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शप्तशती के श्लोक से गुंजायमान हुआ वातावरण

जिले के विभिन्न भागों में बुधवार को कलश स्थापना के साथ वासंतिक नवरात्र शुरू हो गया।

By JagranEdited By: Published: Thu, 30 Mar 2017 03:07 AM (IST)Updated: Thu, 30 Mar 2017 03:07 AM (IST)
शप्तशती के श्लोक से गुंजायमान हुआ वातावरण
शप्तशती के श्लोक से गुंजायमान हुआ वातावरण

वैशाली। जिले के विभिन्न भागों में बुधवार को कलश स्थापना के साथ वासंतिक नवरात्र शुरू हो गया। आचार्यो ने दुर्गासप्तशती के पाठ किए। पूरे विधि-विधान एवं वैदिक मंत्रोच्चार के साथ कलश स्थापना की गई। वैदिक मंत्रोच्चार एवं दुर्गा सप्तशती के श्लोक से पूरा शहर गूंज उठा। मां की पूजा को मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने लगी है। पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया है। हाजीपुर स्टेशन चौक स्थित दुर्गा मंदिर, गांधी आश्रम स्थित दुर्गा मंदिर, कोनहारा घाट स्थित श्री बड़ी दुर्गा मंदिर, नया टोला स्थित दुर्गा मंदिर एवं बागमली व दिग्घी स्थित दुर्गा मंदिर आदि स्थानों पर विशेष पूजा-अर्चना की जा रही है।

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बुधवार को श्रद्धालुओं ने माता के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री व दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी की आराधना व पूजा-अर्चना की। गुरुवार को मां के तीसरे स्वरूप देवी चंद्रघंटा की पूजा अर्चना की जाएगी। इससे पहले पूरे वैदिक मंत्रोच्चार के साथ सभी पूजा-स्थलों पर पूरे विधि-विधान के साथ कलश स्थापना व देवी का विशेष आह्वान किया गया। घंटा, मृदंग व करतल ध्वनि के साथ मां अंबे की विशेष पूजा-अर्चना व आरती उतारी गई।

शालपुत्रि का नाम सर्वप्रथम:

मां शैलपुत्री के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि नव दुर्गा में गिरिराज हिमवान की पुत्री शैलपुत्री का नाम सर्वप्रथम आता है। श्वेत एवं दिव्य स्वरूपा वृषभ पर आरूढ़ आदि महाशक्ति रूपा सती पूर्व जन्म में दक्ष प्रजापति की पुत्री थी। जब दक्ष ने एक यज्ञ के आयोजन में सभी देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन आदिदेव भगवान शंकर को नहीं बुलाया। सती हठपूर्वक भगवान शंकर को साथ लेकर अपने पिता के घर गई थी। दक्ष प्रजापति ने सती के सामने ही अपने जवाई भगवान भोलेनाथ का अपमान कर दिया। सती बर्दाश्त न कर सकी। स्वामी के अपमान से तिलमिला उठी सती यज्ञ वेदी में कूद गई तथा अपनी शक्ति का आह्वान करके अपने प्राण त्याग दिए।

कई पंडितों ने बताया ने माता शैलपुत्री के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि नव दुर्गा में गिरिराज हिमवान की पुत्री शैलपुत्री का नाम सर्वप्रथम आता है। श्वेत दिव्य स्वरूपा वृषभ पर आरूढ़ आदि महाशक्ति रूपा सती पूर्वजन्म में दक्ष प्रजापति की पुत्री थी। जब दक्ष ने एक यज्ञ के आयोजन में सभी देवताओं का आमंत्रित किया, लेकिन आदिदेव भगवान शंकर को नहीं बुलाया। सती हठपूर्वक भगवान शंकर के साथ लेकर अपने पिता के घर गई थी। दक्ष प्रजापति ने सती के सामने ही अपने जवाई भगवान भोलेनाथ का अपमान कर दिया। सती इसे बर्दाश्त न कर सकी। स्वामी के आगमन से तिलमिला उठी सती यज्ञ वेदी में कूद गयी तथा अपनी शक्ति का आवाह्न करके अपने प्राण त्याग दिए।

पंडितों ने माता के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी के बारे में प्रकाश डालते हुए कहा कि सचिदानंदमय ब्रह्मस्वरूप की प्राप्ति करना जिनका स्वभाव हो वे ब्रह्मचारिणी है। यह देवी दाएं हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल लिए रहती है। उनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।

मां के तीसरे स्वरूप देवी चंद्रघंटा की पूजा आज

मां के तीसरे स्वरूप देवी चंद्रघंटा की आराधना एवं पूजा-अर्चना की जाएगी। कई पंडितों ने माता के तीसरे स्वरूप देवी चंद्रघंटा के बारे में प्रकाश डालते हुए बताया कि चंद्रमा जिनकी घंटा में स्थित हो, उस देवी का नाम चंद्रघंटा है। इस देवी के दस हाथ है। वे खड्ग और अन्य अस्त्र-शस्त्र से विभूषित है। ¨सह पर सवार इस देवी की मुद्रा युद्ध के लिए उद्धल रहने की है। इस देवी की आराधना से साधक में वीरता और निर्भरता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है। पंडितों ने आज का विशेष भोग दूध और दूध से तैयार मिष्ठान बताया है। जिसे चढ़ाने से दुख व दरिद्रता दूर होती है।


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