पहला मरीज : थ्रेसर की चपेट में आकर घायल हुई महिला का किया था इलाज
मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मार्च 1988 में मैंने अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र थूमा में किया योगदान ।
मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मार्च 1988 में मैंने अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र थूमा में योगदान किया। उस समय यह सहरसा जिला में था। अस्पताल मे खून से लथपथ एक महिला को उसके परिजन लेकर पहुंचे थे। थ्रेसर में फंस कर उस महिला के बाल, मांस एवं स्किन समेत उखड़ कर स्कल (खोपड़ी) से अलग हो गए थे। दर्द से चीख रही उस महिला के साथ हुई घटना को उसके परिजनों ने बताया। मैं घबड़ाया नहीं। मैंने उनसे पूछा कि उखड़े हुए बाल कहा हैं? उन्होंने कहा कि हम उसे क्या करते इसलिए अस्पताल के बाहर फेंक दिया। मैंने फेंके गए बाल को मंगवाया वॉश कर टाका लगा दिया और मरहम पट्टी की। उस समय अस्पताल में दवाएं बहुत कम रहती थीं। महिला निर्धन परिवार की थी। उसके परिजन बहुत घबड़ाए हुए थे। मैंने उसे दवा खरीद कर दिया। महिला कुछ दिन में ही ठीक हो गई। मैंने इस इलाज में कोशिश तो की, लेकिन सफलता किसी चमत्कार से कम नहीं थी।
डॉ. कौशल किशोर श्रीवास्तव
रेफरल अस्पताल, मैरवा (सिवान)