंतिम दो दिनों में वोटो का ध्रुवीकरण हुआ। कहीं विकास, कहीं बेरोजगारी, तो कही स्थानीय समस्याएं मुख्य एजेंडा रहा।
दिग्गज नेताओं ने बदला चुनावी फिजा
इस बार जिले में बड़े नेताओं का आवागमन भी खूब रहा। आठ नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कुड़िया कोठी की रैली ने भाजपा-एनडीए कार्यकर्ताओं में जोश भरा। बिना नाम लिए विपक्ष पर तंज और स्थानीय मुद्दों को छूने वाले भाषण को एनडीए खेमे ने गेम चेंजर माना। इसका असर जिले के सभी नौ विधानसभा सीटों पर पड़ा।
बेतिया में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी हुंकार भरकर मतदाताओं में जोश ला दिया। दूसरी ओर महागठबंधन के नेताओं की सभाओं ने अपने समर्थक वर्ग पर पकड़ मजबूत की।
चनपटिया में कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी और नरकटियागंज में राजद के तेजस्वी यादव की सभाओं में युवाओं की उपस्थिति उत्साहजनक रही। जनसुराज ने भी पूरा जोर लगाया, लेकिन कामयाब नहीं हो सकी। चनपटिया के अलावा जन सुराज अन्य जगहों पर बेअसर रही।
मतदान से लेकर मतगणना तक रहा उत्साह
जिले में मतदान के दिन लोगों का उत्साह देखते ही बना था। बूथों पर महिलाओं और युवाओं की लंबी कतारों ने संकेत दे दिया कि टक्कर काटे का है। महिलाओं ने मतदान में चढ़ बढ़ कर हिस्सा लिया। युवाओं की भी जबर्दस्त भागीदारी रही। आजादी के बाद पहली बार जिले में रिकार्ड 71 प्रतिशत मतदान हुआ।

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