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ग्रामीण क्षेत्रों में भी गूंज रहा माता रानी का जयकारा मंदिरों की ओर खिचे चले जा रहे श्रद्धालु

जागरण संवाददाता सुपौल ग्रामीण क्षेत्रों में भी माता रानी का जयकारा गूंज रहा है। मंदिरों

By JagranEdited By: Published: Wed, 13 Oct 2021 11:30 PM (IST)Updated: Wed, 13 Oct 2021 11:30 PM (IST)
ग्रामीण क्षेत्रों में भी गूंज रहा माता रानी का जयकारा मंदिरों की ओर खिचे चले जा रहे श्रद्धालु
ग्रामीण क्षेत्रों में भी गूंज रहा माता रानी का जयकारा मंदिरों की ओर खिचे चले जा रहे श्रद्धालु

जागरण संवाददाता, सुपौल : ग्रामीण क्षेत्रों में भी माता रानी का जयकारा गूंज रहा है। मंदिरों में बजते भजन चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है पर मानो श्रद्धालु मंदिरों की ओर खींचे चले जा रहे हैं। बरुआरी, बरैल, परसरमा, सुखपुर, वीणा, कोरियापट्टी, भीमनगर, लक्ष्मीपुर आदि के दुर्गा मंदिरों में बजते शंख-घड़ियाल से वातावरण दुर्गामय हो गया है। गांव से बाहर रहने वाले लोग घरों को लौट आए हैं इसलिए लगभग हर घर में चहल-पहल है।

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विघ्नेश्वरी स्थान है आस्था का केंद्र

जिला मुख्यालय से सटे पूरब वीणा पंचायत स्थित भगवती विघ्नेश्वरी स्थान प्राचीन दिव्य शक्ति पीठ के रूप में माना जाता है। अत्यंत प्राचीन और धार्मिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध इस स्थल के लिए ग्रामीणों एवं आसपास के गांवों के लोगों की आस्था असीम है। जब भी कोई विघ्न या बाधा की स्थिति आती है तो लोग विघ्नेश्वरी भगवती का स्मरण करते हैं और उनकी समस्याओं का समाधान विघ्नेश्वरी भगवती करती हैं। कहा जाता है कि राजा वीण देव ने वीणा गांव का निर्माण किया था और इष्टदेवी के रूप में विघ्नेश्वरी भगवती की स्थापना की थी। राजा वीण देव ने शक्ति पीठ के चारों ओर सुरक्षित किले का निर्माण करवाया था और उसी किले के बीच भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था। किले के अवशेष आज भी मौजूद हैं जिसे गढ़वीणा डीह या गढ़ी के नाम से जाना जाता है।

------------------------ लक्ष्मीनाथ गोसाई ने की थी तंत्र सिद्धि

परसरमा की दुर्गा की ख्याति मिथिलांचल में दूर-दूर तक फैली हुई है। ग्रामीणों के मुताबिक यहां चार सौ साल से पूजा हो रही है। मान्यता है कि हर मनोकामना पूरी करती है माता। शारदीय नवरात्र के मौके पर प्रतिमा बनाकर यहां पूजा की जाती हो। तंत्र साधना के लिए यहां सदियों से साधक पहुंचते रहे हैं। ग्रामीणों की मानें तो मिथिला नरेश दरभंगा महाराज रामेश्वर सिंह ने भी यहां आकर तंत्र सिद्धि की थी। लोकदेव लक्ष्मीनाथ गोसाई ने भी यहीं माता दरबार में अपनी साधना व सिद्धि की थी। माता मंदिर के सामने का तालाब गोसाई ने खुदवाया था और जल आसन ले घंटों साधना किया करते थे। यहां प्रतिमा विसर्जन की अछ्वुत परंपरा है। विजयादशमी को यात्रा के उपरांत संध्याकाल में भगवती को उल्टा रूप में जल प्रवाह कराया जाता है। जल प्रवाह में शामिल लोग पुन: पलटकर नहीं देखते। विसर्जन से पूर्व ही मंदिर में लगा साजो सामान खोल दिया जाता है। यहां तक कि रोशनी भी बंद कर दी जाती है।

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कोरियापट्टी की मां दुर्गा की महिमा की कथाएं हैं अनेक

जदिया थाना क्षेत्र के कोरियापट्टी में आजादी के पहले स्थानीय जमींदार राजेंद्र प्रसाद सिंह ने मां दुर्गा की स्थापना कर पूजा अर्चना आरंभ की थी। इसके बाद से ही यहां दुर्गा पूजा के मौके पर भव्य मेला का आयोजन किया जाने लगा जो सुप्रसिद्ध मेले में शुमार होने लगा। ऐसे तो यहां के मां दुर्गा की महिमा की सैकड़ों कथाएं हैं कितु सबसे अहम है कि एक बार फुलकाहा निवासी होरित पंडित माता की मूर्ति बनाने से इन्कार कर दिया तो वे बीमार हो गए। उन्हें इलाज में ले जाया गया कितु सुधार नहीं हुआ। दूसरे मूर्तिकार से मूर्ति बन ही नहीं रही थी। तब उधर माता ने होरित पंडित को सपना दिया कि तुम मेरी मूर्ति तैयार करो तो ठीक हो जाओगे। उन्होंने ऐसा ही किया तब जाकर वे ठीक हो गए और मूर्ति भी बनकर तैयार हो गई।

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बिन मांगे मुरादें पूरी करती हैं माता

सरायगढ़-भपटियाही प्रखंड के शाहपुर-पृथ्वीपट्टी पंचायत अंतर्गत लक्ष्मीपुर गांव की मां भगवती अपने भक्तों की बिन मांगे भी मन्नतें पूरी कर देती हैं। सिमराही-सिमरी सड़क के किनारे अवस्थित मां भगवती मंदिर में भक्त चढ़ावा करने पहुंचते रहे हैं। इस मंदिर में पड़ोसी देश नेपाल से भी भक्त आते हैं। फारबिसगंज, अररिया, मधुबनी, दरभंगा, सहरसा, मधेपुरा सहित अन्य जगह से कई भक्तजन का आना लगा रहता है।

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मैया की महिमा है निराली

भीमनगर पंचायत के वार्ड नंबर 11 स्थित बड़ी दुर्गा मंदिर का अपना अलग महत्व है। ग्रामीण बताते हैं कि जब यहां कोसी प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य साठ के दशक में प्रारंभ हुआ था तब बिहार समेत विभिन्न प्रांतों से अधिकारी और कर्मचारी यहां कोसी योजना में कार्य करने आए थे। उनलोगों ने इस स्थल पर माता के मंदिर की नींव रखकर पूजा-अर्चना की। इसके बाद धीरे-धीरे मंदिर का निर्माण हुआ जो आज बड़ी दुर्गा मंदिर के रूप में विख्यात है। सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण नेपाल से भी लोग हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पूजा अर्चना करने आते हैं। मैया की महिमा निराली है।

बहरहाल पूजा को लेकर चारों तरफ उत्सवी माहौल है। लोग अपनी श्रद्धा अनुसार माता की आराधना में जुटे हैं।


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