सदियों पूर्व विदेशी व्यापारियों का व्यवसायिक केन्द्र रहा सोनपुर
जब सड़कों का दूर-दूर तक नामोनिशान नहीं था तब भी हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला भारत सहित अनेक विदेशी व्यापारियों का प्रमुख व्यवसायिक केन्द्र था।
वैशाली। जब सड़कों का दूर-दूर तक नामोनिशान नहीं था तब भी हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला भारत सहित अनेक विदेशी व्यापारियों का प्रमुख व्यवसायिक केन्द्र था। तब जल मार्ग ही एकमात्र साधन हुआ करता था। ईरान, मैनचेस्टर, अफगानिस्तान तथा ब¨कघम आदि देशों व उस समय के विकसित शहरों से व्यापारिक स् तर पर जुड़ा हुआ था।
मेले में जरूरत के सामानों के अलावा ऐसी दुर्लभ वस्तुएं भी मेला की दुकानों पर उपलब्ध जिसका मिलना आम दिनों में मुमकिन नहीं था। तब यहां मेला भर देश के विभिन्न रियासतों के राजे रजवाड़ों का शिविर यहां के अंग्रेजी बाजार में लगा करता था। एस.विल्सन ने 1852 में मोंआर ऑन बिहार में लिखा है मेले की छोटी मगर भव्य दुकानों में मैनचेस्टर, ब¨कघम, तिब्बत, नेपाल, अफगानिस्तान, दिल्ली, कानपुर तथा काश्मीर निर्मित सामान उपलब्ध थे। 23 नवम्बर 1871 को इस मेले में वायसराय लॉर्ड मेयो तथा नेपाल नरेश का शाही दरबार लगा।
1857 के स्वतंत्रता संग्राम को कुचलने की मदद के एवज में वायसराय ने नेपाली सेनाध्यक्ष व प्रधानमंत्री राणा शमशेर जंग बहादुर को खिलौत की उपाधी से अलंकृत किया। 26 नवम्बर 1873 को इसी मेले में लगी शाही दरबार में सुगौली संधी की संपुष्टि हुई। मेले से जुड़ी ऐसी अनेकों ऐतिहासिक प्रसंग हैं। आज अपने समृद्ध अतीत के गौरव व संस्कृति को संजोए यह मेला आधुनिकता के आंधी में भी अपने परंपरा को अक्षुण्ण बनाए प्रगति पथ पर अग्रसर है।
राजे-महाराजे का स्थान मेला घूमने आए समृद्ध घरानों ने लिया है। रथ और बघियों की जगह अब इस विख्यात मेले में बडी-बडी निर्माता कंपनियों के लक्जरी कारों का शो रूम व बिक्री केन्द्र ने ले लिया है। वैसे ही सदियों के अनवरत सफर में इस मेले ने समय के साथ कई बदलाव देखे हैं। सब कुछ बदलता चला गया। नहीं बदला तो केवल धर्म कर्म का सिलसिला। आज भी यहां आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु की यह कामना होती है कि चाहे जैसे भी हो एक बार बाबा हरिहर नाथ का दर्शन हो जाए।