पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है मलमास
सुपौल। मलमास को पुरुषोत्तम मास अधिकमास और मलमास को पुरुषोत्तम मास अधिकमास और अधिमास के नाम से भी जाना जाता है।
सुपौल। मलमास को पुरुषोत्तम मास, अधिकमास और अधिमास के नाम से भी जाना जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार प्रत्येक 28 मास के बाद और 36 मास से पहले सामान्यत: अधिकमास 32 महीने, 16 दिन व 4 घड़ी के अंतर से आता है। अधिकमास में सूर्य का किसी भी ग्रह पर संक्रमण नहीं होता है। इसलिए यह मास अलग ही रह जाता है। अलग रहने के चलते ही इसे अधिकमास कहते हैं।
मलमास के रहस्यों पर प्रकाश डालते हुए आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र कहते हैं कि 17 सितंबर से 16 अक्टूबर तक मलमास रहेगा। उन्होंने कहा कि जिस महीने में सूर्य संक्रांति होती है, वह सामान्य मास है और इसमें वेद विहित मांगलिक कार्य किए जाते हैं। लेकिन मलमास में सूर्य संक्रांति नहीं होने के कारण मांगलिक कार्य वर्जित है। शास्त्रानुसार मलमास में पैतृक श्राद्ध आदि कार्य किए जा सकते हैं। अधिकमास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। पुरुषोत्तम मास की विशेष महिमा में है। प्राचीन काल में जब अधिकमास की उत्पत्ति हुई तब उस मास में सूर्य की संक्रांति नहीं थी और न ही उस मास का कोई स्वामी था। इसी कारण अधिकमास को मंगल कार्य आदि के लिए निषिध माने जाने लगा।
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मलमास में क्या करना चाहिए और क्या नहीं
इस बारे में देवगुरु वृहस्पति के अनुसार प्रतिदिन लगातार किया जाने वाला कार्य जैसे प†चयज्ञ और किसी नियमित रूप से होने वाला या किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निरंतर किया जाने वाला अनुष्ठान जैसे पर्वश्राद्धादि नियंत्रित एवं पवित्र होकर मलमास में भी करना चाहिए। तीर्थ स्नान, चन्द्रसूर्यग्रहण निमित्तक श्राद्ध, मरणनिमित्तक स्नान, गर्भाधान संस्कार, सूद पर कर्ज देने का काम, मृत व्यक्ति निमित्तक पिण्डदानादि कर्म तथा समान पितरों के सम्मान में किया जाने वाला विशेष श्राद्धानुष्ठान में बुद्धिमान लोग अधिमासजन्य दोष नहीं मानते, अर्थात ये सभी कर्म मलमास में भी कर्त्तव्य है।