गणेशी की बही झोपड़ी , नहीं बचा अन्न का दाना
सुपौल। परसामाधो के गणेशी साह के परिवार में कुल सात लोग हैं। इस परिवार के लोग मेहनत मजदूरी कर अपना जीवन यापन करते थे। गांव में बनी दो झोपड़ी में पूरे परिवार का गुजारा होता था लेकिन बाढ़ में उनकी झोपड़ी गिर गई।
सुपौल। परसामाधो के गणेशी साह के परिवार में कुल सात लोग हैं। इस परिवार के लोग मेहनत मजदूरी कर अपना जीवन यापन करते थे। गांव में बनी दो झोपड़ी में पूरे परिवार का गुजारा होता था लेकिन बाढ़ में उनकी झोपड़ी गिर गई। घर में जो कुछ अनाज बचाकर रखा था वह घर में पानी घुसने के कारण सड़कर बर्बाद हो गया। परिवार के लोगों ने बाढ़ आने पर ऊंचे स्थान पर शरण ले रखा था। पानी उतरने के बाद जब परिवार के लोग घर लौटे तो उनके पैरों तले जमीन ही खिसक गई। देखा कि पानी ने सबकुछ बर्बाद कर दिया है। आज भी इस परिवार के लोग जहां-तहां अपनी रात गुजार रहे हैं। झोपड़ी दोबारा बनाने के लिए उनके पास पैसे नहीं है। बाढ़ के कारण कहीं काम भी नहीं मिल रहा। परिवार का पेट भरने के लिए घर में अन्न नहीं है। गणेशी साह ने बताया कि सरकार की ओर से छह किलो चावल व दाल दिया जा रहा है। इतने अनाज में तो दो दिन का भी गुजारा नहीं होगा। गणेशी तो एक बानगी हैं बाढ़ पीड़ितों की दशा को बयां करने के लिए। प्रभावित इलाकों में ऐसे सैकड़ों गणेशी हैं, जिन्हें बाढ़ की तबाही ने पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है। उन्हें आज बस एक ही बात की ¨चता है, वे कैसे परिवार के लोगों का भरण पोषण कैसे कर पाएंगे। वह भी तब जबकि सरकार की ओर से राहत के नाम पर मात्र कोरम पूरा किया जा रहा है।
कोसी नदी के जलस्तर में उछाल के बाद आई बाढ़ ने प्रभावित गांव के लोगों की कमर तोड़ दी है। बाढ़ ने एक झटके में ही सबकुछ बर्बाद कर दिया। कई दिनों तक घर में पानी रहने के बाद घर में रखे खाद्यान्न सड़ गए। कई की झोपड़ियां बाढ़ के पानी में गिरकर बर्बाद हो गई। सैकड़ों परिवारों के पास आज न सिर छिपाने के लिए छत नहीं है और न
ही घर में खाने के लिए अन्न। सरकारी स्तर पर उपलब्ध कराया जा रहा राहत इनके लिए ऊंट के मुंह में जीरा के समान ही है। राहत के नाम पर मिल रहे मात्र छह किलो चावल से इन परिवारों का काम कैसे चलेगा इस ¨चता में बाढ़ पीड़ितों की रात की नींद गायब हो चुकी है। वैसे अब अधिकांश गांवों से बाढ़ का पानी हट चुका है। ऐसे में प्रभावित परिवारों के लोग अपने घरों की ओर लौट आए हैं। प्रखंड के परसामाधो, हासा, चमेलवा तथा बुढि़याडीह गांवों में सौ से अधिक परिवार ऐसे हैं जिन्हें बाढ़ की तबाही से उबरने में काफी वक्त लगेगा। बाढ़ ने इन परिवारों का सबकुछ तबाह कर दिया।