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बीत गया पूरा सत्र नहीं मिल सकी किताबों की राशि

-बैंक व प्रधानाध्यापक के चक्कर में फंसी है किताबों की राशि --------------------------- संव

By JagranEdited By: Published: Tue, 12 Mar 2019 11:05 PM (IST)Updated: Tue, 12 Mar 2019 11:05 PM (IST)
बीत गया पूरा सत्र नहीं मिल सकी किताबों की राशि
बीत गया पूरा सत्र नहीं मिल सकी किताबों की राशि

-बैंक व प्रधानाध्यापक के चक्कर में फंसी है किताबों की राशि

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संवाद सूत्र, सरायगढ़(सुपौल): प्रखंड क्षेत्र में कई ऐसे विद्यालय हैं जहां के छात्र-छात्राओं को अभी भी पुस्तक का इंतजार है। पुस्तक से वंचित छात्र-छात्राएं एक बार फिर बिना पढ़े ही परीक्षा में शामिल होंगे। इससे पूर्व में सैकड़ों छात्र-छात्राओं को बिना पुस्तक पढ़े ही वार्षिक परीक्षा में शामिल होना पड़ा था। सरकारी स्तर से आवंटित किए जाने वाली पुस्तकों के वितरण में बार-बार हो रही परेशानी को देखते हुए सरकार ने सभी छात्र-छात्राओं के खाते में सीधे रूप से पुस्तक तथा छात्रवृत्ति की राशि भेजने का आदेश दिया। इस आदेश के तहत जिला स्तर से विद्यालयों द्वारा उपलब्ध कराए गए सूची के आधार पर राशि आवंटित कर दी गई। विद्यालय के प्रधान द्वारा समर्पित प्रतिवेदन के आलोक में भपटियाही बाजार के उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक, भारतीय स्टेट बैंक तथा पंजाब नेशनल बैंक को यह राशि छात्र-छात्राओं के खाते में देनी है। लेकिन सैकड़ों छात्र-छात्राओं के खाते में अब तक राशि नहीं जा सकी है। मध्य विद्यालय मझौआ के प्रधान नरेश राम ने बताया कि उनके विद्यालय में छात्र-छात्राओं के खाते में पुस्तक की राशि इसलिए नहीं गई कि उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक द्वारा राशि निर्गत नहीं किया गया। इसी तरह कुछ अन्य विद्यालयों के प्रधान ने भी बताया कि विभिन्न बैंकों में छात्र-छात्राओं का खाता खुला हुआ है लेकिन इसके बाद भी पैसे नहीं दिए जा रहे हैं। छात्र-छात्राओं ने बताया कि गरीबी के कारण वे सभी दुकान से पुस्तक की खरीद नहीं कर सके। जिस कारण अब तक बिना पुस्तक की पढ़ाई कर रहे हैं। कक्षा में शिक्षक जो बता रहे हैं उसी से संतोष करना पड़ रहा है। ऐसे छात्र-छात्राओं का कहना है कि उनके अभिभावक पुस्तक इसलिए खरीदकर नहीं दे रहे हैं कि बैंक से राशि की निकासी नहीं हो रही है।

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संकुल समन्वयक को है गंभीर होने की जरूरत

प्रखंड क्षेत्र में प्राथमिक तथा मध्य विद्यालयों की संख्या 148 है। इन विद्यालयों में होने वाली परेशानियों को दूर करने के लिए 10 संकुल बनाए गए हैं जिसमें संकुल समन्वयक हैं। लेकिन अपने उत्तरदायित्व के प्रति उदासीनता दिखाई दे रही है। कुछ प्रधानाध्यापकों ने बताया कि यदि संकुल समन्वयकों द्वारा इस तरह के मुद्दे पर गंभीरता से कार्य किया जाता तो शायद आज शत-प्रतिशत छात्रों के हाथ में पुस्तक होती। लेकिन बीआरसी की बैठक में जाना और फोन से संबंधित प्रधानाध्यापक को सूचना भेज देने के बाद संकुल समन्वयक अपने कार्य को पूरा मान रहे हैं। यही कारण है कि प्रखंड क्षेत्र में कई विद्यालय अलग-अलग समस्याओं से जूझ रहा है।

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बोले अभिभावक

प्रखंड क्षेत्र के कुछ जानकार अभिभावकों का कहना है कि अब बच्चों के शिक्षा से शायद अधिकारियों को कोई खास सरोकार नहीं रह गया है। अन्यथा इस तरह के महत्वपूर्ण बिदुओं पर समय रहते कार्रवाई हो सकती थी। ऐसे अभिभावकों का कहना है कि जब बिना पुस्तक के ही बच्चे कक्षा पास करते रहेंगे तो आगे के समय में उनसे क्या उम्मीद की जा सकती है।


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