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धान के साथ मखाना पर भी सूखे का साया

वर्षा की कमी के कारण धान के साथ-साथ मखाना खेती पर भी सूखे का साया लहराने लगा है। मखाना में गलसा रोग का प्रकोप हो रहा है। कृषि विज्ञानी के अनुसार वर्षा नहीं होने के कारण इस बीमारी का प्रकोप हो रहा है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 23 Aug 2022 06:24 PM (IST)Updated: Tue, 23 Aug 2022 06:24 PM (IST)
धान के साथ मखाना पर भी सूखे का साया
धान के साथ मखाना पर भी सूखे का साया

जागरण संवाददाता, सुपौल। वर्षा की कमी के कारण धान के साथ-साथ मखाना खेती पर भी सूखे का साया लहराने लगा है। मखाना में गलसा रोग का प्रकोप हो रहा है। कृषि विज्ञानी के अनुसार वर्षा नहीं होने के कारण इस बीमारी का प्रकोप हो रहा है। वर्षा होने पर पत्ते की धुलाई होती रहती है जिससे रोग का प्रकोप नहीं होता है। इसमें पत्तियां गल जाती हैं। किसानों का कहना है कि अगर स्थिति इसी तरह रही तो उत्पादन आधा हो सकता है। फिलहाल किसान अपने खेतों में पंप सेट से पानी डालकर फसल को बचाने में जुटे हैं।

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कोसी प्रभावित सुपौल जिले के बड़े भूभाग में मखाना की खेती होती है। हाल के दिनों में सरकार भी इस खेती को बढ़ावा देने के लिए पहल की है। यहां के एक विशेष क्षेत्र को मखाना कारिडोर के रूप में चिह्नित कर किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। कोसी का इलाका होने के बावजूद इस साल वर्षा नहीं होने से पानी की कमी हो रही है। मखाना की फसल पानी में होती है। लोग इसे जल जमाव वाले जमीन में लगाते हैं। पोखरों में भी इसकी खेती होती है।

सरायगढ़ के किसान विजय कुमार यादव, विनोद मुखिया, बैजनाथपुर के किसान सिकेंद्र मुखिया, शिवनारायण चौधरी आदि बताते हैं कि धान, पान और मखान को प्रति दिन स्नान की आवश्यकता होती है। अर्थात इसकी अच्छी पैदावार के लिए इसके पौधे और पत्तियों पर प्रतिदिन पानी पड़ना चाहिए। यह वर्षा से ही संभव है। फसल के पत्तों पर पानी पड़ते रहने से रोग-ब्याधि के अलावा कीट भी दूर होते रहते हैं। इधर वर्षा हो नहीं रही है। इससे फसल प्रभावित हो रही है। उत्पादन पर इसका असर पड़ेगा। कई छोटे किसानों का कहना है कि उन्होंने लीज पर जमीन लेकर मखाना की खेती की है। एक तो इसकी बोआई में खर्च हुई, उसके बाद इसमें से खर-पतवार निकालने में लगे मजदूर का खर्च अलग से। अब वर्षा नहीं हो रही है। प्रतिदिन पंप सेट से पानी देना संभव नहीं है। ऐसे में अगर उत्पादन प्रभावित होगा तो जमीन मालिक को शेष राशि कहां से दे पाएंगे। किसानों की चिता इस बात को लेकर बढ़ गई है।


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