बिचौलियों की पकने लगी खिचड़ी, गैररैयत किसानों के नाम पर खरीदी जा रही धान
सरायगढ़-भपटियाही प्रखंड के सदानंदपुर गांव के वार्ड नंबर 1 निवासी नेत्रहीन किसान सोमेश्वर साह के खाते से कृषि समन्वयक सत्यनारायण प्रसाद गुप्ता द्वारा झांसा देकर 10 हजार रुपये के निकासी करने के मामले का अब तक जिला स्तरीय टीम द्वारा जांच नहीं किए जाने से झिल्ला-डुमरी तथा शाहपुर पृथ्वीपट्टी पंचायत के किसानों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। दोनों पंचायत क्षेत्र के कई किसानों का कहना है कि इतने गंभीर मामले का जिला कृषि पदाधिकारी प्रवीण कुमार झा ने नेत्रहीन किसान के घर आकर जांच की और जिला स्तर की टीम गठित कर कृषि समन्वयक के द्वारा किए गए सभी धांधली को सामने लाने का आश्वासन दिया था।
सुपौल। धान अधिप्राप्ति मामले में जिला यूं ही नहीं पिछड़ रहा है। इसके लिए प्रशासनिक उदासीनता और क्रय समिति की लापरवाही बराबर का दोषी है। सरकार की ओर से 15 नवंबर से निर्धारित धान अधिप्राप्ति की शुरुआत के आदेश के बाद जब जिले में करीब 25 दिन बाद अधिप्राप्ति की कार्यवाही शुरू की गई तो वह भी आधी अधूरी व्यवस्था के साथ। इसके कारण जिले में धान अधिप्राप्ति की जो शुरुआती गति मिलनी चाहिए थी वह नहीं मिल पाई। वैसे जिले में 181 पैक्स और 11 व्यापार मंडल हैं। इस तरह कुल 193 समितियों को धान क्रय करने के लिए व्यवस्थित की जानी चाहिए थी। लेकिन विडंबना देखिए कि विभाग ने जिन 135 समिति को धान क्रय करने के लिए चयनित किया उसमें से आज की तारीख में भी 11 समिति अक्रियाशील की श्रेणी में है।
मतलब 124 क्रय समिति के माध्यम से विभाग 1 लाख एमटी धान खरीदने की पुरजोर कोशिश में लगी है। ऐसे में यदि लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो पाती है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। वैसे भी जिले के किसान को लाचार और निसहाय जैसे उपमा से ही उसे जाना जाता है। जब उन्हें खाद-बीज की सख्त जरूरत होती है तो किसानों को विक्रेताओं के मनमानी का कोपभाजन बनना पड़ता है। अपने खून-पसीने के बूते जब किसान अन्न उत्पादित करते हैं तो फिर उनके उत्पादन को कोई पूछने वाला नहीं होता है। मतलब हर पल उन्हें कुव्यवस्था का शिकार होना पड़ता है। परिणाम होता है कि किसानों में औने-पौने दामों पर अपने उत्पादन को बेचने की मजबूरी होती है।
धान बेचने में रैयत से ज्यादा गैर रैयत किसानों ने दिखाई दिलचस्पी
चालू वित्तीय वर्ष में सरकारी दरों पर धान बेचने के लिए जिले के जिन 14158 किसानों ने अपना निबंधन कराया है। उसमें से 4274 रैयत तथा 9217 किसान गैर रैयत किस्म के हैं। मतलब जिले में जो किसान अपने से खेती करते हैं उन्हें सरकार की यह योजना नहीं भा रही है। परंतु वैसे किसान जो बटाईदार हैं वह अपना उत्पाद सरकारी दरों पर बेचने को अग्रसर हैं। लेकिन यहां रैयत और गैर रैयत किसानों के बीच बनी खाई अधिप्राप्ति में गड़बड़झाला को जन्म देता है। प्राय: गैररैयत की श्रेणी में वे किसान आते हैं जो दूसरे की जमीन बटाई करते हैं। ऐसे लोग समाज के गरीब व मजदूर तबके के लोग होते हैं। एक तो धान बेचने हेतु निबंधन में उन्हें कोई कागजात नहीं लगता है। दूसरी तरफ क्रय समिति और बिचौलिया आपसी मिलीभगत कर इन गरीबों का पंजीयन कराकर उनके नाम पर धान की खरीद कर आपस में बंदरबांट करते हैं।
किसानों का खलिहान है खाली, रोज खरीद हो रही है धान
दरअसल जिले में धान की कटाई अक्टूबर से नवंबर माह में लगभग पूर्ण हो जाती है। जिस समय किसानों के पास धान होता है उस समय सरकारी खरीद व्यवस्था शुरू नहीं होने के कारण किसान अपने जरूरत के हिसाब से बिचौलियों के हाथों औने-पौने दामों पर धान बेच देते हैं। अब जबकि फरवरी माह चल रहा है प्राय: अधिकांश किसान अपना धान बेच चुके हैं। ऐसे में प्रतिदिन हजारों क्विटल धान की खरीद कहीं न कहीं सवाल तो खड़ा करता ही है। भले ही विभागीय अधिकारी जो कह लें परंतु सच्चाई यही है कि सरकारी क्रय से पूर्व किसानों से औने-पौने दामों पर बिचौलियों द्वारा खरीदे गए धान को गैर रैयत किसानों के नाम खपाया जा रहा है। जिसमें बिचौलिया क्रय समिति बराबर के हिस्सेदार बनते हैं। बात तो यहां तक सामने आ रही है कि क्रय एजेंसी और मिलरों की आपसी सांठगांठ से महज कागज पर धान खरीद दिखा कर सीधे चावल की कालाबाजारी कर एसएफसी को आपूर्ति कर दी जाती है और मुनाफा की राशि को ऊपर तक बांट दिया जाता है।