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दुर्गा सप्तशती पाठ से होती है मनवांछित फलों की प्राप्ति : आचार्य

- शारदीय नवरात्र आज से संवाद सूत्र करजाईन बाजार(सुपौल) जिस प्रकार यज्ञों का राजा अश्वमेध तथ

By JagranEdited By: Published: Fri, 16 Oct 2020 05:10 PM (IST)Updated: Fri, 16 Oct 2020 05:10 PM (IST)
दुर्गा सप्तशती पाठ से होती है मनवांछित फलों की प्राप्ति : आचार्य
दुर्गा सप्तशती पाठ से होती है मनवांछित फलों की प्राप्ति : आचार्य

- शारदीय नवरात्र आज से

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संवाद सूत्र, करजाईन बाजार(सुपौल): जिस प्रकार यज्ञों का राजा अश्वमेध तथा देवताओं के राजा भगवान इंद्र को कहा जाता है। उसी तरह स्तोत्रों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्तोत्र दुर्गा सप्तशती है। इसलिए सभी भक्तों को खासकर नवरात्र में पूर्ण श्रद्धाभाव व समर्पण के साथ दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए। धर्मशास्त्रानुसार कामना पूर्ति के लिए दुर्गा सप्तशती के कितनी आवृत्ति पाठ करना चाहिए तथा इनसे किन-किन फलों की प्राप्ति होती है। इसके माहात्म्य को समझाते हुए आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि नवग्रहों को शांत करने के लिए दुर्गासप्तशती की पांच आवृत्ति पाठ करना चाहिए। महाभय उपस्थित होने पर सात आवृति, दुष्टों का दमन एवं अभिलाषा पूर्ति के लिए बारह आवृत्ति, शत्रुओं को वश में करने तथा नारीवशवर्ती हेतु चौदह आवृत्ति, सुख-शांति व समृद्धि के लिए पंद्रह आवृति, पुत्र-पौत्र व धन-धान्य के लिए सोलह आवृति, राज्यभय से मुक्ति के लिए सत्रह आवृत्ति, शत्रु उच्चाटन हेतु अठारह आवृत्ति, गंभीर बीमारी से मुक्ति के वास्ते बीस आवृत्ति एवं कारागार से छुटकारा पाने के लिए दुर्गासप्तशती के पच्चीस आवृत्ति पाठ फलदायक होता है। इसी प्रकार मुसीबत एवं इलाज बिगड़ जाने पर, जातीय विनाश उत्पन्न होने पर स्वपरिवार से अलग होने, शत्रु और रोग बढ़ जाने, धन का नाश होने तथा दैहिक-दैविक व भौतिक ताप होने पर एवं अतिशय पाप लगने पर प्रयासपूर्वक दुर्गा सप्तशती के एक सौ आवृत्ति पाठ करना चाहिए। आचार्य धर्मेंद्रनाथ ने बताया कि दुर्गासप्तशती के एक सौ आवृत्ति पाठ करनेवालों के लिए लक्ष्मी तथा राज्य की वृद्धि होती है। वहीं एक सौ आठ आवृत्ति पाठ करनेवालों को वाणी सिद्धि तथा सौ अश्वमेध यज्ञ करने का फल मिलता है। दुर्गा सप्तशती के एक हजार आवृत्ति पाठ करनेवाले को लक्ष्मीजी स्वयं आकर वरण करती है तथा उनके घर में स्थिर हो जाती है। साथ ही सभी मनोरथ पूर्ण होता है और अंत में उसे इस संसार से मुक्ति मिलती है।


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