संत विनोबा के विज्ञान और अध्यात्म विचार को चरितार्थ करने पर बल
-विनोबा का जय जगत नारा संसार को महत्वपूर्ण देन -आजादी मिलते ही भारत की शिक्षा बदलनी चाहिए
-विनोबा का जय जगत नारा संसार को महत्वपूर्ण देन
-आजादी मिलते ही भारत की शिक्षा बदलनी चाहिए थी
-विनोबा 20वीं सदी के श्रेष्ठ महापुरूष
-कार्यक्रम संचालन हेतु बनाए मार्गदर्शक मंडल और जिला संयोजन समिति
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फोटो फाइल नंबर-12एसयूपी-3
जागरण संवाददाता, सुपौल: राजनीति के मार्गदर्शन में चलने वाला विज्ञान विनाशकारी होता है। यदि विज्ञान अध्यात्म के मार्गदर्शन में चलेगा तो पृथ्वी पर स्वर्ग लाएगा। 15 अगस्त 1947 को आजादी मिलते ही भारत का झंडा बदलने के साथ शिक्षा भी तुरंत बदलनी चाहिए थी। संसार में ¨हदुस्तान में ही सबसे पहले विद्या शुरू हुई। अंग्रेजी शिक्षा के कारण भारत के टुकड़े हुए। ब्रह्मविद्या भारतीय ज्ञान-परंपरा की सर्वश्रेष्ठ देन है और इसके बिना भारत कभी आगे नहीं बढ सकता। भारत को किसी राज्यसत्ता ने नहीं संत, फकीऱ और आचार्य ने बनाया। संत विनोबा जयंती के अवसर पर जिला मुख्यालय स्थित ग्राम्यशील परिसर में आयोजित जिले के गांधीजनों, अ¨हसाप्रेमियों, प्रबुद्वजनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के सम्मेलन में यह विचार सामने आया। सम्मेलन का आरंभ यशश्री व दिव्यम के द्वारा गीता के स्थितप्रज्ञ दर्शन और विनोबा रचित नाममाला गायन से हुआ। विनोबा रचित साहित्य पर पुष्पांजलि के उपरांत वयोवृद्ध सर्वोदय कार्यकर्ता अवध नारायण यादव की अध्यक्षता में कार्यक्रम आरंभ हुआ।
सेवानिवृत हिन्दी के प्राध्यापक कृपानन्द झा ने विनोबा के जीवन दर्शन पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि 20वीं सदी में भारत में विनोबा एक ऐसे महापुरूष हुए जिन्होंने भारत के सभी महत्वपूर्ण प्राचीन धार्मिक साहित्य का अध्ययन, मनन कर विज्ञान की कसौटी पर धर्म को परखने का प्रयास किया, इसलिए उन्होंने संसार के सभी धर्म ग्रंथों के बारे में लिखा। विज्ञान और आध्यात्म का समन्वय, गीता आधारित जीवन, नारी विमर्श, सभी धर्मों के समन्वय तथा साम्यवाद और सर्वोदय के द्वारा सामाजिक, आर्थिक असमानताओं को दूर करने का उन्होंने महत्वपूर्ण प्रयास किया। वयोवृद्ध मदनेश्वर झा ने कहा कि विनोबा दुनिया के सभी प्रमुख धर्मों को पढ़कर भारत के सनातन धर्म को सर्वोपरि माना था। शासन का विकेंद्रीकरण और राजसत्ता से मजबूत ग्रामसत्ता के वे पक्षधर थे। जितेंद्र झा ने कहा कि विनोबा का भूदान क्रांति के कारण ही खूनी क्रांति पर विराम लगा था। प्रकाश प्राण ने भी विनोबा के जीवन और संदेश पर प्रकाश डाला। इसके अलावा बोधनारायण ¨सह, भगवानजी पाठक, जगदीश मंडल, नन्दकुमार चौधरी, सत्यनारायण साह, सीता राम यादव, ललन धारीकार, संगीता जयसवाल, वीणा देवी, संतोष भाई, उपेंद्र कुमार कुशवाहा, रामचंद्र यादव, शिवशंकर महतो, तारानन्द कामत आदि ने भी चर्चा में भाग लिया।
कार्यक्रम को क्रियान्वित करने हेतु जिला स्तरीय एक मार्गदर्शक मंडल समिति में अवध नारायण यादव, यदुनन्दन मेहता, मदनेश्वर झा, प्रो. कृपानन्द झा, प्रो. सुरेशचंद्र मिश्र, सीताराम यादव, बोधनारायण ¨सह से कार्यक्रम में मार्गदर्शन हेतु अनुरोध किया गया। वहीं जिला स्तरीय कार्यक्रम के संचलन हेतु एक संयोजन समिति गठित की गई, जिसके सदस्य प्रकाश प्राण, संतोष भाई, जगदीश मंडल, राजाराम मुखिया, रामचंद्र यादव, भगवानजी पाठक और चंद्रशेखर मनोनीत किये गए। संयोजन समिति के संयोजक चंद्रशेखर और संतोष भाई चुने गए।