कुसहा की उस बाढ़ को याद कर सिहर उठते लोग, नौ साल बाद भी नहीं बदली तस्वीर
सुपौल के कुसहा में नौ साल पहले कोसी ने सारी हदें पार कर ली थीं। बांध टूटने के साथ आए सैलाब का वो मंजर भयावह था। लेकिन, नौ साल बाद भी तस्वीर वही पुरानी है।
सुपौल [भरत कुमार झा]। नौ साल पहले का वह काला दिन याद कर आज भी लोग सिहर जाते हैं। अचानक आए सैलाब में हजारों जिंदगियां बह गई थीं। महाविनाश के उस दौर में सरकार ने कई आश्वासन दिए थे। उनमें कुछ पूरे हुए, कुछ नहीं।
हम बात कर रहे हैं 18 अगस्त 2008 के कुसहा त्रासदी की। उस दिन कोसी ने अपनी सीमाएं लांघ दी थीं। दिशाहीन भागमभाग, अफरा-तफरी, सबकुछ अनिश्चित, सबकुछ अनियंत्रित, फिर भी जिंदगी जीत लेने की अथक कोशिश। यही सच था जब कुसहा तटबंध टूटने के बाद उत्तरी बिहार के एक बड़े हिस्से में तबाही मची थी।
भयावह था बर्बादी का वो मंजर
आंकड़ों की बात करें तो सुपौल, मधेपुरा, सहरसा, अररिया और पूर्णिया के 35 प्रखंडों के 993 गांवों की करीब 33.50 लाख की आबादी कुसहा त्रासदी से प्रभावित हुई थी। साढ़े तीन लाख से अधिक मकान भी बर्बाद हुए थे। तीन लाख हेक्टेयर खेतों में बालू भर गया था। सात लाख से अधिक पशु मौत के शिकार हुए थे।
मुआवजे तक ही सिमटी रही सरकार
त्रासदी के नौ साल बीत गए, लेकिन सरकार राहत और मुआवजे तक ही सिमटी रही। खेतों में रेत की चादर आज तक समेटी नहीं जा सकी है। तटबंध के निर्माण काल से उठी हाई डैम की बात बातों तक ही सिमटी रह गई है। हर साल कोसी का प्रकोप होता है, लोग बहते हैं और सरकार राहत-बचाव कार्य कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है।
क्या खानापूरी बना था हादसे का कारण?
इतिहास के पन्नों को पलटते हैं तो तटबंध के 12.10 व 12.90 किमी स्पर पर कोसी ने खतरे की घंटी 2007 में ही बजा दी थी। 27 अक्टूबर 2007 को जब कोसी उच्चस्तरीय समिति ने तटबंध का निरीक्षण किया तो इन बिंदुओं पर जीर्णोद्धार, पांच नग स्टड निर्माण आदि की अनुशंसा की गई। कार्य 15 जून से पूर्व ही करा लिए जाने का निर्देश दिया गया। सरकार द्वारा गंगा बाढ़ नियंत्रण विभाग को भेजी गई सूचना के अनुसार 15 जून 2008 को काम करा भी लिया गया।
12.90 किमी स्पर पर पांच अगस्त से और 12.10 किमी स्पर पर सात अगस्त से कटाव शुरू हो गया। कोसी उग्र होती गई और सरकारी महकमा बांध को सुरक्षित बताता रहा। 15 अगस्त तक कोसी विकराल हो गई। अपने बचाव में विभाग ने नेपाल के एक थाने में काम में व्यवधान करने का मुकदमा दर्ज कराकर पल्ला झाड़ लिया।
हादसे के बाद भी नहीं चेती सरकार
कोसी पर बहस, विधानसभा में आंकड़ों की उठापटक और राजनीतिक बयानबाजी हमेशा होती रही। विडंबना यह है कि तटबंधों की ठोस सुरक्षा के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया। हर साल बरसात का मौसम आने पर विभाग योजना बनाता है और तटबंध की सुरक्षा के लिए उसी पुराने ढर्रे पर काम किया जाता है। कोसी की धारा को बीच से गुजारने के लिए हर वर्ष तरह-तरह के चैनल की खोदाई होती है, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकलता। इस साल भी कोसी विकराल हो चुकी है, लेकिन तैयारी मुकम्मल नहीं है।
पश्चिम की ओर खिसकने लगी है कोसी
धारा बदलने के लिए मशहूर कोसी अब पश्चिम की ओर खिसकने लगी है। इस वर्ष उसने विभिन्न बिंदुओं पर जबरदस्त दबाव बनाया है। नतीजा भी सामने है कि कुछ वर्ष पहले तक निश्चिंतता महसूस करने वाली आबादी इस बार बाढ़ का दंश झेलने को मजबूर हो गई है। सरकारी स्तर पर राहत और बचाव कार्य किए जा रहे हैं और विभाग कटाव-बचाव के खेल में व्यस्त है।
कम पड़ गया लक्ष्य
कोसी के पुनर्निर्माण का सरकार ने संकल्प लिया। सुपौल, सहरसा और मधेपुरा में पुनर्वास के लिए 61,676 आवासों का लक्ष्य निर्धारित किया गया। एक तो क्षति के हिसाब से लक्ष्य कम पड़ गया, ऊपर से नौ साल बीतने के बाद भी इसे पूरा नहीं किया जा सका है।
विधायक ने माना, बहुत कुछ करना शेष
स्थानीय विधायक नीरज कुमार सिंह बबलू के अनुसार कुसहा त्रासदी के बाद सरकार ने जो घोषणाएं की, उनमें बहुत सारे कार्य किए गए हैं। हालांकि, अभी भी बहुत कुछ करना शेष है। । सड़कें बन रही हैं। बाढ़ के बाद विकास हुआ है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना है।
पुनर्वास का 90 फीसद काम पूरा
डीएम बैद्यनाथ यादव कहते हैं कि पुनर्वास पुनर्निर्माण का कार्य 90 फीसद पूरा कर लिया गया है। नई- नई सड़कें बनीं। पुल-पुलिया बनाए गए। जहां तक बाढ का सवाल है तो इस वर्ष की बाढ कोसी से संबंधित नहीं है। तटबंध पूरी तरह सुरक्षित है।