बदलते समय के साथ परंपरागत खेती से मुंह मोड़ने लगे किसान
करजाईन बाजार से गुरुवार की शाम में मोटरसाइकिल लेकर भागने वाले तीन अपराधियों को करजाईन थाना पुलिस ने बाइक सहित गिरफ्तार कर लिया है। गिरफ्तार आरोपितों की पहचान करजाईन थाना क्षेत्र के पदुमनगर निवासी अभिषेक मेहता एवं प्रतापगंज थाना के सितुहर निवासी अखिलेश यादव एवं दौलतपुर निवासी सुमन कुमार यादव के रूप में हुई है। इस संबंध में पीड़ित करजाईन थानाक्षेत्र के सीतापुर निवासी अशोक पासवान ने थाने में दिए आवेदन में बताया कि रविवार की शाम में वह नेशनल कोचिग सेंटर के पास अपनी बाइक खड़ी कर किसी का इंतजार कर रहा था।
संवाद सहयोगी, त्रिवेणीगंज (सुपौल): अनुमंडल क्षेत्र में चीन, कोनी, बाजरा के बाद गरीबों का पेट भरने वाला मोटा अनाज अब अमीरों का शौकिया आहार बनता जा रहा है। किसानों ने भी इसकी खेती से मुंह मोड़ लिया है परिणामस्वरूप अब यह इतना महंगा हो गया है कि गरीबों के पहुंच से दूर हो चुका है। कम उपज व ज्यादा समय लेने की वजह से इन फसलों की खेती करने से किसान मुंह मोड़ते जा रहे हैं। जिसके चलते क्षेत्र में इन फसलों की खेती नहीं के बराबर हो रही है। चीन, कोनी, बाजरा, मरुआ, जौ व अल्हुआ जैसी फसलें अब गरीबों को नसीब नहीं है। कभी यह इतना सस्ता था कि गरीबों का मुख्य भोजन हुआ करता था। उस समय इसकी कीमत भी कम थी। गरीब तबके के लोग बड़ी शान से इससे गुजारा कर लेते थे। बदलते समय के साथ अब यह अमीरों का शौक बन कर रह गया है। अब इसकी कीमतें भी काफी बढ़ गई है। एक तो क्षेत्र में हर जगह यह मिलता नहीं है और मिलता भी है तो काफी महंगी दर पर। यह हाल है कि चीन, कोनी, बाजरा, तो विलुप्त हो गया है। मरुआ का आटा 40 से 50 रुपये प्रतिकिलो, अल्हुआ 15 से 20 रुपये प्रतिकिलो जौ 100 रुपये प्रतिकिलो की दर से मिल रहा है। चीन कोनी, बाजरा, मरूवा, जौ, अलुवा, तीसी व खेसारी कोसी सहित सीमांचल की कभी मुख्य फसल हुआ करती थी। उस समय यहां के लोग बड़े शौक से इन फसलों की खेती करते थे और इसी फसल पर यहां के गरीबों का पेट भरता था। इसके अलावा भोजन का कोई दूसरा विकल्प भी नहीं था। लेकिन बदलते परिवेश में यहां के लोग इन फसलों को छोड़ कर धान, गेहूं व सरसों की ओर अग्रसर हो गए हैं।
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किसान नहीं ले रहे दिलचस्पी किसानों ने इन मोटे अनाजों से मुंह मोड़ लिया है। किसान गुरुलाल यादव, रामधारी यादव, रामरूप यादव, जुड़ीलाल यादव, तेजनारायण साह, बौद्धी यादव कहते हैं कि किसान अब इन फसलों की खेती में दिलचस्पी नहीं लेते कारण है कि इसमें उपज कम होती है और लाभ भी कम मिलता है। इसलिए वे हाईब्रीड तकनीक को अपना रहे हैं।