समस्याओं के मकड़जाल में कराह रहा गौरीपट्टी गांव
-शुद्ध पेयजल के आभाव से आयरनयुक्त जल पीने को विवश हैं लोग -गांव में स्कूल रहने के बाद भी नहीं पढ़ पाते बच्चे - चटाई उद्योग को बढ़ावा नहीं मिलने से पलायन करते हैं गांव के लोग फोटो फाइल नंबर-5एसयूपी-
सुपौल। शहर की तरह गांव के लोग भी खुशहाल हो और उसे भी जीवन जीने के लिए अधिक से अधिक सुविधाएं मिले इसके लिए सरकारी स्तर से नित्य नए-नए प्रयास किए जाते हैं। इसके तहत गांव में जलापूर्ति योजना, सड़क निर्माण, स्कूल में बेहतर शिक्षा देने के लिए शिक्षकों की तैनाती और पलायन रोकने के लिए सरकारी स्तर से कार्य आदि व्यवस्थाएं की जाती रही है। लेकिन सरायगढ़-भपटियाही प्रखंड मुख्यालय से महज तीन किलोमीटर उत्तर अवस्थित महादलित वर्ग के लोगों का गांव गौरीपट्टी ऐसे सारी सुविधाओं से अभी भी दूर है। कोसी के कछार पर बसे एक हजार से अधिक की आबादी के इस गांव में अब तक शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं हो पाया है जो यहां की मुख्य समस्या है। तीन वर्ष पूर्व इस गांव में एक मिनी जलापूर्ति योजना स्थापित की गई। योजना से जैसे ही पानी निकलना शुरू हुआ कि लोगों की चिताएं और बढ़ गई। गांव में लोगों के घर लगे चापाकल से कहीं ज्यादा खराब पानी जलापूर्ति योजना से निकल रहा था। इसे देख लोगों ने विरोध का स्वर उठाया तो इस जलापूर्ति योजना को संचालित करने वाले लोग ही परदे के पीछे चले गए। तब से लेकर अब तक उस गांव में कोई भी सरकारी अधिकारी आज तक जलापूर्ति योजना को देखने नहीं पहुंचे हैं। आयरन युक्त पानी पीने के कारण गांव के लोग अक्सर बीमार हुआ करते हैं। गांव में अधिक समस्याएं महिलाओं को होती है जो गांव में ही रहकर किसी न किसी रोजगार से लगी रहती है। इन महिलाओं के लिए शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं होने के कारण बार-बार परेशानी दिखाई देती है। गांव में नहीं है कोई अस्पताल
गौरीपट्टी गांव में कोई अस्पताल भी नहीं है, जहां लोग स्वास्थ्य लाभ आसानी से ले सकें। आपातकाल में गांव के लोगों को भपटियाही सहित अन्य अस्पतालों में जाना पड़ता है। गांव के बच्चों को समय से टीके नहीं नहीं दिए जाते हैं जिस कारण उसे कई प्रकार के रोग का शिकार होना पड़ता है। चटाई उद्योग को नहीं मिल रहा बढ़ावा गौरीपट्टी गांव में लंबे समय से लोग पटेर से चटाई बनाकर अपने परिवार का गुजारा करते रहे हैं। इसके लिए कच्चे माल के रूप में जहां पटेर और रस्सी की जरूरत होती है। वहीं इस रोजगार को आगे बढ़ाने के लिए लोगों को धन की भी जरूरत होती है। गांव के लोगों के बार-बार की मांग के बाद भी सरकारी स्तर से अभी तक चटाई उद्योग को न तो मान्यता दी गई और न ही लोगों को सहायता मिल रही है। गौरीपट्टी गांव के अधिकांश पुरुष वर्ष के कई माह परिवार के गुजारे के लिए बाहर पलायन कर जाते हैं। गांव की कई महिलाओं का कहना है कि यदि चटाई निर्माण के लिए उन सबों को सरकारी स्तर से सहायता राशि मिले तो वह सब इसे बड़ा रूप दे सकती है और उससे पूरे परिवार का सही-सही भरण पोषण भी होगा। लेकिन लोगों को रोजगार से जोड़ने का वादा करने वाले अधिकारी और सरकार उन लोगों तक नहीं