हरिहर क्षेत्र मेले की हालत है बिन दूल्हे के बारात जैसी
कहते हैं कि बारात चाहे कितना ही सज-धजकर तामझाम के साथ निकले, लेकिन दूल्हे के बगैर सब कुछ सूना-सूना लगता है।
वैशाली। कहते हैं कि बारात चाहे कितना ही सज-धजकर तामझाम के साथ निकले, लेकिन दूल्हे के बगैर सब कुछ सूना-सूना लगता है। विश्वविख्यात हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले में मुख्यमंत्री और महामहिम राज्यपाल के आने की परंपरा टूट जाने से इसकी स्थिति भी बिन दूल्हे वाली बारात जैसी हो गई है। लगभग ग्यारह वर्ष पूर्व यह परंपरा थी कि पशुपालन विभाग द्वारा आयोजित पशु दौड़ को देखने एवं उन्नत नस्ल के पशुओं के पशुपालकों को पुरस्कृत करने महामहिम का आगमन होता था। मेले की गहमा-गहमी के बीच महामहिम मेले का परिभ्रमण भी करते थे। लेकिन यह रवायत भी मेले से समाप्त हो गई। मुख्यमंत्री छह-सात वर्ष पूर्व एक बार मेले के दौरान यहां आए थे। लेकिन उसके बाद ऐसी परंपरा बनती चली गई कि उद्घाटन से समापन के बीच सूबे के विभिन्न विभागों के मंत्रियों और उच्चाधिकारियों का तो आवागमन होता है लेकिन मुख्यमंत्री का आगमन नहीं होता। मेला धीरे-धीरे अपनी सफर तय करते सरकारी अवधि की तय समय-सीमा के करीब पहुंचते जा रहा है। लेकिन अभी तक मुख्यमंत्री के यहां नहीं आने से लोगों में तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं। चर्चाओं में यह भी शामिल है कि राजगीर महोत्सव सहित राज्य में लगने वाले कई मेले मुख्यमंत्री का जाना तो होता है लेकिन उनकी अगुवानी से यह भी विश्वप्रसिद्ध मेला ही वंचित रह जाता है। हालांकि इससे मेले की भीड़ पर या यहां आने वाले लाखों श्रद्धालुओं पर कोई असर नहीं पड़ता कि मेले में कौन सी राजनीतिक हस्ती, मंत्री या उच्चाधिकारी आए या नहीं आए। देश-विदेश के सैलानी और ग्रामीण अंचलों के लोग पूरी आस्था और उमंग के साथ इस मेले में आते हैं, उनका केवल एक ही उद्देश्य होता है कि जिस मेले की चर्चा सामान्य ज्ञान की पुस्तकों और देश-विदेश में होती है, उसे देखकर हम भी लुत्फ उठाएं। एक तरफ मेला की बैठकों में गैर सरकारी सदस्यों से वर्षो से यह सवाल उठाया जाता रहा है कि जिस धार्मिक, पौराणिक व ऐतिहासिक मेले का उद्घाटन राष्ट्रपति से कराया जाए, या राज्यपाल या मुख्यमंत्री से कराया जाए। वहीं इसे विडंबना ही कहेंगे कि मेले की स्थापित परंपरा भी ध्वस्त होती चली जा रही है। राज्यपाल या मुख्यमंत्री के आने से इसके धार्मिक या सांस्कृतिक व एतिहासिक पक्ष पर तो कोई असर नहीं पड़ता, हां, ये अवश्य होता कि इस मेले का गौरव और निखर उठता। व्यवस्था को इस पर भी गहराई से विचार करना चाहिए।