उम्मीदें:::::उम्मीदों के रथ पर सवार आसमान छूने निकल पड़ी महिलाएं
कोसी की विनाशलीला एवं बिहार की शोक कही जाने वाली कोसी नदी को नियंत्रित कर मिथिलांचल एवं कोसी के पिछड़े क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय मुख्यधारा के समक्ष लाने वाले युग पुरूष व कोसी पुत्र ललित नारायण मिश्र की हत्या आज ही के दिन अपनी जन्मभूमि व कर्मभूमि मिथिलांचल के समस्तीपुर रेलवे क्षेत्र में कर दी गई जिस समय उनकी हत्या की गई वे बिहार के नव निर्माण में जुटे हुए थे।
-अनुकूल वातावरण पाकर महिलाओं ने वह कर दिखाया जिसपर था पुरुषों का एकाधिकार
-अपने विकास की राह की अंतिम बाधा दहेज प्रथा व बाल-विवाह के ताबूत में अंतिम कील ठोंकने के लिए तैयार हैं महिलाएं
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मिथिलेश कुमार, सुपौल: ना सारी जमी चाहिए, ना सारा जहान चाहिए, पंख हमें भी है बस उड़ने के लिए छोटा सा आसमान चाहिए। महिला सशक्तीकरण की दिशा में जिले की महिलाओं ने अनुकूल वातावरण पाकर कुछ ऐसा ही कर दिखाया है। कभी चौका-चूल्हा में उलझी धुंए में अपनी आंखें खराब करने वाली महिलाएं आज समाज को राह दिखा रही है। घूंघट की ओट में घर की देहरी तक सिमटी रहनेवाली महिलाएं आज समाज का अगुवा बन पंचायत चला रही हैं। तैयार फसलों को घर में सहेज कर रखनेवाली महिलाएं खुद किसानी कर रही हैं। शराबी पति के जुल्म को झेलने वाली महिलाएं आज शराब की भट्ठियां तोड़ रही हैं। खुले में शौच जाने से दुष्कर्म की शिकार होनवाली महिलाएं आज गांव-गांव घूमकर शौचालय निर्माण करा रही है। बाल विवाह व दहेज प्रथा जैसे कुप्रथा पर भी इन महिलाओं का हंटर चल रहा है। जिले में कई बाल विवाह इन महिलाओं के पहल पर रोका गया था। कहीं महाजनी प्रथा को स्वयं सहायता समूह के माध्यम से चुनौती देती महिलाएं, तो कहीं रेशम का जबरदस्त उत्पादन कर जिले को राज्य में पहला स्थान दिलाने वाली महिलाएं आदि। यानी उचित अवसर प्राप्त हुआ तो उम्मीदों के रथ पर सवार महिलाएं आसमान छूने निकल पड़ी। अब जब मुख्यमंत्री द्वारा बाल विवाह और दहेज प्रथा के उन्मूलन को अभियान के तौर पर लिया गया है तो महिलाएं अपनी विकास की राह की सबसे बड़ी बाधा के ताबूत में आखिरी कील ठोंकने के लिए तैयार हैं।
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कोसी की धरा पर बेटियों का परचम भी बढ़ चढ़ कर बोल रहा
नारी सशक्तीकरण की दिशा में जिले की कुछ महिलाओं व बालिकाओं की तो चर्चा होनी ही चाहिए। जिन्होंने न केवल कुप्रथा को उखाड़ फेंकने का जिम्मा अपने कंधे पर लिया है, बल्कि समाज को भी एक नई दिशा देने में जुटी हुई है। पारा विधिक स्वयंसेवक हेमलता पांडेय बाल विवाह रोकने में बढ़ चढ़ कर भूमिका निभा रही है। उनके द्वारा जिले के विभिन्न प्रखंडों में कई बाल विवाह को रोका गया है और नाबालिगों कर जिदगी बचाई गई है। अंजना सिंह भी इस दिशा में बढ़ चढ़ कर भूमिका निभा रही है। उनके द्वारा भी बाल विवाह के बंधन में बंधने से कई बच्चियां बचाई गई है। बबीता कुमारी दलित, बेसहारा बच्चों के बीच शिक्षा का अलख जगाने को ले प्रयासरत है। सामाजिक क्षेत्र में बढ़ चढ़ कर भूमिका निभाने के लिए वे कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी है। दीपिका झा भी सामाजिक क्षेत्र में बढ़ चढ़ कर किरदार निभा रही है। हाल में ही वह गौरव अवार्ड से सम्मानित हो चुकी है। इसके अलावा आनंद सेतु भी विभिन्न खेल प्रतियोगिता में कई पुरस्कार पा चुकी है। कोसी की इस धरा पर बेटियों का परचम भी बढ़ चढ़ कर बोल रहा है।
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किसानी में बनाई पहचान
