आपदा को अवसर में बदल रहे किसान
मौसम के भरोसे अब खेती करने के दिन नहीं रहे। फिलहाल वर्षा नहीं होने के कारण धान की खेती मारी जा रही है। यह किसानों के लिए आपदा से कम नहीं है। अब इस आपदा को किसान अवसर में बदलने में लगे हैं।
राजेश कुमार, सुपौल। मौसम के भरोसे अब खेती करने के दिन नहीं रहे। फिलहाल वर्षा नहीं होने के कारण धान की खेती मारी जा रही है। यह किसानों के लिए आपदा से कम नहीं है। अब इस आपदा को किसान अवसर में बदलने में लगे हैं। सब्जी की खेती के लिए अधिक सिचाई की आवश्यकता नहीं होती है। अधिक वर्षा होने पर सब्जी की खेती खराब हो जाती है। इसलिए सूखे के ऐसे हालात में किसान सब्जी की खेती में जुट गए हैं। सदर प्रखंड में किसान गोभी की खेती कर रहे हैं तो पिपरा प्रखंड में भी किसानों का झुकाव गोभी की अगात खेती की ओर हुआ है। निर्मली प्रखंड क्षेत्र में किसान बैंगन की खेती कर रहे हैं। अगर सब कुछ किसानों की सोच के अनुसार हुआ तो यह खेती इन्हें धान की खेती से कई गुना अधिक मुनाफा देगी। यहां किसान गोभी की भी खेती की शुरुआत कर चुके हैं। सितंबर के अंतिम व अक्टूबर के प्रारंभिक सप्ताह तक तैयार होने वाली इसकी अगात पैदावार से उन्हें अच्छी आय मिलने की आशा है। किसानों का कहना है कि धान की फसल होने की उम्मीद नहीं है, ऐसे में सब्जी की खेती ही सहारा बन सकती है। कृषि विज्ञानी भी अब बदलती परिस्थिति में जलवायु आधारित खेती करने की सलाह देते हैं।
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गोभी की खेती से किसानों को है उम्मीद
सदर प्रखंड के अमहा, लक्ष्मीनियां, हरदी पश्चिम आदि जगहों पर अगस्त के प्रथम सप्ताह में किसानों ने गोभी लगाई है। किसान अजय मेहता, शंकर मंडल, कुलदीप यादव, कार्तिक मेहता आदि बताते हैं कि वर्षा कम होने से धान की उम्मीद समाप्त हो चुकी है। पंप सेट से धान की सिचाई करना संभव नहीं हो पा रहा है। ऐसे में सब्जी की खेती से उम्मीद है। बताया कि प्रति एकड़ गोभी तैयार करने में लगभग 70-80 हजार रुपये खर्च होते हैं। फसल तैयार होने के बाद लगभग दो लाख तक की आमदनी हो जाती है। यह अलग बात है कि फसल तैयार करने में किसानों को मेहनत अधिक करनी पड़ती है। कहा कि अधिक मेहनत और लागत के बाद जब आमदनी अच्छी होती है मन मीठा हो जाता है।
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कोट-
पहले आपदाएं कई वर्षों में एक बार आती थी इसलिए किसान संभल जाते थे। आज ऐसी आपदाएं प्रतिवर्ष आ रही है। ऐसे में इनसे निपटने के उपाय ढूंढना जरूरी होता जा रहा है। मौसम में बदलाव का प्रभाव सूखा के रूप में देखा जा रहा है। तापमान वृद्धि एवं वाष्पीकरण की दर तीव्र होने के फलस्वरूप सूखाग्रस्त क्षेत्र बढ़ता जा रहा है। इसके अलावा मिट्टी की जलग्रहण क्षमता का कम होना भी सूखा का एक प्रमुख कारण है। ऐसे में जलवायु आधारित खेती आज आवश्यक हो चुकी है। इस विधि से खेती करने पर लागत भी कम पड़ती है और उत्पादन में 20 से 30 फ़ीसद की बढ़ोतरी होती है। किसानों को चाहिए कि खेती की इस नई पद्धति को अपनाकर आमदनी बढ़ाएं।
-डा. मनोज कुमार कृषि विज्ञानी, कृषि विज्ञान केंद्र, राघोपुर