पानी बढ़े या घटे, बनी रहती है परेशानी
कोसी के तटबंधों के बीच बसी आबादी हमेशा से खुद को अभिशप्त मानती आई है। पानी के बढ़ने से बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है लेकिन पानी घटने के बाद भी परेशानी कम नहीं होती। कोसी के बीच जिदगी काटने के आदी हो चुके ये लोग हमेशा जिदगी और मौत से जूझते रहते हैं। सरायगढ़-भपटियाही प्रखंड क्षेत्र में एक दर्जन से अधिक गांव नदी के पेट में बसे हैं। सुखाड़ के समय इन्हें रेत का सामना करना पड़ता है संसाधनों और रोजगार की समस्या से दो चार होना पड़ता है।
सरायगढ़ (सुपौल) [विमल भारती]
कोसी के तटबंधों के बीच बसी आबादी हमेशा से खुद को अभिशप्त मानती आई है। पानी के बढ़ने से बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है लेकिन पानी घटने के बाद भी परेशानी कम नहीं होती। कोसी के बीच जिदगी काटने के आदी हो चुके ये लोग हमेशा जिदगी और मौत से जूझते रहते हैं। सरायगढ़-भपटियाही प्रखंड क्षेत्र में एक दर्जन से अधिक गांव नदी के पेट में बसे हैं। सुखाड़ के समय इन्हें रेत का सामना करना पड़ता है, संसाधनों और रोजगार की समस्या से दो चार होना पड़ता है। इसके बाद जब कोसी में बाढ़ आती है तो लोगों की जिदगी नारकीय हो जाती है।
--------------------------------- लंबे समय से चली आ रही कहानी कोसी के गांवों में बसे लोग कभी काफी संपन्न हुआ करते थे। 1939 के बाद के तबाही में जो उजड़े, वे आज तक अपने पुराने जिदगी में नहीं लौट सके। बुजुर्ग बताते हैं कि पहले सभी खुशहाल थे। भपटियाही बाजार का इलाका छोटी कोलकाता के नाम से जाना जाता था। लोहिया फैक्ट्री से लेकर कई अन्य फैक्ट्रियां इस इलाके में थीं। इनमें हजारों लोग काम करते थे। 1939 की बाढ़ में सब कुछ बह गया और तब से लेकर आज तक कोसी अपना कहर बरपा रही है।
-------------------------------- 10 वर्ष पूर्व का प्रलय भी जेहन में है जीवित कोसी के गांवों में बसे लोग 2008 तथा 2010 के हालात को याद कर सिहर उठते हैं। इन दोनों सालों में कोसी के कई गांव पूर्ण रूप से विस्थापित हो गए। ऐसे परिवार अभी भी तटबंधों पर और उसके आसपास शरण लिए हुए हैं। ऐसे परिवारों का कोई ना कोई सदस्य दिल्ली-पंजाब में काम करता है, तब जाकर घर की रोटी चलती है। कोसी ने इन परिवारों के बच्चों का भविष्य बर्बाद कर दिया। छिटपुट बची जमीन पर लोग खेती करते हैं।
----------------------------- हजारों एकड़ जमीन बंजर कोसी के गांवों में हजारों एकड़ जमीन पूरी तरह से बंजर है। यहां बाढ़ के समय पानी तो सुखाड़ के समय रेत रहती है। ईस्ट-वेस्ट-कॉरीडोर बनने के बाद भी इस इलाके के लोगों की तकदीर इसलिए नहीं बदली की कोसी के पानी का दबाव और ज्यादा ही बढ़ गया। कोसी महासेतु की सुरक्षा के लिए बने पूर्वी तथा पश्चिमी गाईड बांध ने लोगों की रही-सही आस भी खत्म कर दी।
----------------------------- सैकड़ों बच्चों का अधर में भविष्य
बाढ़ से घिरे गांवों के लोगों के सैकड़ों बच्चों का भविष्य उजड़ गया। ये पढ़ाई छोड़ मजदूरी करने लगे। परिवार के गुजारे के लिए कोई साधन नहीं होने के कारण कई छात्र अपने अरमान पूरे नहीं कर सके। बाढ़ और कटाव में विस्थापित होने से पूर्व की जिदगी के मुकाबले अब ऐसे लोगों की जिदगी नर्क बन गई।
--------------------------------- कोसी इलाके में लोग नहीं करना चाहते शादी
कोसी के इलाके में बसे लोगों के यहां बाहर के लोग रिश्ता करने से कतराते हैं। खासकर लड़की की शादी करना तो लोग गुनाह ही समझते हैं। इस कारण पिछले कुछ वर्षो में देखा जा रहा है कि कोसी के गांव के बेटे और बेटी की शादी में काफी परेशानी हुआ करती है।
--------------------------------- बाढ़ का पानी उतरते ही कीचड़ से होता है सामना कोसी के गांवों में बाढ़ का पानी जैसे ही नीचे उतरता है, लोगों को कीचड़ से सामना करना पड़ता है। जगह-जगह जमा पानी से फैलती दुर्गंध कई प्रकार के रोग पैदा करती है। स्वास्थ्य केंद्रों की कमी के कारण लोगों की परेशानी और बढ़ जाती है। बीमार मरीजों को लोग कभी खाट तो कभी चारपाई पर टांगकर अस्पताल तक लाते हैं।
------------------------------ मवेशी के चारे का भी हो जाता है अभाव बाढ़ के बाद चारा खत्म होते ही लोगों को मवेशी पालन में भारी समस्या होती है। बाढ़ के पानी के बीच कास-पटेर तथा घास के दब जाने से लोग अपने अपने मवेशी को चारा नहीं दे पाते हैं। ऐसे में गुजारे का महत्वपूर्ण साधन मवेशी पालन भी नुकसान दे जाता है।