जागरण विशेष::::::::::::धुंधली उम्मीदों के सहारे कट रही जिदगी
कुछ तो कोसी का कोप और कुछ नीति नियंताओं के कारण जिले की आधी से अधिक आबादी गरीब है। मतलब सरकार ने जो गरीबी को मापने के लिए रेखा खींची है उससे नीचे जीवन बसर करती है यहां की साढ़े बारह लाख की आबादी। नतीजा है कि रोजगार की तलाश में मजदूरों का पलायन रुकने का नाम नहीं ले रहा है। उद्योग-धंधे के नाम पर यहां ऐसा कुछ नहीं नहीं है जो परदेस जाते कदमों को थाम सके।
-जिले की साढ़े बारह लाख से अधिक की आबादी गरीबी रेखा के नीचे करती जीवन बसर
-उद्योग धंधों की कमी के कारण लोगों को रोजी-रोटी के लिए जाना पड़ता है परदेस
-स्थापित हो उद्योग-धंधे तो रुके परदेस जाने का सिलसिला
भरत कुमार झा,सुपौल: कुछ तो कोसी का कोप और कुछ नीति नियंताओं के कारण जिले की आधी से अधिक आबादी गरीब है। मतलब सरकार ने जो गरीबी को मापने के लिए रेखा खींची है उससे नीचे जीवन बसर करती है यहां की साढ़े बारह लाख की आबादी। नतीजा है कि रोजगार की तलाश में मजदूरों का पलायन रुकने का नाम नहीं ले रहा है। उद्योग-धंधे के नाम पर यहां ऐसा कुछ नहीं नहीं है जो परदेस जाते कदमों को थाम सके। लोगों को सौ दिन का रोजगार देने वाली मनरेगा योजना भी इसे रोक पाने में सफल नहीं दिख रही है। यहां की गरीबी कुछ धुंधली उम्मीदों के साथ परदेस के आसरे ही कटती है।
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कोसी लिखती रही विनाश की कहानी
कोसी के इलाके में लोगों की तकदीर हमेशा से कोसी ही लिखा करती है। जो हर साल कोई न कोई विनाश की कहानी लिख देती है और लोग काफी पीछे छूट जाते हैं। एक तो कोसी बांध बनाए जाने के बाद एक बड़ी आबादी दोनों तटबंधों के बीच पड़ गई। भले ही सरकार ने पुनर्वास व अन्य सुविधाएं मुहैया कराए बावजूद बड़ी आबादी इससे भी अछूती रह गई। पूर्व में कोसी द्वारा तहस-नहस की गई इस धरती पर सरकार आधारभूत संरचना करने में ही अपनी सारी योजनाएं लगा देती है और रोजगार की समस्या का मुंह सुरसा की तरह बढ़ता जाता है। एकाध उद्योग लगाने की बात सरकार द्वारा कही गई है। अगर घोषणाएं जल्द आकार ले तो गरीबी का गहरा जख्म भले ही ना भरे, मरहम तो लगेगा ही।
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व्यावसायिक खेती से समृद्ध होंगे किसान
जिले के लगभग 90 प्रतिशत लोग गांवों में रहते हैं और आजीविका का मुख्य साधन कृषि या उसे जुड़ अन्य रोजगार ही है। प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहे किसानों के लिए खेती एक समस्या है। कभी बाढ़ तो कभी सुखाड़ सभी किए कराए पर पानी फेर जाता है। सिचाई के संसाधनों की जिले में प्रचूरता के बावजूद सिचाई सामान्य किसानों के लिए महंगी है। नतीजा है कि फसल की तैयारी होते-होते उत्पादन पर महाजनी भारी हो जाती है। और ऐसे में मजदूरों के पास पलायन के सिवा कोई और चारा नहीं बचता। ऐसे में व्यावसायिक खेती किसानों को नई जान भर सकती है। इसके लिए विभागीय और कुछ संस्थाओं द्वारा प्रयास भी किया जा रहा है। विभाग द्वारा किसानों को मशरूम, राजमा, फूल आदि की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। किसानों को इसका प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। मशरूम और राजमा के तो अच्छे परिणाम भी सामने आए हैं और फूलों की खेती का प्रशिक्षण अभी संपन्न ही हुआ है। अगर फूलों की खेती पर काम शुरू हुआ तो इसके अच्छे परिणाम भी सामने आएंगे। कारण विभिन्न अवसरों पर फूलों से सजावट का प्रचलन बढ़ा है लेकिन फूलों की खेती नहीं होने के कारण फूल अन्य शहरों और राज्यों से मंगाए जाते हैं।
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रेशम में दिख रहा रेशमी सपना
गरीबी उन्मूलन की दिशा में जीविका द्वारा महत्वपूर्ण काम किए जा रहे हैं। यह संस्था खासकर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम कर रही है। जीविका की महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह के माध्यम से वर्मी कंपोस्ट, सब्जी की खेती, गल्ला का काम, दुकान आदि कर आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। अब इन महिलाओं ने रेशम उत्पादन में जो कर दिखाया है उससे लगता है कि इनका रेशमी सपना जल्द ही पूरा होगा। इन महिलाओं ने राज्य में रिकार्ड कोकून का उत्पादन किया है। इस खेती से आठ सौ से अधिक किसान जुड़े हुए हैं। इसबार इन किसानों ने राज्य में किसी भी जिले से अधिक अंडा मंगाया है जो बंपर कोकून उत्पादन का संकेत दे रहा है। इसे देखते हुए सरकार ने यहां रेशम धागा इकाई लगाने का फैसला लिया है।
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किसानों की दशा सुधारने की ओर है सरकार का ध्यान
किसानों की दशा सुधारने की ओर सरकार का ध्यान है। सरकार ने कृषि आधारित उद्योग लगाने की दिशा में काम शुरू की है। इसके तहत जिले में पहले उद्योग के रूप में इथेनॉल फैक्ट्री लगाने का फैसला सरकार ने लिया है। फैक्ट्री लगने के बाद धान के पुआल से इथेनॉल तैयार किया जाएगा। फैक्ट्री के लगने से जहां रोजगार के अवसर पैदा होंगे वहीं किसानों को कृषि के अपशिष्ट पदार्थ की कीमत भी मिलेगी। नए साल में लोगों की उम्मीद इस फैक्ट्री की ओर टिकी है।
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मनरेगा से है लोगों को उम्मीद
मजदूरों को सौ दिन रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सरकार की ओर से चलाई जाने वाली महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना अपने मिशन में कामयाब नहीं हो पा रही है। प्रारंभिक काल से ही यह योजना लूट के पर्याय के रूप में जानी जाती रही है। लूट के पर्याय बन चुके इस योजना में सुधार के सरकार ने एक से एक नुस्खे अपनाये लेकिन योजनाओं को धरातल पर उतारने वालों ने हमेशा अपनी व्यवस्था बना ली।
आंकड़ों पर गौर करते हैं तो जिले में 3,58,920 परिवारों को जॉब कार्ड उपलब्ध कराया जा चुका है। चालू वित्तीय वर्ष में कुल 64,249 परिवारों को रोजगार उपलब्ध कराया गया है। लेकिन विडंबना कि अब तक जिले में महज 94 परिवार ऐसे हैं जिन्हें सौ दिनों का रोजगार उपलब्ध हो पाया है। अब जबकि वित्तीय वर्ष समाप्ति की ओर है। 24,12,969 मानव दिवस का सृजन किया गया है। नए वर्ष में लोगों को मनरेगा में सुधार की उम्मीद है जो परदेस के आसरे गरीबी काटने वाले लोगों के कदम को परदेस जाने से थाम सके।