घटतौली पर विभाग का नहीं नियंत्रण, होती रहती फजीहत
करजाईन बाजार से गुरुवार की शाम में मोटरसाइकिल लेकर भागने वाले तीन अपराधियों को करजाईन थाना पुलिस ने बाइक सहित गिरफ्तार कर लिया है। गिरफ्तार आरोपितों की पहचान करजाईन थाना क्षेत्र के पदुमनगर निवासी अभिषेक मेहता एवं प्रतापगंज थाना के सितुहर निवासी अखिलेश यादव एवं दौलतपुर निवासी सुमन कुमार यादव के रूप में हुई है। इस संबंध में पीड़ित करजाईन थानाक्षेत्र के सीतापुर निवासी अशोक पासवान ने थाने में दिए आवेदन में बताया कि रविवार की शाम में वह नेशनल कोचिग सेंटर के पास अपनी बाइक खड़ी कर किसी का इंतजार कर रहा था।
हाट-बाजार में बिना सत्यापन के ईट-पत्थर के बटखरे से की जाती है तौल -लोहे के बटखरे को जलाकर उसमें भरे रंगा को विक्रेता कर देते हैं कम जागरण संवाददाता, सुपौल : सामान की खरीदारी में घटतौली से रोजना उपभोक्ताओं को चूना लगाया जा रहा है। जिले का कोई ऐसा हाट-बाजार नहीं जहां बिना सत्यापन के ईट-पत्थर के कथित बटखरे नहीं चल रहे हों। रही-सही कसर तराजू कांटा से पूरी कर दी जा रही है। विभाग उदासीन है तो जनता मजबूर।
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ईट-पत्थर के बटखरे अधिकांश विक्रेताओं खासकर फुटकर खाद्यान्न, फल, सब्जी, मांस-मछली आदि के पास 50 ग्राम से लेकर दो किलो तक के ईंट पत्थर के वाट जरूर मिल जाते हैं। इनकी तौल मानक से 20-25 प्रतिशत तक कम होती है।
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नहीं होती पैमाईश नियमानुसार प्रति वर्ष बटखरों की पैमाईश कराई जानी चाहिए। बटखरों पर माप-तौल विभाग की मुहर अनिवार्य है। लेकिन लोहे के बटखरे को जलाकर उसमें भरे रंगा को विक्रेता कम ही रखते हैं। जिले के हाट-बाजार हों या फिर गांवों के बाजार हर जगह यही नजारा है। अधिकांश दुकानदार या तो बिना कांटे वाले तराजू से माप तौल रहे या उन्होंने तराजू का कांटा टेढ़ा कर रखा है। ताकि तौल में हेराफेरी की जा सके।
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क्या कहते हैं ग्राहक सुपौल बाजार के जितेन्द्र कुमार बबलू की मानें तो उपभोक्ताओं से कदम-कदम पर ठगी हो रही है। दिनेश कुमार सिंह का कहना है कि खासकर ठेलों पर सब्जी, मांस-मछली व गल्ला मंडियों में खुलेआम वजन से कम सामान बेचे जा रहे हैं।
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अधिकारी हैं उदासीन सवाल यह है कि इस अवैध धंधे की रोकथाम को लेकर प्रशासन व विभागीय अधिकारी क्या कर रहे हैं। क्यों नहीं निरीक्षण कर वाटों का भौतिक सत्यापन किया जाता है। गड़बड़ी करने वाले दुकानदारों के विरूद्ध कार्रवाई की जाती है तो अबतक कितने नोटिस जारी किए गए। ये प्रश्न निरूत्तर हैं।
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जागरूकता का है अभाव जहां तक उपभोक्ताओं की बात है, अधिकांश अपने अधिकारों को लेकर जागरूक नहीं है। उपभोक्ताओं के हितार्थ स्थापित उपभोक्ता न्यायालय में अपने हित की रक्षा हेतु गुहार लगाना लोग समय पर रुपये की बर्बादी समझते हैं। तभी तो इक्का-दुक्का मामले ही चर्चा में आते हैं।