Move to Jagran APP

विनोबा पुण्यतिथि पर चेतना विकास मूल्य शिक्षा कार्यक्रम का आयोजन

हले जब मनोरंजन के साधन कम थे और उनका विकास नहीं हुआ था तब नाटक के माध्यम से ही लोग मनोरंजन किया करते थे। गांव की चौपालों पर नाट्य कला परिषदों की धमक होती थी। गांव के लोग इकट्ठे होते थे और होता था तरह-तरह के नाटकों का मंचन। कभी नाटक के माध्यम से राजा हरिश्चन्द्र की कहानी से लोगों को अवगत कराया जाता था। तो कभी नाटक के माध्यम से लैला-मजनू सोनी महिवाल हीर-रांझा शीरी-फरहाद के किस्से का चित्रण होता था।

By JagranEdited By: Published: Sat, 16 Nov 2019 12:09 AM (IST)Updated: Sat, 16 Nov 2019 06:16 AM (IST)
विनोबा पुण्यतिथि पर चेतना विकास मूल्य शिक्षा कार्यक्रम का आयोजन
विनोबा पुण्यतिथि पर चेतना विकास मूल्य शिक्षा कार्यक्रम का आयोजन

जागरण संवाददाता, सुपौल: संत विनोबा पुण्यतिथि के अवसर पर स्थानीय तिलकधारी कॉलेजिएट उच्च माध्यमिक विद्यालय चकला-निर्मली में चेतना विकास मूल्य शिक्षा कार्यक्रम का आयोजन कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजिल के साथ गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह के प्रति भी श्रद्धांजलि अर्पित की गयी। विनोबा के प्रिय भजन गायन के उपरांत अपनी संवेदनाओं के प्रति सजगता का अभ्यास कराकर अपने श्वांस का अनुभव करने और पेट के साथ इसके सम्बन्ध की ओर छात्रों का ध्यान दिलाया गया। विनोबा के जीवन व विचार पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए बाल योग मिशन के अध्यक्ष सेवानिवृत्त कॉलेज प्राध्यापक प्रो. कृपानंद झा ने महात्मा गांधी के विचार की पूरकता के साथ उनके मौलिक विचार एवं रचनात्मक कार्यक्रम पर प्रकाश डालते हुए कहा कि महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी विनोबा के जय जगत की प्रासंगिकता वर्तमान समय में आवश्यक है। विनोबा ने संघर्ष नहीं सत्य, प्रेम, करूणा और आत्मबल द्वारा लाखों एकड़ जमीन मांगकर संसार में अहिसक कार्य का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया। वे शरीर बल से ज्यादा आत्मबल को महत्व देकर शिक्षा में रोजगारोन्मुखी और मूल्य शिक्षा के पक्षधर थे। ग्राम्यशील के मानवीय मूल्य शिक्षा प्रबोधक चंद्रशेखर ने विनोबा के जय जगत उद्घोषणा के आध्यात्मिक और वैज्ञानिक पक्ष को रेखांकित करते हुए प्रकृति की चार अवस्थाओं-पदार्थ अवस्था, प्राण अवस्था, जीव अवस्था और ज्ञान अवस्था पर प्रकाश डालते हुए इन चारों अवस्थाओं का व्यापक या शून्य में भींगे, डूबे और घिरे रहने को सत्य कहते हुए इसको समझे बिना मानव का सबसे बड़ा भ्रम माना। उन्होंने कहा कि मानव के इसी भ्रम के कारण सार्वभौम व्यवस्था और अखंड समाज के साथ क्यों जीना? कैसे जीना? समझदारी के अभाव में ही मानव ने धरती को बांटकर, उसके पेट को फाड़कर, जंगल को उजाड़कर प्राणी व जीव का शोषण कर पानी और हवा को ़खराब कर अपनी सुविधा जुटाकर सुखी होना चाहा, लेकिन विगत दो-ढाई सौ वर्षों में मानव ने अपने प्रिय, हित, लाभ के कारण सबका संहार करते हुए भय, प्रलोभन और आस्था के नाम पर मानव को बांटा, निरंतर संघर्ष और युद्ध करता रहा। जिसका परिणाम है कि अब इस पृथ्वी पर मानव जीवन का रहना ही अनिश्चित है। इसकी चिता अब सभी वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों, सदविचारकों और शासन में बैठे लोगों को सताने लगी है। यदि शिक्षा संस्कार द्वारा सत्य, धर्म और न्याय के वास्तविक अर्थ की समझदारी दी जाती, मानव के अक्षय बल और अक्षय शक्ति से परिचय करवाकर समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और भागीदारी का निर्वाह सार्वभौम व्यवस्था और अखंड समाज के लिए किया जाता तो वह पृथ्वी पर निर्भय और सुरक्षित होकर मानवीयता पूर्ण आचरण करते हुए स्वयं को देव मानव और दिव्य मानव में प्रमाणित करता। सार्वभौम व्यवस्था और अखंड समाज के लिए गाँधी विनोबा जैसे कई महापुरुषों के जीवन प्रमाण, उपकार के प्रति हम कृतज्ञता को अर्पित करते हुए आज विनोबा पुण्यतिथि के अवसर पर उनके जय जगत उद्घोषणा को साकार करने का संकल्प लेते हुए प्रकृति की सभी अवस्थाओं के साथ रहना स्वीकार कर पर्यावरणीय समस्या का समाधान करें। कार्यक्रम में प्रभारी प्रधानाध्यापक डॉ. धनंजय कुमार सिंह, शिक्षक मु. शमशाद आलम, सुबोध कुमार, कुंदन कुमार, सच्चिदानंद झा, वीरेंद्र कुमार संतोष, देववर्धन कुमार, कलानंद मंडल, मु. हारूण रशीद, अरविन्द कुमार, मीनाक्षी कुमारी, माधवी कुमारी, रीता कुमारी, माधुरी कुमारी, सुनीता राय, पिकी कुमारी, छात्रा तान्या चंद्र झा, कुमारी जया भारती, नेहा कुमारी, पूजा, छात्र करण कुमार, अजय कुमार, नरेश कुमार मेहता आदि उपस्थित थे।

loksabha election banner

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.