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अल्पसंख्यक छात्रवृति घोटाला: दो मदरसों के हेड मौलवी पर दर्ज हुई प्राथमिकी

सुपौल। जिले में केंद्र प्रायोजित प्री मैट्रिक अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति योजना के नाम पर करोड़ों रुपय

By JagranEdited By: Published: Mon, 11 Feb 2019 01:48 AM (IST)Updated: Mon, 11 Feb 2019 01:48 AM (IST)
अल्पसंख्यक छात्रवृति घोटाला: दो मदरसों के हेड मौलवी पर दर्ज हुई प्राथमिकी
अल्पसंख्यक छात्रवृति घोटाला: दो मदरसों के हेड मौलवी पर दर्ज हुई प्राथमिकी

सुपौल। जिले में केंद्र प्रायोजित प्री मैट्रिक अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति योजना के नाम पर करोड़ों रुपये के घोटाला मामले में सुपौल थाने में दो मदरसा के हेड मौलवी पर प्राथमिकी दर्ज की गई है। लेकिन विडंबना है कि इस चर्चित छात्रवृत्ति घोटाले में जिलाधिकारी के प्राथमिकी के आदेश दिए जाने के 15 महीने बाद घोटालेबाजों पर प्राथमिकी दर्ज कराई गई है। अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के प्रधान सचिव एवं आर्थिक अपराध बिहार पटना के वर्ष 2016 में दिए गए आदेश पर जिलाधिकारी द्वारा जांच कमेटी गठित की गई। जिला अल्पसंख्यक कल्याण पदाधिकारी सुपौल की अध्यक्षता में चार सदस्यीय जांच समिति द्वारा की गई जांच में 2 करोड़ 81 लाख 13 हजार 625 रुपये का घोटाला सामने आया। जिसमें फर्जी मदरसा, फर्जी छात्रों के नाम पर पदाधिकारियों और बिचौलियों के द्वारा इस घोटाले को अंजाम दिया गया है। जांच कमेटी ने सुपौल शिक्षा विभाग के तत्कालीन 04 जिला शिक्षा पदाधिकारी एवं 2 लिपिक को इस घोटाले के लिए दोषी माना है। अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के विशेष सचिव सह निदेशक ने डीएम सुपौल को नियमानुकूल कार्रवाई करते हुए गबन की गई राशि को वसूल करने एवं दोषियों के उपर प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया। दरअसल इस मामले का खुलासा आरटीआइ के तहत प्राप्त सूचना के आलोक में भ्रष्टाचार मुक्त जागरुकता अभियान के अनिल कुमार ¨सह ने किया है।

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बिहार सरकार अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के अपर मुख्य सचिव आमीर सुबहानी ने वर्ष 2016 में जिलाधिकारी को पत्र लिखकर वित्तीय वर्ष 2008-09 से 2012-13 तक जिला शिक्षा पदाधिकारी द्वारा केन्द्र प्रायोजित योजना प्री मैट्रिक अल्पसंख्यक छात्रवृति वितरण में अनियमितता से संबंधित मामले पर जांच करने का आदेश दिया था। अपर मुख्य सचिव ने अपने पत्र में स्पष्ट लिखा था कि सुपौल जिले में बहुत से ऐसे मदरसा तथा सोसाईटी को छात्रवृति का भुगतान कर दिया गया है जिसकी मौजूदगी सिर्फ कागज पर ही है। जिला लेखा पदाधिकारी सहित वरीय पदाधिकारी की जांच दल गठित कर वर्णित तत्वों की विस्तृत जांच कराते हुए कार्रवाई से विभाग को अवगत कराने का आदेश जिलाधिकारी सुपौल को दिया गया। उन्होंने पत्र में यह भी लिखा था कि यदि राशि का गबन पाया जाए तो स्थानीय थाने में प्राथमिकी भी दर्ज कराई जाए। वहीं प्रधान सचिव के आदेश पर जिलाधिकारी ने अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति के वितरण में अनियमितता से संबंधित एक जांच टीम का गठन किया। चार सदस्यीय जांच टीम ने 24 जुलाई 2017 को जांच प्रतिवेदन जिलाधिकारी को समर्पित किया। जांच टीम के अध्यक्ष जिला कल्याण पदाधिकारी सुपौल, सदस्य के रूप में जिला अल्पसंख्यक कल्याण पदाधिकारी, वरीय कोषागार पदाधिकारी, जिला कार्यक्रम पदाधिकारी स्थापना शिक्षा शामिल थे। जांच कमेटी द्वारा समर्पित जांच प्रतिवेदन में वित्तीय वर्ष 2008 से 2013 तक 2 करोड़ 81 लाख 13 हजार 625 रुपये के गबन को प्रमाणित किया। जिसमें साल 2008-09 में 85 हजार 400 रुपये, 2009-10 में 35 लाख 400 रुपये, 2010-11 में 80 लाख 19 हजार 50 रुपये, 2011-12 में 89 लाख 725 रुपये, वहीं 2012-13 में छलांग लगाते हुए 1 करोड़ 11 लाख 3850 रुपये का घोटाला किया। घोटालेबाजों ने ऐसे मदरसा के नाम पर राशि की लूट की जो धरातल पर है ही नहीं। ऐसे छात्रों के नाम पर राशि निकाली गई जो छात्र है ही नहीं। जिला शिक्षा कार्यालय द्वारा नियम एवं दिशा निर्देश की अनदेखी कर राशि का वितरण किया गया। संस्थानों एवं विद्यार्थियों के सत्यापन के बिना राशि निकाल कर बंदरबांट की गई। विभाग के निर्देश के विपरीत संस्थाओं को नगद राशि तक वितरण कर दिया गया। जबकि विभाग द्वारा छात्रवृति की राशि छात्रों के बैंक खाते में दी जानी थी। हैरत की बात तो यह है कि बिहार सरकार अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के अपर मुख्य सचिव आमीर सुबहानी के द्वारा दिये गये आदेश के बावजूद जिलाधिकारी ने दोषियों के उपर कार्रवाई न कर, इस जांच प्रतिवेदन को अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के माथे पर ही जड़ दिया। लेकिन अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के विशेष सचिव सह निदेशक ने जिलाधिकारी को पत्र लिखकर जांच प्रतिवेदन के आलोक में दोषी पदाधिकारी और कर्मचारी के विरुद्ध राशि वापसी हेतु नियमानुकूल कानूनी कार्रवाई एवं अनुशासनिक कार्रवाई करते हुए प्राथमिकी दर्ज करने हेतु आदेश दिया। सरकारी कार्य क्लाप का अद्भूत नमूना

सरकारी कार्य क्लाप का एक अछ्वुत नमूना पेश हुआ है। मामले में जांच रिपोर्ट आने के बाद जिलाधिकारी ने 3 नवंबर 2017 को ही जिला शिक्षा पदाधिकारी को प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया था। जिलाधिकारी के आदेश के आलोक में जिला कार्यक्रम पदाधिकारी ने 3 जनवरी 2018 को बीईओ सुपौल को प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया। बीईओ सुपौल ने 4 जनवरी 2018 को सुपौल थानाध्यक्ष को प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध किया। अनुरोध पत्र के आलोक में सदर थाने में 2 फरवरी 2019 को दो मदरसा के हेड मौलवी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है।


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