कोसी की बंजर बालू फिर बनेगी ‘सोना उगलने वाली जमीन’, तरबूज-खरबूजे की खेती के लिए पहुंचे यूपी के किसान
कोसी नदी के किनारे उत्तर प्रदेश के किसान तरबूज और खरबूजे की खेती करने पहुंचे हैं। वे कोसी की बंजर बालू को उपजाऊ बनाने की तैयारी कर रहे हैं। किसान छह म ...और पढ़ें

बालू फिर बनेगी सोना उगलने वाली जमीन
विमल भारती, सरायगढ़ (सुपौल)। कोसी नदी के बंजर और सूखी बालू पर एक बार फिर हरियाली लौटने वाली है। उत्तर प्रदेश के बागपत सहित विभिन्न जिलों से प्रवासी किसान तरबूज, ककड़ी, खरबूजा, बतिया, कद्दू और कदीमा जैसी फसलों की खेती के लिए कोसी नदी के तट पर पहुंच चुके हैं।
कोसी बराज से लेकर कोपड़िया घाट के बीच के विस्तृत इलाके में बड़े पैमाने पर खेती की तैयारी शुरू हो गई है। इन किसानों का उद्देश्य एक बार फिर बालू की बंजर जमीन को “सोना उगलने वाली भूमि” में बदलना है।
हर वर्ष की तरह इस बार भी यूपी के किसान यहां पहुंचकर अपनी अस्थायी बसावट शुरू कर चुके हैं। जानकारी के अनुसार ये किसान लगभग छह महीने तक परिवार सहित कोसी नदी के बालू पर ही रहते हैं और खेती कर प्रतिवर्ष लाखों रुपये की कमाई करते हैं।
जैसे ही चैत माह में कोसी में लाल पानी उतरता है, उसी समय ये किसान वापस अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश लौट जाते हैं।
हजारों की संख्या में पहुंचते हैं प्रवासी किसान
कोसी के इस क्षेत्र में हर साल हजारों की संख्या में यूपी के किसान पहुंचते हैं। इनमें बागपत, मेरठ, शामली, मुजफ्फरनगर सहित अन्य जिलों के किसान शामिल होते हैं।
ये किसान कोसी के बदले स्वरूप से अच्छी तरह परिचित हैं और जानते हैं कि बाढ़ के बाद यहां की बालू तरबूज जैसी फसलों के लिए कितनी उपजाऊ हो जाती है। किसानों में शामिल मु. जुनेद, मु. देवाना, मु. यासीन सहित अन्य किसानों ने बताया कि उन्होंने धीरे-धीरे कोसी नदी के बीच अपने अस्थायी आशियाने बनाना शुरू कर दिया है।
झुग्गी बनाकर परिवार के साथ रहने की व्यवस्था की जा रही है। साथ ही बिजली, चापाकल और पानी की भी व्यवस्था की जाएगी, ताकि छह माह तक जीवन-यापन में किसी तरह की कठिनाई न हो।
बालू पर तैयार होगी तरबूज-ककड़ी की नर्सरी
किसानों ने बताया कि सबसे पहले तरबूज, बतिया, खरबूजा, ककड़ी, कद्दू व कदीमा का बीज नर्सरी में डाला जाएगा। जब पौधा कुछ बड़ा हो जाएगा, तब उसे बालू में बनाए गए गड्ढों में रोपित किया जाएगा। इसके बाद नियमित रूप से खाद और पानी दी जाएगी।
मु. यासीन ने बताया कि पिछले वर्ष भी वे बड़ी संख्या में अपने साथियों के साथ यहां पहुंचे थे और अच्छी पैदावार हुई थी। उन्होंने कहा कि यूपी के विभिन्न जिलों के किसान हर साल सुखाड़ के मौसम में नदियों के किनारे खेती के लिए निकलते हैं, लेकिन सबसे बड़े पैमाने पर खेती कोसी नदी के तट पर ही होती है।
कोसी की बालू होती है तरबूज के लिए सबसे उपयुक्त
किसानों का कहना है कि बार-बार आने वाली बाढ़ के कारण कोसी की बालू पूरी तरह स्वच्छ और उपजाऊ हो जाती है। इससे तरबूज की फसल में विशेष मिठास आती है। कोसी की बालू पर पैदा हुआ तरबूज देश के विभिन्न हिस्सों में भेजा जाता है, जिसकी बाजार में अच्छी खासी मांग रहती है।
बिहार के साथ-साथ बंगाल, झारखंड, उत्तर प्रदेश और दिल्ली-एनसीआर तक यहां का तरबूज सप्लाई होती है। किसानों ने बताया कि कोसी के क्षेत्र में उगाए गए तरबूज की मिठास अन्य स्थानों की तुलना में कहीं अधिक होती है, इसी वजह से व्यापारी पहले से ही एडवांस बुकिंग करने लगते हैं।
बंजर भूमि से लाखों की कमाई
एक तरफ जहां कोसी की बालू को स्थानीय लोग खेती के लिए बेकार मानते हैं, वहीं यूपी के किसान इसी बंजर भूमि से लाखों रुपये की कमाई कर मिसाल पेश करते हैं। किसानों के अनुसार सही तकनीक और मेहनत से बालू में भी बेहतरीन फसल ली जा सकती है।
कृषि विशेषज्ञों का भी मानना है कि कोसी की रेत तरबूज जैसी लतदार फसलों के लिए बेहद अनुकूल है, क्योंकि इसमें जल निकासी अच्छी होती है और नमी संतुलित रहती है।
छह माह तक बालू पर बसेगा जीवन
किसान मु. जुनेद ने बताया कि मार्च-अप्रैल से लेकर अगस्त-सितंबर तक पूरा परिवार यहीं बालू पर ही रहता है। बच्चों की पढ़ाई से लेकर खाने-पीने और रोजमर्रा की जरूरतें सब कुछ झुग्गियों में रहकर पूरी की जाती हैं। यह जीवन कठिन जरूर है, लेकिन मेहनत का फल भी उतना ही मीठा मिलता है।
स्थानीय लोगों को भी मिलता है रोजगार
कोसी के बालू पर होने वाली इस खेती से स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिलता है। खेतों की तैयारी, निराई-गुड़ाई, सिंचाई और फसल की तुड़ाई के दौरान बड़ी संख्या में स्थानीय मजदूरों को काम मिलता है, जिससे क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियों में भी तेजी आती है।
इस वर्ष भी बेहतर पैदावार की उम्मीद
प्रवासी किसानों को इस वर्ष भी बेहतर पैदावार की उम्मीद है। मौसम अनुकूल रहा तो तरबूज, ककड़ी और खरबूजे की बंपर फसल होगी और कोसी की बालू एक बार फिर “सोना उगलती” नजर आएगी।

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