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शक्ति की देवी की आराधना से ही पराक्रम संभव : आचार्य

संवाद सूत्र करजाईन बाजार (सुपौल) श नाम ऐश्वर्य का और शक्ति नाम पराक्रम का है। ऐश्वर्य-परा

By JagranEdited By: Published: Sat, 17 Oct 2020 05:20 PM (IST)Updated: Sat, 17 Oct 2020 05:20 PM (IST)
शक्ति की देवी की आराधना से ही पराक्रम संभव : आचार्य
शक्ति की देवी की आराधना से ही पराक्रम संभव : आचार्य

संवाद सूत्र, करजाईन बाजार (सुपौल): श नाम ऐश्वर्य का और शक्ति नाम पराक्रम का है। ऐश्वर्य-पराक्रम स्वरूप और दोनों के प्रदान करने वाली को शक्ति कहते हैं। इसी आदि शक्ति प्रकृति देवी की विकृति रूप ही जगत है। नवरात्र के मौके पर आदिशक्ति माता जगदम्बा के रूपों पर प्रकाश डालते हुए आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि जिस प्रकार प्रकृति अपने विकृति रूप से जगत की रचना करती है या संक्षेप में प्रकृति शब्द को अर्थ के द्वारा इस प्रकार दर्शाया जाता है। प्र का अर्थ प्रकृष्ट (उकृष्ट) और कृति का अर्थ श्रृष्टि है। अर्थात जो सृष्टि रचने में प्रकृस्ट है। उसे प्रकृति कहते हैं। प्र शब्द तीन गुणों से विशिष्ट है। इन तीन गुणों के द्वारा ही तीन देवताओं को अर्थात सत्य से श्री विष्णु को रज से ब्रह्मा को और तम से रूद्र को उत्पन्न कर भगवती जगत का जन्म, पालन और लय करती है। धर्म शास्त्रों में इसी प्रकार का स्वरूप बताया गया है। सृष्टि की आदि में एक देवी ही थी उसने ही ब्रह्मांड उत्पन्न किया। उससे ही ब्रह्मा, विष्णु और रूद्र उत्पन्न हुए। अन्य सब कुछ उससे ही उत्पन्न हुए। यही परा शक्ति है। रहस्य ग्रंथों में भी इसका वर्णन निम्न प्रकार है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश अपने अर्धांगी भूत से त्रिविध शक्ति सरस्वती, लक्ष्मी और गौरी की सहायता से ही जगत का जनन, पालन और लय करते हैं। ज्ञान, समृद्धि, संपत्ति, यश और बलवाचक शब्द युक्त भगवती से संयुक्त होने से आत्मा का नाम ही भगवान है। स्वेच्छा होने से भगवान कभी आकार और कभी निराकार होते हैं। वहीं जगदंबा जब-जब दानव जन्य बाधा उपस्थित होंगी। तब-तब अवतरित होकर दुष्टों का नाश करेगी। अपनी प्रतिज्ञा अनुसार समय-समय पर दुर्गा भीमा शाकम्भरी आदि नामों से अवतार लेकर जगत का पालन करती है। ब्राह्मणी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नरसिंही, ऐन्द्री, शिवदूती और चामुंडा ये ही देवी की नौ शक्तियां मानी गई है। कलौ चंडी विनायकों के अनुसार कलयुग में चंडी दुर्गा एवं विनायक गणेश जी की प्रधानता सिद्ध है। उसमें सर्वप्रथम शक्ति दुर्गा का ही उल्लेख है। यह देवी चारों पुरुषार्थों को प्रदान करती है। ऐसी दुर्गा आराधना साधना करने से जिस-जिस कामनाओं से जिन जिन वास्तु की इच्छा करता है,उसे अल्प प्रयास से ही सभी मनोरथ की प्राप्ति होती है। यही आद्या शक्ति भगवती दुर्गा उपवास रखने वाले भक्तों को सदैव सकल पदार्थ प्रदान करती है।

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