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चाइल्ड ट्रैफि¨कग के लिए सेफ जोन है सीमांचल का इलाका

-चाइल्ड ट्रैफि¨कग के लिए भारत-नेपाल सीमा का यह इलाका माना जाता है सेफ जोन - कई ऐसे बाल

By JagranEdited By: Published: Fri, 29 Jun 2018 05:19 PM (IST)Updated: Fri, 29 Jun 2018 05:19 PM (IST)
चाइल्ड ट्रैफि¨कग के लिए सेफ जोन है सीमांचल का इलाका
चाइल्ड ट्रैफि¨कग के लिए सेफ जोन है सीमांचल का इलाका

-चाइल्ड ट्रैफि¨कग के लिए भारत-नेपाल सीमा का यह इलाका माना जाता है सेफ जोन

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- कई ऐसे बाल मजदूर हैं जो गायब हैं, परिजन उन्हें खोज-खोज कर थक चुके हैं पर उनका नहीं कहीं अता-पता

जागरण संवाददाता,सुपौल: अज्ञानता, अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी की उपज है बाल मजदूरी। सरकार योजनाओं की बौछार करे या फिर अधिनियम बना कर लगाम लगाने की कोशिश। बाल व्यापार तो चल ही रहा है। भारत-नेपाल सीमा क्षेत्र से बाल व्यापार रुकने का नाम नहीं ले रहा है। आए दिन इस क्षेत्र से गरीब व अशिक्षित परिवारों के बच्चों को बाल मजदूरी के लिए अन्यत्र ले जाने का सिलसिला लगा ही रहता है। कुछ मामले में बच्चे बरामद हुए हैं, तो कई मामलों का पता भी नहीं चल पाता है। इलाके की विपन्नता के कारण बाल मजदूरी का धंधा काफी फल फूल रहा है। चाइल्ड ट्रैफि¨कग के लिए यह सीमांचल का इलाका सेफ जोन माना जाता है। कभी कभार पुलिस या स्वयंसेवी संस्था की नजर इस पर पड़ती है, तो कुछ बच्चे रिकवर हो जाते हैं।

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जागरूकता तक सिमटा अभियान

सरकारी स्तर पर बाल श्रम पर लगाम व बाल व्यापार पर नकेल को ले कार्यशाला व जागरूकता शिविर आयोजित किए जाते रहे हैं। किन्तु इसका फलाफल इस सीमांचल इलाके में नहीं दिख रहा। कई मामले सामने आते हैं, तो कुछ मामले का पता भी नहीं चल पाता। जहां तक जागरूकता की बात है तो अज्ञानता व अशिक्षा से ग्रस्त इस इलाके में जागरूकता काम नहीं आ रही। बाल व बंधुआ मजदूरी समाप्त करने को ले बिहार सरकार ने 10 अक्टूबर 2007 को श्वेत पत्र जारी किया। इसके तहत सरकार द्वारा सभी जिलाधिकारी एवं श्रम विभाग के तमाम अधिकारी को धावा दल गठित कर बच्चों को बाल श्रम से मुक्त कराने का निर्देश दिया। बावजूद 8 साल बीतने के बाद भी इसका कोई खास असर सुपौल जिले में देखने को नहीं मिल रहा।

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कई बच्चे गायब, नहीं मिल रहा अता-पता

ग्राम विकास परिषद की मानें तो विगत 10 साल के अंदर जिले से कई बाल मजदूर जो मजदूरी के लिए अन्य प्रदेशों में ले जाए गए का अता-पता तक नहीं है। इन बच्चों से न केवल बाल मजदूरी ही कराया जाता है, बल्कि इनका बाल व्यापार भी होता है। ग्राम विकास परिषद की रिपोर्ट को सच माने तो त्रिवेणीगंज प्रखंड के मचहा उत्तर से 10 साल पहले गायब 12 साल के एक लड़के का अता-पता तक नहीं है। इसी गांव से रिश्तेदारों के प्रलोभन में आकर 5 साल पूर्व मजदूरी को गया एक लड़का अब तक घर वापस नहीं लौट पाया है। कोसी त्रासदी के समय मिरजावा सरदार गांव से गायब एक लड़के का अब तक अता-पता नहीं चल सका है। प्रतापगंज प्रखंड के श्रीपुर गांव का लड़का वर्ष 2008 में मजदूरी करने गया था, अब तक वापस नहीं लौट सका है। त्रिवेणीगंज प्रखंड अंतर्गत डपरखा श्रीपुर का एक लड़का जो मांसाहारी होटल में काम करता था, दिल्ली कमाने गया, उसका कहीं अता पता नहीं है। यह तो एक बानगी है। जिले के कई ऐसे बाल मजदूर हैं, जो गायब हैं, परिजन उन्हें खोज-खोज कर थक चुके हैं पर उनका कही अता-पता नहीं। 2018 में श्रम संसाधन विभाग बाल मजदूरी को ले सजग हुआ है और विभाग द्वारा बाल श्रम से जुड़ा चार मामला बाल कल्याण समिति में प्रस्तुत किया गया है।


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