सुपौल जिला की पहचान रेशम, मशरूम, मखाना, मछली पालन आदि को लेकर भी हो रही है। महिलाओं की बढ़ी भागीदारी के बदौलत रेशम उत्पादन में सुपौल जिला अव्वल आया है। मशरूम उत्पादन का जिम्मा भी महिलाओं के कंधे पर दिख रहा है। नतीजा है कि इलाके में मशरूम की सफेदी नजर आ रही है। इसके इतर मछली पालन, मखाना उत्पादन आदि में भी महिलाओं की जबरदस्त भागीदारी है। अब तो तरह-तरह की खेती के साथ-साथ छोटे-मोटे उद्योग में भी महिलाओं की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है। डेयरी, राइस मील आदि इनकी बदौलत ही चल रहे हैं। औषधीय खेती में भी महिलाओं की भागीदारी है और इसे वे सफलता से अंजाम दे रही है। विभिन्न माध्यम से प्रशिक्षण प्राप्त कर महिलाएं अब तरह-तरह के व्यवसाय और स्वरोजगार की बढ़ चली है।
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बचत की प्रवृति से भी लाभान्वित हो रही महिलाएं
स्वरोजगारी व आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ समूह की महिलाओं में बचत की प्रवृति का भी विकास किया जा रहा है। सुपौल जिले में जीविका के माध्यम से बने समूहों को अब तक बैंकों के माध्यम से 91 करोड़ रुपये तथा परियोजना के माध्यम से 84 करोड़ रूपये कुल 175 करोड़ का ऋण मुहैया कराया जा चुका है। जबकि महिलाओं ने आपस में बचत की प्रवृति का विकास करते हुए अब तक 56 करोड़ रुपये बचत के माध्यम से एकत्रित किया है। यह विभिन्न समूहों की बचत है। जिसका उपयोग आवश्यकता पड़ने पर समूह की महिलाएं आपस में करती हैं और फिर कार्य संपन्न होने के बाद राशि समूह को लौटा देती है।
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शिक्षा मामले में भी पीछे नहीं रही महिलाएं
शिक्षा के मामले में भी अब महिलाएं किसी से पीछे नहीं है। सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं के माध्यम से प्रेरित व जागरूक महिलाएं शिक्षा के क्षेत्र में परचम लहराने लगी है। सरकार भी इस ओर मुखर है। बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए लगभग एक वर्ष पूर्व जिला मुख्यालय में महिला आइटीआइ का उद्घाटन किया गया जहां बालिकाओं को तकनीकी शिक्षा प्रदान किया जा रहा है। वीरपुर में नर्सिंग कॉलेज, सुपौल में जीएनएम स्कूल का शिलान्यास भी किया गया। इधर जिला मुख्यालय में अभियंत्रण महाविद्यालय भी संचालित हो चला है। शिक्षा के क्षेत्र में जो प्रयास चल रहे हैं वे आने वाले दिनों में दिखाई देने लगेंगे और यहां की बच्चियों को उच्च शिक्षा के लिए अब बाहर जाना नहीं पड़ेगा।
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सामाजिक गतिविधियों में बढ़कर निभा रही भूमिका
सरकार द्वारा सूबे में पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद महिलाओं के दशा और दिशा बदल गई। कल तक घरेलू विवादों में पिस रही महिलाएं अब सामाजिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगी है। उनका जीवन स्तर ऊंचा उठ रहा है और पारिवारिक समृद्धि में वृद्धि हो रही है। जागरूकता का ही असर है कि महिलाएं अब विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही है। शराबबंदी को ले जब मानव श्रृंखला बनाई गई तो इसमें महिलाओं की दमदार उपस्थिति देखी गई। इधर सरकार ने दहेज प्रथा और बाल विवाह के उन्मूलन को ले अभियान छेड़ा है इससे महिलाएं उत्साहित हैं और सरकार के इस कदम को बढ़-चढ़कर समर्थन कर रही है। शौचालय निर्माण में भी महिलाओं के द्वारा भूमिका निभाई जा रही है।
दरअसल रुढि़वादी परंपराओं में कैद महिलाओं के पंखों को उड़ान पंचायत चुनाव में आरक्षण से मिलनी शुरू हो गई। इसके बाद से उचित माहौल मिलने पर वर्जनाओं को तोड़ महिलाओं ने चौखट लांघी, स्वरोजगारी और आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम आगे बढ़ाए तो पीछे मुड़कर नहीं देखा। सरकार की विभिन्न योजनाओं व कार्यक्रम के माध्यम से महिलाओं को संबल दिया जा रहा है, प्रोत्साहित किया जा रहा है और महिलाएं विकास की गाथा गढ़ने को ले अग्रसर हो चली हैं। आज महिलाओं का बोलबाला हर क्षेत्र में दिख रहा है।