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अब तो घी भी डिब्बा बंद और खोवा भी रेडीमेड

सुपौल। दिवाली को ले मिठाई के बाजार में भी गरमाहट आई है। दुकानदार स्पेशल तैयार करने म

By JagranEdited By: Published: Tue, 06 Nov 2018 12:39 AM (IST)Updated: Tue, 06 Nov 2018 12:39 AM (IST)
अब तो घी भी डिब्बा बंद और खोवा भी रेडीमेड
अब तो घी भी डिब्बा बंद और खोवा भी रेडीमेड

सुपौल। दिवाली को ले मिठाई के बाजार में भी गरमाहट आई है। दुकानदार स्पेशल तैयार करने में जुटे हैं। वैसे डिब्बा बंद मिठाई को लोग गिफ्ट के लिए अधिक पसंद कर रहे हैं। बावजूद दिवाली पर घी के लडडु की अधिक मांग को देखते हुए दुकानदार इसे विशेष रूप से तैयार कर रहे हैं। बाहर से कुशल कारीगरों को बुलाया गया है। मिठाई दुकान वाले अबकी अपने नाम से दिवाली स्पेशल मिठाई बनाने में जुटे हैं। दुकानदारों की माने तो एक दिन की बिक्री महीनों पर भारी पड़ जाती है।

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छुहाड़े का लडडु व तिरुपति लड्डु की तैयारी

हालांकि महंगाई का असर मिठाई पर भी दिखेगा लेकिन दिवाली के उमंग में मिठाई की तो अहम भूमिका हो जाती है। पूजा पाठ से लेकर उपहार देने व एक-दूसरे को मिठाई खिलाये जाने की परंपरा। अनंत मिष्टान भंडार के मालिक पप्पू साह कहते हैं कि हर वर्ष की तरह दिवाली के मौके पर विशेष तैयारी तो रहती ही है। उसी परंपरा का निर्वहन किया जाएगा। शुद्ध घी के लडडु का अमूमन अधिक डिमांड रहता है। कोजी स्वीट्स के मालिक मनोज कुमार ने अबकी विशेष तैयारी की है। शहर के लोगों को वे इसबार छुहाड़े के स्पेशल लड्डु का स्वाद चखाएंगे, जो स्पेशल होगा। शुभ लक्ष्मी स्वीट कार्नर के बलेंद्र साह इस बार फिर तिरुपति लडडु बनाने की तैयारी में हैं। उन्होंने इसके लिये कुशल कारीगर का बंदोबस्त भी कर लिया है। गुरुमत स्वीट्स, आत्मा स्वीटस, अमृत स्वीट्स, अलका स्वीट्स भी अपना स्पेशल बनाने में जुटे हैं। वैसे पिछले वर्ष की तुलना में कीमतों में उछाल है।

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अलग था कोसी के मिठाई का स्वाद

कोसी के इलाके में एक समय दूध की नदी बहती थी। नतीजा था कि मिठाई भी शुद्ध व बेहतर क्वालिटी की बनती थी। भले मिठाई पारंपरिक ही बना करते थे लेकिन अनंतलाल का रसगुल्ला, नगीना राम की टिकड़ी, लौकहा के अशर्फी लाल का लालमोहन, जागो साह की जलेबी व कलाकंद के अपने स्वाद थे। और यह एक ब्रांड के रूप में कोसी के इलाके में जाना जाता था। पिपरा के खाजा को तो एक अलग पहचान मिली।

लेकिन वक्त के थपेड़े ने सबकुछ बदलकर रख दिया है। नतीजा है कि यहां के लोग भी अब पैकेट बंद दूध पर ही पूरी तरह निर्भर रहने लगे हैं। पूरा इलाका पहले बदला धमारा पर निर्भर हुआ और अब डेयरी पर ही आश्रित हो गए हैं। खेती के साथ-साथ पशुपालन कोसी के लोगों का मुख्य व्यवसाय माना जाता था। यहां के कास पटेर से जो दूध की क्वालिटी बनती थी उसकी चर्चा संपूर्ण मिथिलांचल में हुआ करती थी। नतीजा है कि दूध व घी की बनने वाली मिठाई के स्वाद निराले होते थे और शुद्धता की शत प्रतिशत गारंटी। अब तो घी भी डिब्बा बंद अथवा बगैर किसी गारंटी के और खोवा भी रेडीमेड।


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