अच्छे पौधे, बुरे पौधे:: फाइलों में दिखती हरियाली जमीन पर नहीं पनपते पौधे
जागरण संवाददाता सुपौल बेशक पर्यावरण संरक्षण के लिए पेड़ की जरूरत हर कोई महसूस कर
जागरण संवाददाता, सुपौल: बेशक पर्यावरण संरक्षण के लिए पेड़ की जरूरत हर कोई महसूस कर रहे हैं। पर्यावरण को शुद्ध और प्रदूषण मुक्त बनाने की दिशा में सरकार ने भी पौधारोपण को अपने मुख्य एजेंडा में शामिल कर रखा है। पिछले ही वर्ष राज्य सरकार ने अपने सात निश्चय योजना में जल-जीवन-हरियाली को शामिल कर इसे राज्यव्यापी अभियान का रूप दे रखा है। अभियान सफल हो इसके लिए एक वृक्ष 10 पुत्र के समान नारा देकर विभाग को भी मुस्तैदी से काम करने की हिदायत दी गई। बावजूद अभियान को जो गति मिलनी चाहिए थी वह अभी तक नहीं मिल पाई है। आज भी जिले में धरातल से अधिक विभाग के फाइलों में ही हरियाली फैली हुई है। स्थिति ऐसी है कि विभिन्न योजनाओं के नाम पर प्रति वर्ष लाखों पौधे लगा कर हरियाली तो दिखा दी जाती है परंतु जमीन पर इस अनुपात में पौधे नहीं दिखते। परिणाम है कि कोसी की विभीषिका से हर वर्ष दो-चार होने वाले कृषि प्रधान इस जिले में कोई ऐसा भी भाग नहीं जिन्हें वन क्षेत्र का दर्जा मिला हो।
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हर वर्ष लक्ष्य होता पूरा, जमीन पर नहीं पनप पाता पौधा
पौधरोपण के नाम पर हर वर्ष जिले को लक्ष्य दिया जाता है। जिस लक्ष्य को कमोबेस पूरा भी कर लिया जाता है। परंतु कुछ ही दिनों के बाद इसका वजूद ही समाप्त हो जाता है। बस निशानी के नाम पर बच जाता है तो घेरा और मेढ़। इसके पीछे का जो सबसे मूल कारण है वह है देखभाल का अभाव। विभाग द्वारा लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जो मुस्तैदी दिखाई जाती है वह मुस्तैदी इस पौधे को बचाने में नहीं की जाती। देखभाल और सिचाई के अभाव में पौधे मर जाते हैं। गत वर्ष ही वन विभाग की रिपोर्ट को देखें तो विभाग द्वारा जितने पौधे लगाए गए उसमें से करीब 22000 पौधे मर गए। खैर यह तो विभागीय आंकड़ा है। परंतु सच्चाई इससे काफी अलग है।
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गत वर्ष पौधे से 110 हेक्टेयर जमीन हुआ आच्छादित
गत वित्तीय वर्ष 2019-20 में वन विभाग को जिले में सवा लाख पौधे लगाने का लक्ष्य दिया गया था। जिसमें से विभाग द्वारा वित्तीय वर्ष के अंत तक में करीब 116500 पौधे लगाए गए। इस हिसाब से जिले में करीब 110 हेक्टेयर जमीन पर पौधरोपण का कार्य किया गया। जिस पर करीब 58 लाख 25 हजार की राशि खर्च की गई। इतनी राशि से जो पौधे लगाए गए उसमें महोगनी, इसको लिप्टस, अर्जुन, कदम, गम्हार आदि किस्म के अधिकांश पौधे शामिल रहे।
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11 लाख का पौधा हुआ मृत
विभाग के आंकड़े पर यकीन करें तो गत वर्ष जिले में 11.6500 पौधे लगाए गए। जिसमें से करीब 22000 पौधे मर गए। जबकि विभाग का मानना है कि नर्सरी में पौधे उगाने से लेकर रोपाई तक में प्रति पौधा 50 रुपया खर्च आता है। इस हिसाब से देखें तो जिले में सिर्फ एक वित्तीय वर्ष में 11 लाख रुपए के पौधे देखभाल के अभाव में मर गए। खैर यह तो विभागीय आंकड़ा है। जबकि जमीनी हकीकत इससे काफी अलग बयां कर रही है।
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मनरेगा का हाल तो और बना है बेहाल
जिले में पौधरोपण का कार्य वन विभाग के अलावा मनरेगा योजना से भी किया जाता है। परंतु मनरेगा योजना से पौधरोपण का हाल तो और बुरा है। मनरेगा के माध्यम से पौधरोपण के नाम पर हर वर्ष करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं। परंतु जमीन पर खोजने से भी इस अभियान से लगाए गए पौधे नहीं मिल पाता है। हालांकि मनरेगा में कुछ लोगों ने निजी जमीन पर पौधरोपण करने में दिलचस्पी दिखाई है। बावजूद इसकी संख्या अभी बहुत कम है।