पहुंचते हैं और ना ही कभी उधर ध्यान देते हैं। गौरीपट्टी गांव में सड़क तो है लेकिन शिक्षा की व्यवस्था बिल्कुल ही जर्जर है। स्कूल रहने के बाद भी पढ़ने के प्रति नहीं है जागरूकता गांव में मध्य विद्यालय रहने के बाद भी बच्चे शिक्षा से दूर दिखाई देते हैं। परिवार के गुजारे के लिए चटाई निर्माण कार्य में हाथ बंटाने वाले बच्चे स्कूल के समय भी अपना समय उसी में बिता देते जिस कारण वह पढ़ नहीं पाते हैं। कहते हैं कि महादलित बस्ती के लोगों को गरीबी ने इस कदर से घेर रखा है कि चाह कर भी बच्चे को सही-सही स्कूल नहीं भेज पाते। विद्यालय के शिक्षक महज कुछ ही बच्चों को लेकर बैठे दिखाई देते हैं। अधूरा पड़ा है सामुदायिक भवन गौरीपट्टी गांव में एक सामुदायिक भवन बनाया गया जो अब तक पूरा नहीं हुआ और इस कारण वहां लोग बैठकर कोई योजना भी नहीं बना पाते हैं। गांव के कई लोगों की माने तो सामुदायिक भवन बनाने वाले अभिकर्ता ने उसकी राशि को जहां-तहां खपत कर दी जिस कारण वह अब तक बेहाल बना है। बेकार पड़ा है आंगनबाड़ी केंद्र भवन गांव में आंगनवाड़ी केंद्र भवन बनाया गया, लेकिन उसका उपयोग नहीं हो रहा है। केंद्र की सेविका एक व्यक्ति के दरवाजे पर बच्चों को पढ़ाने का काम करती है जबकि नवनिर्मित भवन पर धीरे-धीरे लोगों का कब्जा बढ़ता जा रहा है। आइसीडीएस के अधिकारी सब कुछ देख कर भी अंजान बने हुए हैं। कोसी नदी से बढ़ा रहता है लोगों को खतरा कोसी नदी के पूर्वी कछार पर पूर्वी तटबंध के किनारे अवस्थित गौरीपट्टी के लोग बरसात का मौसम आते ही सहम उठते हैं। गांव के पश्चिम से होकर बने एक गाइड बांध के जर्जर होने से बाढ़ के समय पानी गांव में प्रवेश कर जाता है जिस कारण लोगों में अफरा-तफरी मच जाती है। लोग बताते हैं कि गाइड बांध मरम्मत तथा ऊंचीकरण के नाम पर प्रतिवर्ष झांसा दिया जाता है। चुनाव का समय आने पर कई नेता उस गाइड बांध का उंचीकरण कर लोगों को सुरक्षित करने का वादा तो करते हैं लेकिन चुनाव बाद लौटकर कोई नहीं आते हैं। हालात यह होता है कि घरों में पानी भरते ही लोग तटबंध ऊपर पहुंच जाते हैं और फिर तीन माह तक उसी पर जीवन बिताने को विवश रहते हैं। इस दौरान लोगों की गाढ़ी कमाई भी पानी में बह जाया करती है। घर में रखा अनाज के पानी में डूबने से लोगों को वर्ष भर पेट चलाने की समस्या बढ़ जाती है। महादलित लोगों के इस बस्ती में सरकार के अधिकारी तथा जनप्रतिनिधि विकास का ढिढोरा तो पीटते हैं लेकिन नीचे तक वह नहीं पहुंच पाता है। गांव में कई लोग विभिन्न प्रकार के पेंशन लाभ से वंचित हैं। खुले में शौच करते हैं लोग स्वच्छ भारत मिशन के तहत गांव में कई लोगों के यहां शौचालय निर्माण तो कराया गया लेकिन अधिकांश परिवार के लोग उसका उपयोग नहीं करते हैं। कई घरों में अभी भी शौचालय निर्माण कराना बाकी है और इस कारण लोग खुले में शौच करते हैं। गांव में साफ-सफाई के प्रति जागरूक करने के लिए कोई कार्यक्रम नहीं चलाया जाता जिससे अधिकतर जगहों पर गंदगी दिखाई देती है। अतिक्रमण की चपेट में विद्यालय
