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बीत गया जमाना, नहीं बदल सकी प्रतापगंज हाट की तस्वीर

सुपौल। जिले के नामचीन हाट के रूप में स्थान रखने वाला प्रतापगंज का हटिया अपनी बदहाली पर आंसू

By JagranEdited By: Published: Sun, 28 Oct 2018 01:21 AM (IST)Updated: Sun, 28 Oct 2018 01:21 AM (IST)
बीत गया जमाना, नहीं बदल सकी प्रतापगंज हाट की तस्वीर
बीत गया जमाना, नहीं बदल सकी प्रतापगंज हाट की तस्वीर

सुपौल। जिले के नामचीन हाट के रूप में स्थान रखने वाला प्रतापगंज का हटिया अपनी बदहाली पर आंसू बहाने को विवश है। जमाना बीत गया अब तक नहीं बदल सकी प्रतापगंज हाट की तस्वीर। सरकार को मोटा राजस्व देने वाली प्रतापगंज हाट अतिक्रमणकारियों के चपेट में आकर सिकुड़ रहा है। सैकड़ों लोगों को रोजगार देने वाला उक्त हटिया सरकारी व्यवस्था के अभाव में दूर दराज से आने वाले व्यवसायियों के लिए सुविधा देने में अक्षम साबित हो रही है। हाट के चारों ओर गंदगी का अंबार पसरा पड़ा है। इसकी साफ-सफाई की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। पेयजल की व्यवस्था भी यहां नदारद है। शौचालय की व्यवस्था नहीं रहने से लोगों को काफी कठिनाई होती है। हटिया में जलजमाव होना एक बड़ी समस्या बनी रहती है। प्रखंड के उक्त पुराने हटिया का अस्तित्व आबादी बढ़ने व प्रखंड के समृद्ध होने से हटिया में काफी चहलपहल बढ़ती जा रही है। लेकिन व्यवस्था के अभाव में यहां के दुकानदारों और ग्राहकों को भारी परेशानी उठानी पड़ती है। प्राचीन इस हाट में प्रखंड सहित दूर-दराज के विभिन्न प्रखंडों व पंचायतों के लोग भी इस हाट में सामान खरीदने के साथ-साथ बेचने के लिए आते हैं। लेकिन विभाग की ओर से इस हाट को कोई सुविधा नहीं मिल रही है। वर्षों पूर्व हाट परिसर में जो शेड लगाया गया था उसके भी अधिकांश हिस्से जर्जर हो चुके हैं। हाट के सब्जी मंडी के दुकानदार कहते हैं कि इस हाट में जलनिकासी की कोई व्यवस्था नहीं है। हल्की सी बारिश होने पर जलजमाव एक बड़ी समस्या बन जाती है। दिनों दिन हाट का क्षेत्र सिकुड़ता जा रहा है। अतिक्रमणकारी स्थायी रूप से मकान बनाकर अपनी दुकानदारी चला रहे हैं। साग-सब्जी बेचने वालों को बैठने तक की जगह नहीं मिल पा रही है। छोटे-छोटे व्यापारी मजबूरीवश पश्चिम के पक्की सड़क पर अपनी दुकानदारी करते हैं। मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं होने के कारण हाट की रौनक में कमी आती जा रही है। खासकर शौचालय और पेयजल की व्यवस्था नहीं होने के कारण महिलाओं को बेहद कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा साफ-सफाई की कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं है। इतना ही नहीं शेड के अभाव में सालोभर दुकानदारों को को खुले आसमान के नीचे दुकानदारी करनी पड़ती है। बरसात के दिनों में लोगों को कीचड़-पानी में विवश होकर खरीद-बिक्री करनी पड़ती है। दुकानदारों का कहना है कि स्वच्छता अभियान की सफलता की दिशा में हाट-बाजारों में शौचालय निर्माण, शुद्ध पेयजल, डस्टबिन एवं सफाई कर्मी की व्यवस्था होनी चाहिए। बता दें कि उक्त हाट सप्ताह के दो दिन सोमवार और शुक्रवार को लगता है। शेष अन्य दिन गुदरी लगती है।

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