बुजुर्ग दिवस पर विशेष:::::अपने ही घर में बेगाने हो रहे बुजुर्ग
लगातार पांच दिनों से हो रही बारिश ने जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है। हालांकि सोमवार को बारिश ने जिलेवासियों को कुछ राहत दी है। जिससे लोग जरूरी कार्य से बाजार निकल सके। वैसे जलजमाव में कोई अंतर नहीं आया है। शहर के अधिकांश क्षेत्रों में जलजमाव बरकरार है। कई मुहल्ले में लोगों के घरों में घुसा बारिश का पानी अब तक नहीं निकल पाया है। कई सरकारी कार्यालय और परिसर भी जलजमाव की चपेट में है। बिजली पावरग्रिड की स्थिति विकट हो गई है। हालांकि बारिश से पूर्व ही पावरग्रिड परिसर में जलजमाव हो गया था जिसकी कोई सुधि नहीं ली गई।
संवाद सूत्र, करजाईन बाजार(सुपौल): भारतीय भूमि और हमारी सांस्कृतिक परम्पराओं का इतिहास गौरवशाली रहा है। हमारे संस्कार में माता-पिता, गुरुजन, बुजुर्गजन को देवताओं की श्रेणी दी गई है। तभी तो हमारी सामाजिक परंपरा में मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव, अतिथि देवो भव का ज्ञान परिवार की पाठशाला में ही सिखाया जाता है। जिदगी के हर बड़े फैसले या हर खुशखबरी के वक्त बड़े-बुजुर्गों के आशीर्वाद लेने की परम्परा सदियों से चली आ रही है। उनके चरण स्पर्श को सफलता की पहली कड़ी माना जाता रहा है। लेकिन, आज की परिस्थिति बिल्कुल विपरीत हो गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों का अभाव, बेहतर रोजगार के लिए शहरों की तरफ पलायन, घर-घर तक टीवी, मोबाइल की पहुंच युवाओं को अपने बुजुर्गों से दूर करता जा रहा है और परिवार का आकार दिन-व-दिन छोटा होता जा रहा है। आधुनिक जीवनशैली अपनाने के कारण परिवार में युवाओं और बुजुर्गों के बीच बातचीत के मौके कम होते जा रहे हैं, बल्कि उनके बीच अलगाव भी बढ़ता जा रहा है। जिसके चलते बुजुर्गों को दुर्व्यवहार, मारपीट, घर से बाहर कर देना सहित अन्य तरह की अनेक प्रताड़ना का शिकार होना पड़ रहा है। परिवार में बुजुर्ग बोझ की तरह प्रतीत होने लगे हैं। हालत यह होती जा रही है कि बुजुर्गों को बीमारियों के इलाज के बहाने या धार्मिक स्थलों के सैर के बहाने अनजान जगहों में छोड़कर भाग जाने में से उनके अपने बच्चे या परिवार के सदस्य गुरेज नहीं करते हैं। इस तरह की घटनाओं में लगातार वृद्धि होती जा रही है। इतना ही नहीं, अब तो बुजुर्गों को परिवार के बाहर सार्वजनिक स्थलों, यात्राओं, बाजारों, सेवा प्रदान करने वाली जगहों पर भी अशिष्टता, खराब व्यवहार, भेदभाव, अप्रिय स्थिति एवं बर्ताव का शिकार होना पड़ रहा है।
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समय पर नहीं मिल पाता पेंशन
ग्रामीण क्षेत्रों में आंकड़ों की दृष्टिकोण से देखें तो 2011 के जनगणना के अनुसार बिहार के कुल जनसंख्या का 89 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है। गरीब बुजुर्गों के आर्थिक सुरक्षा के लिए बिहार सरकार से मिलने वाली सामाजिक सुरक्षा पेंशन की मासिक राशि 400 रूपये है। लेकिन हालत यह है कि वह भी समय पर नहीं मिल पाती है।
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अधिकार में कमी के चलते हो रहा है दुर्व्यवहार
बुजुर्गों के लिए काम करनेवाली संस्था हेल्पेज इंडिया ने ग्रामीण क्षेत्रों में कराए गए सर्वेक्षण में पाया कि बुजुर्गों के प्रति परिवार में हो रहे दुर्व्यवहार का प्रमुख कारण स्वास्थ्य समस्या एवं आर्थिक विपन्नता भी है। बुजुर्गों के अपने अधिकार में कमी के चलते भी दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या आज की युवा पीढी में वह क्षमता, धैर्य या साहस है जो उन्हें झुर्रीदार चेहरों के अंदर की भावनाओं को समझने को प्रेरित कर सके और अपने बुजुर्गों की गिरती काया को बढ़ते बोझ या उपहास के पात्र के रूप में देखने के बदले उन्हें दुर्लभ संपत्ति के रूप में देख सकें। अगर नहीं, तो हमें याद रखने की जरूरत है कि समय किसी को नहीं छोड़ता। गुजरते वक्त के साथ हम भी बुढ़ापे की दहलीज पर कदम रखेंगे और हमारे द्वारा किया गया कृत्य हमें ही खुद ले डूबेगा। क्योंकि बच्चे अपने मां-बाप से सीखते हैं। इसलिए, हमें पाश्चात्य संस्कृति को नकारते हए अपनी समृद्ध सामाजिक परंपरा को कायम रखने की कोशिश करनी चाहिए, नहीं तो हमारी संस्कृति इस तरह डूब जाएगी, जिसका सवेरा कभी न हो सकेगा।
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खोटा सिक्का समझने जाने लगे हैं बुजुर्ग
बुजुर्गों के लिए समर्पित संस्था हेल्पेज इंडिया के बिहार व झारखंड राज्य प्रमुख गिरीश चंद्र मिश्र कहते हैं कि बाजारवाद और उदारीकरण के बाद बदले हुए समाज में बुजुर्गों का सम्मान गिरा है। उपभोक्ता समाज में बुजुर्ग खोटा सिक्का समझे जाने लगे हैं। लेकिन आपसी सामंजस्य हो तो आज भी बुजुर्ग परिवार और समाज के लिए काफी उपयोगी साबित हो सकते हैं। बुजुर्गों के प्रति समाज का ²ष्टिकोण बदलने के लिए बुजुर्गों और आज की युवा पीढ़ी को एक साथ मिल कर और आपस में सहयोग बढ़ाना होगा। इससे बुजुर्गों और युवाओं, दोनों को ही लाभ होगा।