स्वच्छता लाने के लिए ही बने हैं अजय शंकर
सुपौल। अगर राह चलते किसी सूट-बूटधारी व्यक्ति को सड़क पर पड़े कचरे को चुनकर झोले में
सुपौल। अगर राह चलते किसी सूट-बूटधारी व्यक्ति को सड़क पर पड़े कचरे को चुनकर झोले में रखते देखें, आप चाय पीकर प्याली फेंकने वाले हों और वही व्यक्ति वह प्याली आपके हाथों से ले ले या फिर किसी गुटखा बेच रहे दुकानदार से यह कहते किसी व्यक्ति से सुनें कि सड़क किनारे क्यों यमदूत बनकर बैठे हो तो निश्चित ही वह अजय शंकर होंगे। कचरा निस्तारण के लिए ये हमेशा अवसर की तलाश में रहते हैं। जहां कहीं मौका मिला ये कचरे को जगह लगाने का प्रयास करते हैं। महानगरों से लेकर गांव-कस्बे में घूम-घूमकर सहरसा जिले के नवहट्टा निवासी स्व. सुधीर महाराज के पुत्र लोगों को जागरूक कर रहे हैं। बस-ट्रेन में भी यह मौका गंवाना नहीं चाहते। फिलहाल ये बहन की ससुराल स्थानीय वार्ड 12 में इन्हीं कारणों से चर्चा में हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय से संगीत से मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद इन्होंने समाजसेवा को अपना लक्ष्य बनाया। बताया कि दिल्ली, मुंबई, उत्तराखंड, पटना, हरिद्वार आदि स्थानों पर कचरा प्रबंधन पर कार्य किया। बच्चों को प्लास्टिक के रैपर से गेंद तैयार कर देना और उन्हें इसे बनाने के तरीके बताकर बनाने के लिए प्रेरित करते रहते हैं। उनका यह मिशन यात्रा के दौरान भी जारी रहता है। ये कचरा प्रबंधन के तरीकों को समझाने के लिए अपने साथ पंपलेट रखते हैं जिसका वितरण लोगों के बीच करते हैं। अभय बताते हैं कि कचरा प्रबंधन के लिए जल्द ही वे जिले के स्कूल-कॉलेजों में छात्रों को तौर-तरीके बताएंगे। कचरा बेकार नहीं होता आवश्यकता है इसके प्रबंधन की। कचरे का इस्तेमाल कई तरीके से किया जा सकता है। प्लास्टिक के कचरे से इंधन तैयार किया जा सकता है इसकी मशीन है। इससे रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सकते हैं। स्कूल-कॉलेजों में छात्रों को जागरूक करने के लिए वे ऐसे लोगों की टीम बनाने में जुटे हैं जो इस तरह के कार्यों से मतलब रखते हैं। कहा कि कोरोना संक्रमण को लेकर फिलहाल लोगों से मिलने में परेशानी हो रही है। संक्रमण काल बीतने के बाद वे इस दिशा में काम प्रारंभ करेंगे।