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श्रद्धालुओं ने की मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना

चैती नवरात्र में नव गौरी के पूजन के क्रम में सोमवार को नवरात्र के तीसरे दिन श्रद्धालुओं ने मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना कर मन्नतें मांगीं। शक्ति के उपासक भक्त देवी की पूजा-अर्चना के लिए सुबह से ही मंदिरों में पहुंचने लगे। क्षेत्र के रतनपुर पुरानी बा•ार समदा गढ़ी सितुहर आदि जगहों पर स्थित माता के मंदिरों में श्रद्धालु श्रद्धा-भक्ति के साथ माता की आराधना की। साथ ही संध्या बेला में क्षेत्र के दुर्गा मंदिरों में दीप जलाने के लिए महिलाओं व कन्याओं की भीड़ जुटती रही।

By JagranEdited By: Published: Tue, 09 Apr 2019 12:08 AM (IST)Updated: Tue, 09 Apr 2019 12:08 AM (IST)
श्रद्धालुओं ने की मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना
श्रद्धालुओं ने की मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना

संवाद सूत्र, करजाईन बाजार(सुपौल): चैती नवरात्र में नव गौरी के पूजन के क्रम में सोमवार को नवरात्र के तीसरे दिन श्रद्धालुओं ने मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना कर मन्नतें मांगीं। शक्ति के उपासक भक्त देवी की पूजा-अर्चना के लिए सुबह से ही मंदिरों में पहुंचने लगे। क्षेत्र के रतनपुर पुरानी बा•ार, समदा गढ़ी, सितुहर आदि जगहों पर स्थित माता के मंदिरों में श्रद्धालु श्रद्धा-भक्ति के साथ माता की आराधना की। साथ ही संध्या बेला में क्षेत्र के दुर्गा मंदिरों में दीप जलाने के लिए महिलाओं व कन्याओं की भीड़ जुटती रही। मां चंद्रघंटा की महिमा व उपासना की जानकारी देते हुए आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि इनकी उपासना से समस्त सांसारिक कष्टों से विमुक्त होकर सहज ही परमपद के अधिकारी होने का सौभाग्य मिलता है। इनका ध्यान इहलोक व परलोक दोनों के लिए परम कल्याणकारी और सद्गति देनेवाला है। चंद्रघंटा के पूजन से साधक को मणिपुर चक्र जागृत होने की सिद्धियां स्वत: प्राप्त हो जाती है।

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अल्प सेवा व भक्ति से ही प्रसन्न हो जाती हैं मां कुष्मांडा

मंगलवार को मां आदिशक्ति जगतजननी जगदम्बा श्री दुर्गा का चतुर्थ रूप कुष्मांडा की पूजा होगी। अपने उदर से अंड अर्थात ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कुष्मांडा देवी के नाम से पुकारा जाता है। नवरात्र के चतुर्थ दिन इनकी पूजा व आराधना की जाती है। मां कुष्मांडा की साधना व आराधना का फल बताते हुए आचार्य ने कहा कि इनकी उपासना से भक्तों के समस्त प्रकार के रोग, शोक, व्याधि आदि उपद्रव नष्ट हो जाते हैं। इनकी शक्ति से आयु, यश, बल, और आरोग्य की वृद्धि होती है। आचार्य ने बताया कि मां कुष्मांडा अति अल्प सेवा व भक्ति से ही अत्यधिक प्रसन्न हो जाती है। यदि साधक सच्चे ह्रदय से पवित्रता पूर्वक इनकी शरणागत स्वीकार कर ले तो फिर उसे अत्यंत सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो जाती है। मां कुष्मांडा की पूजा के दौरान साधक को अपना चित्त अनाहत चक्र में स्थिर करके साधना करनी चाहिए। इनके पूजन से अनाहत चक्र जागृत होने की सिद्धियां स्वत: प्राप्त हो जाती है।


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