सोनपुर के पहलेजाधाम में कल्पवास के लिए पहुंचने लगे श्रद्धालु
वैशाली। देवोत्थान एकादशी और कार्तिक पूर्णिमा गंगा स्नान के पहले पहलेजाधाम में सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुरूप कल्पवास के लिए साधु-संतों और श्रद्धालुओं का आना शुरू हो गया है। यहां आने वाले संत पहलेजा में गंगा तट के किनारे कल्प वास कर रहे हैं।
वैशाली।
देवोत्थान एकादशी और कार्तिक पूर्णिमा गंगा स्नान के पहले पहलेजाधाम में सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुरूप कल्पवास के लिए साधु-संतों और श्रद्धालुओं का आना शुरू हो गया है। यहां आने वाले संत पहलेजा में गंगा तट के किनारे कल्प वास कर रहे हैं। उनके आने का सिलसिला जारी है। छत्तर मेले के रूप में प्रसिद्ध सोनपुर मेले पर हाल के वर्षों में आधुनिकता की चकाचौंध भी दिखने लगी है, लेकिन यह भी सच है कि इस मेले के मूल स्वरूप धर्म-कर्म और गंवई है।
हरिहर क्षेत्र मेला का मौसम आते ही सौन्दर्य और विकास की योजनाएं खूब बनती हैं लेकिन इसमें धर्म-कर्म को बढ़ावा देने तथा इस क्षेत्र को धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किए जाने की बातें पीछे छूट जाती हैं। वैसे तो पूरे वर्ष यहां धार्मिक तथा आध्यात्मिक कार्यों का क्रम जारी रहता है, किन्तु कार्तिक मास की बात ही कुछ और है। इस माह का आरंभ होते ही यहां के पहलेजाघाट धाम के पावन दक्षिणमुखी गंगा तट पर विभिन्न जिलों से आए कल्पवासियों का जो आगमन शुरू होता है वह छठ महापर्व से लेकर देवोत्थान के बाद कार्तिक पूर्णिमा तक बढ़ता ही जाता है। इस बार कल्पवास के लिए एक तरफ जहां गंगा तट पर सीतामढ़ी जिले के मीनापुर से आए श्रीश्री 108 त्यागी बाबा तथा श्रीश्री 108 रामचंद्र दास जी बैठे जप-तप कर रहे हैं, वहीं पहलेजा घाट धाम स्थित राम जानकी मंदिर परिसर में प्रेमनगर सीतामढ़ी के जगदीश झा व रामपति देवी, मुजफ्फरपुर जिले की वीणा देवी, यहीं के पंकज कुमार, पार्वती देवी तथा नागेन्द्र कुमार आदि कल्पवास के दौरान भजन कीर्तन में लीन हैं।
पहलेजा घाट धाम मेला विकास समिति के अध्यक्ष लाल बाबू राय बताते हैं कि छठ महापर्व तक कल्पवासियों की संख्या में काफी वृद्धि हो जाती है। सिमरिया घाट में कल्पवासियों की सुविधा के मद्देनजर सरकार व्यापक व्यवस्था करती है जबकि यहां कोई सुविधा नहीं है । यहां कल्पवास के लिए पहुंचे साधु-संतो तथा श्रद्धालुओं से गंगा का तट भक्तिमय हो उठा है । अब ये सभी कल्पवासी कार्तिक पूर्णिमा को गंगा स्नान तथा बाबा हरिहर नाथ का जलाभिषेक के बाद ही यहां से प्रस्थान करेंगे।
हरिहरनाथ मंदिर के मुख्य अर्चक आचार्य सुशील चंद्र शास्त्री कहते हैं कि धर्म शास्त्रों में माघ महीने में कल्पवास की महत्ता का उल्लेख किया गया है। उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास के दोहे की चर्चा करते हुए बताया कि माघ मकरगत रवि जब होई,तीरथपति आवहीं सब कोई। आचार्य ने बताया श्रीकृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए गोपियों ने भी कल्पवास किया था। एक माह तक एक स्थान पर रहते हुए भगवान विष्णु की उपासना में लीन रहने पर ही कल्पवास का फल प्राप्त होता है।
दूसरी ओर हरिहर क्षेत्र में धर्म-कर्म को लेकर सरकार गंभीर नहीं है। इसी से समझा जा सकता है कि यूनिवर्सल सतयुग स्टेज इंडिया न्यास के आवेदन के आलोक में अपनी रिपोर्ट सोनपुर एसडीएम को सौंपते हुए अंचलाधिकारी ने पत्रांक 1461 में 12 अक्टूबर को लिखा है कि हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला का स्वरूप बदलता जा रहा है। इस मेला का धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व दिनों-दिन घटता जा रहा है। उधर यहां के मेला प्रेमियों का मानना है कि निश्चित रूप से मेला का समय के साथ आधुनिकीकरण होना चाहिए किन्तु धर्म- कर्म की महत्ता को नजर अंदाज करके नहीं। धर्म ही इस मेले का आधार है।