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पुत्र की मंगलकामना का पर्व है जिउतिया, तेरह साल बाद खरजितिया का योग

वर्ष 2005 के बाद 13 साल पश्चात जिउतिया व्रती महिलाओं के लिए खरजितिया के साथ व्रत रखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। खरजितिया के योग रहने से नव नवेली पुत्रवान औरत के लिए यह खास माना गया है। धर्मशास्त्र के अनुसार कोई भी पुत्रवान औरत भगवान जिमुतवाहन का व्रत खरजितिया लगने के बाद से ही आरंभ करती हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 20 Sep 2019 12:44 AM (IST)Updated: Fri, 20 Sep 2019 06:41 AM (IST)
पुत्र की मंगलकामना का पर्व है जिउतिया, तेरह साल बाद खरजितिया का योग
पुत्र की मंगलकामना का पर्व है जिउतिया, तेरह साल बाद खरजितिया का योग

सुपौल। वर्ष 2005 के बाद 13 साल पश्चात जिउतिया व्रती महिलाओं के लिए खरजितिया के साथ व्रत रखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। खरजितिया के योग रहने से नव नवेली पुत्रवान औरत के लिए यह खास माना गया है। धर्मशास्त्र के अनुसार कोई भी पुत्रवान औरत भगवान जिमुतवाहन का व्रत खरजितिया लगने के बाद से ही आरंभ करती हैं। इसे अति शुभ माना गया है। हर पुत्रवान महिलाएं के मन में इस योग का काफी लम्बे अरसे से इन्तजार रहता है। जिउतिया व्रत स्त्रियां अपनी संतान की मंगलकामना और लंबी आयु के लिए करती हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार जिउतिया व्रत आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी से नवमी तिथि तक मनाया जाता है। छठ की तरह ही यह व्रत भी तीन दिनों तक चलता है। इसमें पहले दिन नहाय खाय, दूसरे दिन निर्जला व्रत और तीसरे दिन व्रत का पारण होता है। जिसमें सप्तमी को नहाय खाय एवं रात्रि में भिन्सरवा तक ओटघन, अष्टमी को व्रत तथा नवमी को स्नादि पूजन उपरांत व्रत की पूर्णता हेतु पारण एवं ब्राह्मण भोजन कराकर व्रत पूर्ण किया जाता है। जिउतिया पर्व का महात्म्य बताते हुए आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि एक बार सूतजी से समस्त ऋषिगण एवं स्त्रियों ने प्रश्न किया कि ऐसा कौन सा व्रत है, जिसको करने से सन्तान की लम्बी आयु हो तथा वह अकाल मृत्यु का ग्रास नहीं हो। तब सूतजी ने धर्मग्रंथ का हवाला देते हुए बताया कि सतयुग में सत्य आचरण करने वाला जीमूतवाहन नामक राजा था। वह अपनी धर्मपत्नी के साथ ससुराल गया और वहीं पर रहने लगा। एक दिन रात्रि में पुत्र के शोक से व्याकुल होकर कोई स्त्री रो रही थी, क्योंकि उनका कोई भी पुत्र जीवित नहीं था। जीमूतवाहन महाराज द्वारा पूछे जाने पर उस स्त्री ने रोते-बिलखते हुए बताया कि प्रतिदिन गरुड़ आकर गांव के बच्चे को खा जाता है। महिला की पीड़ा सुनने के बाद दुखी राजा ने कहा कि हे देवी तुम चिता मत करो। इसके बाद उस रात में जीमूतवाहन राजा ने बच्चे की जगह खुद को गरूड़ को अर्पित कर दिया। बच्चे के प्रति राजा की ऐसी भावना देख गरुड़जी अति प्रसन्न हुए और राजा से वरदान मांगने को कहा। राजा ने कहा कि हे पक्षी महाराज यदि आप मुझे वर देना चाहते हैं तो यही वरदान दीजिए की आपने अभी तक जो भी बच्चे का भोजन किए हैं वे सब जीवित हो जाएं तथा अब से यहां बालकों को नहीं खाएं और कोई भी ऐसा उपाय करें कि यहां जो उत्पन्न हो वे सभी लोग लंबे समय तक जीवित रहें। तब राजा की प्रार्थना सुनकर गरूड़जी अमृत लाकर मृत बच्चे को जीवित कर दिए। वह दिवस आश्विन मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि थी। तब भी से सभी स्त्रियां यह जीतूवाहन का व्रत विधि- विधान पूर्वक करने लगी।

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शुक्रवार की रात्रि में ओटघन का योग

आचार्य ने बताया कि इस बार व्रती महिलाओं के लिए सितंबर माह के 20 तारीख यानि शुक्रवार को नहाय खाय एवं शुक्रवार की रात्रि समाप्ति यानि 5 बजे सुबह तक (भिन्सरवा तक) ओठगन भी है। दिनांक 21 सितंबर रोज शनिवार को अष्टमी तिथि में जिमुतवाहन व्रत आरंभ होगा। साथ ही व्रत का पारण 22 सितंबर रोज रविवार नवमी तिथि को दोपहर के 2 बजकर 49 मिनट पर व्रत का समापन ब्राह्मण भोग लगवाने के उपरांत करें।


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