घायलों का ऑपरेशन कर तीर निकालने के बजाय कर दिया रेफर
सुपौल। सदर अस्पताल का भवन देखने से तो लगता है कि कोई मेडिकल कालेज का अस्पताल हो लेकिन वास्तविकता है कि अस्पताल में रेफर करने की ही भूमिका निभाई जाती है।
सुपौल। सदर अस्पताल का भवन देखने से तो लगता है कि कोई मेडिकल कालेज का अस्पताल हो लेकिन वास्तविकता है कि अस्पताल में रेफर करने की ही भूमिका निभाई जाती है। अगर कोई इमरजेंसी आ जाए तो बस प्राथमिक उपचार किया और रेफर करने की प्रक्रिया शुरू। इसका जीता-जागता रूप गुरुवार को देखने को मिला। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, पिपरा से दो ऐसे मरीज रेफर हो कर आए जिनके शरीर में तीस लगे हुए थे। लेकिन यहां मरीजों का ऑपरेशन कर तीर निकालने के बजाय उसे प्राथमिक उपचार करने के उपरांत रेफर कर दिया गया। मालूम हो कि यह अस्पताल कहने को तो सदर अस्पताल हो गया लेकिन व्यवस्था पहले के अनुमंडलीय अस्पताल जैसी भी नहीं। आपातकाल में यहां तो बस रेफर को ही सर्वोत्तम इलाज माना जाता रहा है।
पीएचसी में शरीर से निकाले गए तीर :
सदर अस्पताल में गिरती स्वास्थ्य व्यवस्था का इससे बड़ा नमूना क्या होगा कि पिपरा थाना क्षेत्र के लिटियाही गांव में घटी घटना में चार लोगों को तीर लगी जिसमें से दो के शरीर से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, पिपरा में ही तीर निकाल दिया गया। लेकिन बचे दो लोग जो रेफर होकर सदर अस्पताल आए थे के शरीर से यहां तीर नहीं निकाला जा सका बल्कि उन्हें रेफर कर खानापूर्ति कर दी गई।
दो सर्जन हैं पदस्थापित :
ऐसा नहीं है कि सदर अस्पताल में सर्जन नहीं हैं। यहां दो सर्जन पदस्थापित हैं। बावजूद इसके दोनों घायलों के शरीर से तीर न निकाल कर रेफर कर दिया जाना समझ से परे है। मालूम हो कि घायल अमरेन्द्र यादव को हाथ में और रेखा देवी को जांघ में तीर लगी थी जिसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, पिपरा में निकाला गया। लंकिन रविन्द्र यादव जिसे बांह में और गजेन्द्र यादव जिसे जांघ में तीर लगी थी, सर्जन के रहते हुए भी उनके शरीर से तीर नहीं निकाले गए।
कोट :
सुबह सात-आठ बजे की बात है। मैंने मरीज को नहीं देखा था। लेकिन रेफर करने की स्थिति होगी इसलिए रेफर कर दिया होगा।
डा.एके भारती,
उपाधीक्षक,
सदर अस्पताल, सुपौल।