नौनिहालों के भविष्य पर स्मार्ट फोन का असर, खतरे की बज रही घंटी
पहले जब मनोरंजन के साधन कम थे और उनका विकास नहीं हुआ था तब नाटक के माध्यम से ही लोग मनोरंजन किया करते थे। गांव की चौपालों पर नाट्य कला परिषदों की धमक होती थी। गांव के लोग इकट्ठे होते थे और होता था तरह-तरह के नाटकों का मंचन। कभी नाटक के माध्यम से राजा हरिश्चन्द्र की कहानी से लोगों को अवगत कराया जाता था। तो कभी नाटक के माध्यम से लैला-मजनू सोनी महिवाल हीर-रांझा शीरी-फरहाद के किस्से का चित्रण होता था।
सुपौल। अक्सर आमलोगों के घरों में देखने को मिलता है कि अगर उसके नौनिहाल खाना नहीं खाते, दूध पीना नहीं चाहते तो मां-बाप बिना किसी सोच के अपने नौनिहालों को स्मार्ट फोन का चस्का लगा रहे हैं। इन्हें यह पता नहीं है कि वे अपने नौनिहाल के भविष्य को किस ओर ले जा रहे हैं। वहीं नौनिहाल स्मार्ट ़फोन की दुनिया में खोते चले जा रहे हैं।
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ऐसे असर डालता है स्मार्ट फोन
अक्सर ये देखा जा रहा कि अगर बच्चा खाना नहीं खा रहा या फिर रो रहा है तो माता-पिता उसे चुप कराने के लिए स्मार्ट फोन दे देते हैं। इसके बाद बच्चा फोन में कार्टून देखने लगता है, मगर इसका दुष्प्रभाव बच्चों की आंखों पर पड़ रहा है। बच्चे को कम उम्र में आंखों में रोशनी कम होना, माइग्रेन और माथा दर्द जैसी समस्या बढ़ रही है। छोटे बच्चों को स्मार्टफोन पर कार्टून दिखाने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है। अभिभावक बच्चों को चुप और व्यस्त रखने के लिए स्मार्टफोन का सहारा ले रहे हैं। बच्चों को भी फोन का साथ पसंद आ रहा है। ऐसे में वे घंटों गर्दन झुकाए स्मार्ट फोन की स्क्रीन पर नजर जमाए रहते हैं। शुरुआत में तो ये सब बहुत अच्छा लगता है। लेकिन बाद में ये परेशानी का सबब बनता जाता है। अधिकांश नौनिहालों में नींद की कमी देखी जा रही है, जिस कारण पर्याप्त नींद नहीं लेने से बच्चों की मानसिकता को नुकसान होता जा रहा है। साथ ही लगातार स्मार्टफोन से चिपके रहने से आंखों को भी नुकसान होता है। बच्चों को पर्याप्त नींद लेना जरूरी है, लेकिन स्मार्टफोन की लत लग जाये तो बच्चे माता-पिता से छिप कर रात को स्मार्टफोन पर गेम खेलते रहते हैं या फिर कोई मूवी आदि देखते हैं। जिससे उनके सोने के समय में तो कटौती होती ही है साथ ही लगातार स्मार्टफोन से चिपके रहने से आंखों को भी नुकसान होता है।
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स्वभाव में आता है चिड़चिड़ापन
नौनिहालों के स्मार्टफोन से चिपके रहने से इनके स्वभाव में भी परिवर्तन देखा जा रहा है। ज्यादातर बच्चे जिनको स्मार्टफोन की लत लगी है चिड़चिड़े स्वभाव के बनते जा रहे हैं। अगर आप उनकी तुलना उन बच्चों से करेंगे जो कि स्मार्टफोन से दूर हैं तो पाएंगे कि स्मार्टफोन उपयोग करने वाले बच्चे सिर्फ वर्चुअल वर्ल्ड में जी रहे हैं और घर वालों से उन्हें कोई मतलब नहीं है। साथ ही उनका स्वभाव भी चिड़चिड़ा हो चुका होता है। अगर आप उन्हें थोड़ी देर के लिए भी स्मार्टफोन से दूर करेंगे तो वह गुस्से में आ जाएंगे या फिर चिल्लाना शुरू कर देंगे। नौनिहालों को उम्र से पहले ही पता लग जाता है सब कुछ। बच्चों को जो चीजें एक उम्र में जाननी चाहिए वह उन्हें कम उम्र में ही पता लगने लगता है जिसका उनके दिमाग पर असर होता है।
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कहते हैं चिकित्सक
डॉ. अमित कुमार का कहना हैं कि जिन बच्चों को आंखों में दर्द होना लाइट के प्रति सेंसेटिव होने की शिकायत है तो ये खतरे की घंटी है। मोबाइल का आंखों के अलावा बच्चों के मेंटल और फिजिकल एक्टिविटीज पर भी इसका असर पड़ता है। नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ जेपी कुमार का कहना है कि पिछले कुछ समय में तीन से छह साल तक के बच्चों की नजर कमजोर होने की शिकायत बढ़ने लगी है। बच्चों में आंखों का मिचमिचाना भारीपन थकावट सिर में दर्द जैसी समस्याएं सामने आ रही हैं। ऐसे में माता-पिता को साल में एक बार अपने बच्चों का आइ चेकअप कराना चाहिए और एंड्रॉयड फोन से दूर रखना चाहिए।