भवन, महिलाओं में है निरक्षरता गौरीपट्टी गांव में करीब चार वर्ष पूर्व 12 लाख से अधिक की लागत से नए विद्यालय भवन का निर्माण किया गया जो अतिक्रमण की चपेट में है। उच्च विद्यालय भवन में गांव के लोग पटेर-लार सहित अन्य सामान रखते हैं। उधर निर्माणाधीन भवन में शिक्षक बच्चों को जैसे-तैसे पढ़ाने का काम करते है। गांव की अधिकांश महिलाएं निरक्षर बताई जाती है। कहते हैं कि इन महिलाओं को साक्षर करने के लिए सरकार का जो भी प्रयास पहले चला सभी का सभी विफल रहा। निरक्षर रहने के कारण महिलाओं में कर्तव्य बोध कम दिखाई देता है और इसका सीधा असर नौनिहालों पर पड़ता है। कोसी नदी से प्रभावित ढोली पंचायत के इस गांव में खासकर महादलित वर्ग के लोग ही रहते हैं। इनके बच्चों को भी सरकार की ओर से सही समय पर लाभ नहीं दिया जाता है, जिस कारण बच्चे निरक्षर हो रहे हैं। गांव के लोगों को रोजगार का कोई दूसरा साधन नहीं है। अधिकांश लोग चटाई बनाकर भपटियाही बाजार में बेच कर अपने घर का चूल्हा जलाते हैं। जिनको चटाई हेतु कच्चा माल खरीदने का पैसा नहीं होता उसकी जिदगी मजदूरी से चलती है। गांव में मनरेगा योजना के तहत भी काम नहीं दिए जाते जिससे कि लोग गुजारा कर सकें।
क्या कहते हैं लोग गांव के डोमी सरदार कहते हैं कि वहां जो जलापूर्ति योजना शुरू की गई उसका क्या हुआ वह सब नहीं जान पाते हैं। गंदा जल पीने से बीमार हो रहे लोगों की सुधि भी कोई लेने वाला नहीं है। कहते हैं कि सरकार की उपेक्षा पूर्ण नीति के चलते गांव में विकास की रोशनी नहीं पहुंच रही है।
गांव के सियाराम सरदार कहते हैं कि वहां चुनाव के समय ही चहल-कदमी दिखाई देती है। चुनाव बाद तो लोग कार्यालयों का चक्कर लगाते रहते, लेकिन कोई काम नहीं होता। कहते हैं कि यदि सरकार चटाई निर्माण की ओर ध्यान दें और उन सबों को आर्थिक सहयोग प्रदान करें तो वह जिला ही नहीं राज्य में भी अपने गांव का नाम रोशन कर सकते है। उत्तम क्वालिटी की चटाई निर्माण कर अधिक से अधिक आय प्राप्त कर सकते है।
प्रमोद ऋषिदेव कहते हैं कि गांव में एक तरह से कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं है। गरीब परिवारों को आगे बढ़ाने के लिए सरकार ने वहां एक भी योजना शुरू नहीं की। इसका उन सभी को मलाल है। कुल मिलाकर गौरी पट्टी गांव में सरकार की हर योजना विफल दिखाई देती है। महादलित वर्ग के लोगों को देश के मानचित्र पर लाने हेतु सरकार का संकल्प गौरीपट्टी गांव में एक तरह से कागज में सिमटा हुआ है। जरूरत है कि सरकार के अधिकारी तथा जनप्रतिनिधि ऐसे महादलित बस्ती में विकास के हर कार्य को कर लोगों के दर्द को दूर करने का प्रयास करें। कहती हैं मुखिया
ढोली पंचायत की मुखिया सुमित्री देवी कहती हैं कि गौरीपट्टी गांव में जलापूर्ति योजना तो है लेकिन इसका संचालन कैसे होगा और कौन करेंगे इस बारे में जानकारी नहीं दी जा रही है। काफी लागत से बनी जलापूर्ति योजना बेकार पड़ी है और गांव के लोग अशुद्ध जल पीने को विवश हैं। आंगनवाड़ी केंद्र भवन में केंद्र का संचालन होना चाहिए। विद्यालय का जो भवन अतिक्रमित है उसको विभाग मुक्त कराए ताकि गांव के बच्चों को सही शिक्षा मिल सके। कहा कि सरकार जिन योजनाओं को गांव तक ले जाना चाहती है उसमें पारदर्शिता के अभाव में लोगों तक लाभ नहीं जा पाता है इस पर अंकुश की जरूरत है।