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कोसी से रार आगे रेत की दीवार

भरत कुमार झा सुपौल कोसी में पानी का बढ़ना घटना तटबंधों की सुरक्षा में विभाग का जुटा

By JagranEdited By: Published: Sat, 24 Jul 2021 06:49 PM (IST)Updated: Sat, 24 Jul 2021 06:49 PM (IST)
कोसी से रार आगे रेत की दीवार
कोसी से रार आगे रेत की दीवार

भरत कुमार झा, सुपौल: कोसी में पानी का बढ़ना घटना, तटबंधों की सुरक्षा में विभाग का जुटा रहना, बाढ़ से सुरक्षा और सुरक्षा की समीक्षा बाढ़ के महीनों में ये हर वर्ष होता रहता है। कोई साल ऐसा नहीं गुजरता जब तटबंध के विभिन्न बिदुओं पर कोसी अपना आक्रमण नहीं दिखाती और विभाग उन बिदुओं को संवेदनशील नहीं मानता। बावजूद विभाग हर वर्ष तटबंध को सुरक्षित बताता रहता है। विज्ञान के इस युग में जहां एक से एक तकनीक विकसित हो रहे हैं लेकिन कोसी के आक्रमण से लड़ने का तरीका आज भी परंपरागत ही है। आज भी विभाग बालू से भरी बोरियां लेकर ही मैदान में उतरता है। परक्यूपाईन से उसके वेग को तोड़ा जाता है और बांस की पाइलिग की जाती है। लेकिन यहां तो कोसी की अपनी मर्जी चलती है वेग में होती है तो कहां मानने वाली जबतक शांत नहीं हो जाती बांधना मुश्किल हो जाता है। तीन दिन पहले पश्चिम की रूख चली कोसी ने सिकरहट्टा-मझारी निम्न बांध को चुटियाही में तोड़ डाला। जल प्रलय की आशंका जताई जा रही है। लोग सहमे हैं और विभाग है कि बालू की बोरियां लेकर कोसी की गति के आगे रेत की दीवार बनाने में जुटा है। जबकि विकसित तकनीक के बल एक रात में कई किलोमीटर सड़क बना दी जाती है और बहते पानी में भी पुल का निर्माण कर लिया जाता है।

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बदलती धारा ने कई बार लांघ दी है मर्यादा

कोसी की प्रकृति रही है कि यह हमेशा धारा बदलती रहती है। धारा बदलने के क्रम में ही इसने कई दफे तटबंध पर आक्रमण किया और बाहर निकल गई। जिससे संपूर्ण इलाके में प्रलय मच गया। 1963 में नेपाल के डलवा में तटबंध काटा, 1968 में मुसहरनियां और गंडौल के बीच टूटा, 1971 में भटनिया एप्रोच को काट डाला, 1984 में नवहट्टा के पास तटबंध को काट कोसी ने भारी तबाही मचाई। 1987 में समानी और घोंघेपुर में पश्चिमी तटबंध पर कटाव लगा और बांध टूट गया। 2008 में कुसहा में कोसी ने जो सीमा लांघी थी तो उत्तर बिहार के एक बड़े हिस्से में मचा दी थी तबाही। जिससे पांच जिलों सुपौल, मधेपुरा, सहरसा, अररिया और पूर्णिया के 35 प्रखंडों के 412 पंचायतों के 993 गांवों की कुल 33,45,545 की आबादी प्रभावित हुई। 3,40,742 मकानों की क्षति हुई। तीन लाख हेक्टेयर खेतों में बालू भर गए तथा 7,12,140 पशु मौत के शिकार हुए।


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