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भ्रष्टाचार पर लोकतांत्रिक तरीके से वार कर रहे हैं अनिल

सुपौल। सूचना का अधिकार यानी राईट टू इंफोरमेशन 15 जून 2005 को अधिनियमित किया गया। सूचना

By JagranEdited By: Published: Thu, 13 Aug 2020 07:07 PM (IST)Updated: Fri, 14 Aug 2020 06:13 AM (IST)
भ्रष्टाचार पर लोकतांत्रिक तरीके से वार कर रहे हैं अनिल
भ्रष्टाचार पर लोकतांत्रिक तरीके से वार कर रहे हैं अनिल

सुपौल। सूचना का अधिकार यानी राईट टू इंफोरमेशन 15 जून 2005 को अधिनियमित किया गया। सूचना का अधिकार का तात्पर्य है सूचना पाने का अधिकार जो सूचना अधिकार कानून लागू करने वाला राष्ट्र अपने नागरिकों को प्रदान करता है। सूचना का अधिकार 2005 का उद्देश्य सरकार के कार्यो में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को बढ़ावा देना है।

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जीवन का संघर्ष इंसान को हर कदम ताकतवार बनाने के साथ ही हक के लिए आत्मबल के साथ आगे बढ़ने की हिम्मत देता है। कुछ ऐसी ही कहानी भ्रष्टाचार मुक्त जागरूकता अभियान के आरटीआइ कार्यकर्ता सुपौल विद्यापुरी निवासी अनिल कुमार सिंह की है। कोसी प्रमंडल को दीमक की तरह खोखला करते भ्रष्टाचार पर लोकतांत्रिक तरीके से वार करने में उन्होंने अपनी अलग पहचान बना ली है। सूचना का अधिकार अधिनियम नामक हथियार से कोसी प्रमंडल के कई भ्रष्टाचार व घोटाला को उजागर किया है, सरकार के करोड़ों रुपये को सरकारी खजाने में जमा करवाने एवं प्रमंडल के सौ से अधिक भ्रष्ट पदाधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई करने में सफलता हासिल कर भ्रष्ट पदाधिकारियों के लिए जी का जंजाल बन गए हैं। श्री सिंह प्रतिदिन सूचना अधिकार अधिनियम के तहत एक आवेदन देकर जनहित से जुड़े मामले को उजागर लगातार कर रहे हैं। सूचना प्राप्त कर लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम के तहत परिवाद दाखिल कर शिकायत का निवारण करने में अपनी पूरी ताकत लगा दी है। यही कारण है कि जिले में आरटीआइ कार्यकर्ता के मुख्य सलाहकार बन कर भ्रष्ट व्यवस्था पर लगाम लगाने में काफी हद तक सफल माने जा रहे हैं। श्री सिंह के आगामी योजना में जिले के आरटीआइ कार्यकर्ता को प्रशिक्षित कर कम से कम प्रति पंचायत दस आरटीआइ कार्यकर्ता को तैयार करने की योजना है जिसके तहत 15 एवं 16 फरवरी 2020 को सुपौल में दो दिवसीय राज्य स्तरीय आरटीआइ कार्यकर्ता सम्मेलन की तैयारी में लग गए हैं।

सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत श्री सिंह ने कोसी प्रमंडल अंतर्गत सभी कार्यालयों के सभी विभागों में जनहित से जुड़े मामले के निष्पादन हेतु आरटीआइ का आवेदन लगाया है। जिसके तहत समाहरणालय, शिक्षा विभाग, स्वास्थ्य विभाग, आइसीडीएस, अभियंता विभाग, जिला योजना, मनरेगा, पंचायती राज विभाग में करोड़ों रुपये घोटाला एवं भ्रष्टाचार के मामला को उजागर किया है। यही कारण है कि इनके द्वारा प्राप्त सूचना के आलोक में बिहार के मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, प्रधान सचिव एवं निगरानी अन्वेषण ब्यूरो ने कई मामले को दर्ज कर अनुसंधान प्रारंभ किया है। निगरानी ने श्री सिंह के परिवाद के आलोक में निगरानी थाना एवं सुपौल थाना में मामला दर्ज कराया है। पटना में कई जांच दल ने भी जिला आकर जांच की है। तू डाल-डाल- मैं पात-पात की कहावत की तर्ज पर प्रमंडल में भ्रष्ट पदाधिकारियों एवं आरटीआई कार्यकर्ता अनिल कुमार सिंह काम कर रहे हैं। सूचना के अधिकार के तहत श्री सिंह के द्वारा कोसी प्रमंडल अंतर्गत शिक्षा विभाग में करोड़ों रुपये की अवैध निकासी के खुलासा के बाद निगरानी थाना में कांड संख्या 3/12 दर्ज कर आरडीडीई सहरसा एवं सुपौल, सहरसा एवं मधेपुरा के डीईओ के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज किया। श्री सिंह के आवेदन पर निगरानी अन्वेषण ब्यूरो ने फर्जी शिक्षक नियोजन मामला में सुपौल थाना कांड संख्या 508/2018 में 84 पदाधिकारियों, मुखिया, पंचायत सचिव एवं शिक्षकों के विरुद्ध मामला दर्ज कराया है। उच्च न्यायालय के फर्जी आदेश पर 72 सेवानिवृत शिक्षकों को लगभग 7 करोड़ अवैध भुगतान के मामले में निगरानी अन्वेषण ब्यूरो जांच कर रही है। जबकि सुपौल के डीपीओ अमर भूषण को निलंबित कर दिया गया है। श्री सिंह के परिवाद पर डीपीओ मध्याह्न भोजना विमलेश चौधरी को विभाग ने निलंबित कर दिया है। वहीं उच्चतम न्यायालय के फर्जी आदेश का हवाला देकर 7 लाख 11 हजार 795 रुपये की दो शिक्षकों के वेतन के नाम पर अवैध निकासी के मामले में किशनपुर थाना कांड संख्या 73/19 दर्ज है। जिसके अनुसंधान में कई पदाधिकारी दोषी पाए गए हैं। श्री सिंह के सूचना के आधार पर मुख्य सचिव के आदेश पर जांच समिति के द्वारा समर्पित प्रतिवेदन के आलोक में जिले के मुखिया की संपत्ति की जांच निगरानी अन्वेषण ब्यूरो के द्वारा की जा रही है। जिले के ग्रामीण कार्य विभाग में 34 कार्यालय घोटाला, आंगनबाड़ी केंद्र पर पोषाहार का वितरण नहीं करना, शौचालय में 5 करोड़ रुपये का घोटाला, बेंच-डेस्क, उपस्कर सहित तालीमी मरकज में 5 करोड़ का घोटाला सहित तालीमी में बर्खास्त कर्मी को 45 महीने तक अवैध भुगतान के मामले में सैकड़ों पदाधिकारी कार्रवाई की जद में हैं।


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