दुर्गतिनाशिनी है माता दुर्गा : आचार्य
सुपौल । आदि शक्ति माता दुर्गाजी के संबंध में यह बात प्रसिद्ध है कि वे हिमालय की पत्नी मैना के गर्भ
सुपौल । आदि शक्ति माता दुर्गाजी के संबंध में यह बात प्रसिद्ध है कि वे हिमालय की पत्नी मैना के गर्भ से प्रगटित हई है। वैदिक कोष के अनुसार मैना शब्द का अर्थ ''''वाणी'''' और ''''गिरी'''' शब्द का अर्थ मेघ-पर्वत होता है। माता का महत्वपूर्ण कार्य अपने बच्चों को दूध पिलाना भी है। वे जगत को जलरूपी दूध पिलाती हैं। इस काम में मेघ पिता के समान उनका सहायक होता है। इसलिए उनका नाम गिरिजा संस्कृत साहित्य में पार्वती से प्रसिद्ध है। नवरात्र के मौके पर माता दुर्गा का महात्म्य बताते हुए आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि भगवती दुर्गा दुर्गतिनाशिनी हैं। दुर्गति को विनष्ट करने के लिए वीरता की आवश्यकता है। वीर सिंह के समान शत्रुओं को भी वश में रखता है। इसी बात की शिक्षा के लिए उनका वाहन सिंह है। तंत्र और पुराणों में उनके हाथों में रहने वाले अस्त्र-शस्त्रों का भी वर्णन है, जो वास्तव में पापियों को दिये जाने वाले रोग-शोक के द्योतक हैं। उनके हाथ का त्रिशूल आध्यात्मिक, आधिभौतिक तथा आधिदैविक पीड़ाओं को जानता है। प्रलयकाल में जब ब्रह्माण्ड श्मशान हो गया। जीवों के खण्ड-मुण्ड इधर-उधर बिखर गए तो परमेश्वरी को चिता निवासी और खण्ड-मुण्डधारी कहा जाने लगा। क्योंकि उस समय उनके अतिरिक्त दूसरे की सत्ता नहीं रहती है। माता के भय से पापी राक्षसों के रक्त-मांस सूख जाते हैं। जगजननी का शरीर दिव्य है। उसमें पंचतत्वों का अथवा विकारों का संयोग नहीं है। घिसने पर जैसे सलाई की तीली से आग प्रगटित होती है, वैसे ही भक्तों के कल्याण के लिए दिव्य रूप से आविर्भूत होते हैं। परमात्मा या जगदम्बा निराकार रहकर भी सब काम कर सकते हैं। वे दिव्य मूर्ति धारण करते हैं, जिससे कि भक्त मूर्ति पूजा कर शीघ्र भगवती को प्राप्त करें। ऋग्वेद में आया है कि भक्त सपरिवार मिलकर मूर्ति की पूजा करें। मंत्र में अर्चन क्रिया तीन बार आया है। इसका तात्पर्य यह है कि शरीर, मन और वचन से मूर्ति पूजन करना चाहिए।