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उत्तम खेती मध्यम बान, नीच चाकरी भीख निदान

छापामारी दल का नेतृत्व थानाध्यक्ष सुधाकर कुमार खुद कर रहे थे। छापामारी दल का नेतृत्व थानाध्यक्ष सुधाकर कुमार खुद कर रहे थे। छापामारी दल का नेतृत्व थानाध्यक्ष सुधाकर कुमार खुद कर रहे थे। छापामारी दल का नेतृत्व थानाध्यक्ष सुधाकर कुमार खुद कर रहे थे। छापामारी दल का नेतृत्व थानाध्यक्ष सुधाकर कुमार खुद कर रहे थे। छापामारी दल का नेतृत्व थानाध्यक्ष सुधाकर कुमार खुद कर रहे थे। छापामारी दल का नेतृत्व थानाध्यक्ष सुधाकर कुमार खुद कर रहे थे। छापामारी दल का नेतृत्व थानाध्यक्ष सुधाकर कुमार खुद कर रहे थे। छापामारी दल का नेतृत्व थानाध्यक्ष सुधाकर कुमार खुद कर रहे थे। छापामारी दल का नेतृत्व थानाध्यक्ष सुधाकर कुमार खुद कर रहे थे। छापामारी दल का नेतृत्व थानाध्यक्ष सुधाकर कुमार खुद कर रहे थे। छापामारी दल का नेतृत्व थानाध्यक्ष सुधाकर कुमार खुद कर रहे थे। छापामारी दल का नेतृत्व थानाध्यक्ष सुधाकर कुमार खुद कर रहे थे। छापामारी दल का नेतृत्व थानाध्यक्ष सुधाकर कुमार खुद कर रहे थे।

By JagranEdited By: Published: Thu, 17 Oct 2019 07:02 PM (IST)Updated: Thu, 17 Oct 2019 07:02 PM (IST)
उत्तम खेती मध्यम बान, नीच चाकरी भीख निदान
उत्तम खेती मध्यम बान, नीच चाकरी भीख निदान

जागरण,संवाददाता सुपौल: उत्तम खेती मध्यम बान, नीच चाकरी भीख निदान। इन पंक्तियों को दोहराते कभी इलाके के किसानों का सीना चौड़ा होता था। अब तो खेती किसान सिर्फ इसलिए करते हैं कि इसके अलावा कोई चारा ही नहीं है। कोसी के किसानों की न तो कभी समस्याओं को देखा गया और ना ही कभी बेहतरी के सार्थक उपाय ही तलाशे गए। योजनाएं चली, कोरम मात्र पूरा होता रहा। जबकि हर चुनाव किसानों की समस्या सुर्खियों में रही और तारणहार मौका पाते ही इसे सलट देने का आश्वासन देते रहे।

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कोसी के इलाके में एक बड़ा हिस्सा सिपेज का है। जहां खेती हमेशा से समस्या बनी हुई है। सरकार इन दिनों लगातार जगह-जगह मेले लगाकर दावा कर रही है कि देश में दूसरी हरित क्रांति बिहार की जमीन पर ही होगी। मगर कितना बड़ा विरोधाभास है कि एक तरफ पिछले छह सालों में नहर अपनी दुर्दशा पर ही रोता रहा और दूसरी तरफ हरित क्रांति का शंखनाद।

हरित क्रांति का ही सपना है कि जिले के सभी प्रखंडों में किसानों को मेला लगाकर श्रीविधि खेती की ट्रेनिग दी जा रही है। श्रीविधि अर्थात सिस्टम ऑफ राइस इनटेंसीफिकेशन। इस तकनीक से खेती करने में खासियत है कि इसमें खेतों को सिचाई करने के लिए ज्यादा पानी की जरूरत नहीं पड़ती है। सिर्फ खेतों में कीचड़ लगा रहे इतना भर ही पानी चाहिए।

जिस इलाके में खेती की भूमि के 70 प्रतिशत हिस्से में महीनों बाढ़ और वर्षा से जलजमाव की स्थिति बनी रहती वहां श्रीविधि से खेती की बात उचित नहीं प्रतीत होती। मगर सरकार के कृषि अधिकारी इससे इत्तेफाक नहीं रखते। बताते हैं कि श्रीविधि तकनीक काफी कारगर है। और इसे अपनाने से उत्पादकता में भी इजाफा होगा। अब यह तो बड़ा सवाल है कि मध्य बिहार के टाल इलाके की तरह कोसी में ढूंढऩे पर भी विरले ही उंची खेत कहीं मिल पाए।

70 के दशक में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश ने हरित क्रांति का सपना देखा और जज्बा ऐसा कि साकार भी हुआ। आज पंजाब और हरियाणा के औसत उत्पादन स्तर पर पहुंचना बिहार के लिए चुनौती है। पंजाब में जहां धान का औसत उत्पादन 32 क्विटल प्रति हेक्टेयर है। वहीं बिहार में 15 क्विटल प्रति हेक्टेयर। पंजाब में 93 प्रतिशत भूमि पर सिचाई की सरकारी सुविधा उपलब्ध है जबकि बिहार में महज 23 प्रतिशत। संसाधनों और उत्पादकता के इस लक्ष्य को पूरा करना तो फिलहाल सपना जैसा ही लगता है।


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